आत्मा का अस्तित्व इंकारा नहीं जा सकता – existence of soul

भारतीय तथा विश्व के अन्य सभी धर्मो में पुनर्जन्म की मान्यता है की मरणोत्तर जीवन कितना लंबा होता है और उस अवधि में किस प्रकार निर्वाह करना पड़ता है | मतभेद इन्हीं बातों पर है | पुनर्जन्म को अस्वीकारा किसी ने भी नहीं — भले ही उसके लिए प्रलयकाल जितनी लंबी प्रतीक्षा करने के लिए कहा गया हो | धार्मिको की तरह पुरातन दर्शन-शास्त्र भी पुनर्जन्म (rebirth) के समर्थक रहे हैं | उन चार्वाक जैसों की संख्या नगण्य है, जिनमे आत्मा के अस्तित्व (existence of soul) से इंकार करने के साथ-साथ एक ही सांस में पुनर्जन्म की मान्यता का भी सफाया कर दिया |

existence of soul can not be disapproval

कठिनाई आधुनिक वैज्ञानिको ने उत्पन्न की है जिनने पदार्थ (substance) को ही सब कुछ माना और आत्मा के अस्तित्व से इंकार कर दिया | जब आत्मा ही नहीं तो पुनर्जन्म किसका ? आस्तिकता (religioner) के सभी सिद्धांत (theory) आत्मा की अमरता और ईश्वर की न्याय व्यवस्था के साथ जुड़ते हैं | यदि इन दो तथ्यों को अमान्य ठहरा दिया जाय तो फिर चेतना (consciousness) की स्वतंत्र सत्ता की समाप्ति हो जाती है और संसार मात्र रासायनिक पदार्थों (chemical substances) का ऐसा खिलौना भर रह जाता है |

पुनर्जन्म के प्रत्यक्ष प्रमाण इतने अधिक हैं की उन्हें हर कसौटी पर कसा और सही पाया जा सकता है | कितने ही बालक अपने पूर्व जन्म का विवरण बताते पाये गए हैं | जांचने पर यह पाया गया है की बच्चे को वैसी धूर्तता किसी ने सिखाई नहीं है, वरन उसने सहज स्वभाव से ही अपनी पूर्व स्मृति का परिचय दिया है | यह कोई कल्पना (imagination) तो नहीं है उसकी जाँच पड़ताल इन घटनाक्रमों में इस प्रकार की जाती रही है कि यदि कहीं कुछ छद्म हो तो उसका पर्दाफाश होने में देर न लगे | पुरानी ऐसे घटनाएं जो मात्र सम्बन्ध व्यक्तियों की जानकारी से ही हो सकती थी | इन बालकों द्वारा बताया जाना, स्थानों, वस्तुओं तथा घटनाओं का वर्णन करना यह बताता है कि इसमें कल्पना या छद्म नहीं तथ्य ही प्रत्यक्ष है |

पुनर्जन्म के विवरण भारतवर्ष में आये दिन उपलब्ध होते रहते हैं | यहाँ उन पर आश्चर्य भी नहीं होता | पर ईसाई, मुस्लमान प्रधान देशों के लिए तो यह अतीव आश्चर्यजनक है, क्योकि उनकी महाप्रलय के बाद ही जन्म होने की मान्यता है | यदि मध्य में कोई जन्म लेता है तो उससे उनके पूर्वाग्रहों को आघात पहुंचता है | इस प्रकार के प्रमाण उन वैज्ञानिकों के लिए भी चुनौती है जो मनुष्य को एक चलता-फिरता पौधा मानते हैं और मरण (death) के साथ ही उसकी सत्ता (existence) समाप्त हो जाने की बात कहते हैं | यदि आत्मा का — चेतना का — कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है और मरण के बाद ही उसका अंत हो जाता है तो पुनर्जन्म कैसे सम्भव होगा ? यदि पुनर्जन्म (regeneration) सिद्ध होता है तो आत्मा का अस्तित्व सिद्ध हो जाता और नास्तिकता (irreligion) की आधी जड़ कट जाती है |

मरणोत्तर जीवन (life after death) की पुष्टि आस्तिकता (religioner) का आधा पक्ष समर्थन कर देती है | उसके बाद ईश्वर की सिद्धि एवं कर्म व्यवस्था की बात कुछ अधिक कठिन नहीं रह जाती | कठिनाई तो तब पड़ती जब भौतिकवाद का वह प्रतिपादन सही सिद्ध होता जिससे पदार्थ (substance) को ही सब कुछ माना गया है | उसकी रासायनिक हलचलों की प्राणियों की उत्पत्ति और समाप्ति का कारण कहा गया है | ऐसी नास्तिकता यदि सही है तो फिर पुनर्जन्म की घटनाओं को कोई अस्तित्व दृष्टिगोचर नहीं होना चाहिए | यदि होता है तो उस प्रतिपादन को अमान्य ठहराना होगा  जिससे चेतना का — आत्मा का — अस्तित्व अस्वीकारा गया है |

पुनर्जन्म की बढ़ती मान्यताओं से प्रभावित होकर ब्रिटेन के दैनिक अखबार ‘डेली एक्सप्रेस‘ ने लगभग 1500-1600 ई ० में अपने पाठकों से जिन्हें उनके पूर्व जन्म की स्मृतियाँ हों सप्रमाण भेजने का निवेदन किया था | इस निवेदन का परिणाम यह हुआ की मात्र ब्रिटेन से ही एक हजार से अधिक घटनाओं का संकलन हो गया | उनमे कुछ प्रमुख घटनाएं ये हैं :-

1 : ओलिवर बेनर ने अपने पूर्वजन्म के संस्मरणों के सम्बन्ध में ‘डेली एक्सप्रेस’ के संपादक को लिखा की पूर्वजन्म में वह रेलवे विभाग में एक मजदूर के रूप में कार्य करते थे | उसका कार्य स्थल मिडहर्स्ट था | 70 वर्ष की उम्र में उसकी मृत्यु हुई थी | ओलिवर वेलर ने तत्कालीन अपने विभागीय और गैर विभागीय लोगों के सम्बन्ध में भी बहुत-सी जानकारी दीं | ‘डेली एक्सप्रेस’ के संपादक ने उक्त कथन की निष्पक्ष जांच हेतु मिडहर्स्ट नगर पालिका और रेलवे विभाग के कागजातों को देखने पर श्री ओलिवर वेलर द्वारा दी गयी समस्त जानकारी सत्य पायीं |

2 : एडवर्ड रियाल ने अपने पूर्वजन्म के संस्मरण में लिखा कि उसने 1685 ई ० में सेजमूर की प्रसिद्ध लड़ाई में एक सैनिक के रूप में भाग लिया था | उस समय उनकी उम्र 40 वर्ष की थी | इस लड़ाई में वह मारा गया था और अपने पीछे पत्नी के साथ दो लड़के छोड़ गया था | उस समय उनका नाम ‘जान फ्लेक्चर’ था | सरकारी कागजात का मिलान करने पर उपरोक्त कथन बिलकुल सत्य पाया गया |

3 : एक बार सम्मोहन अवस्था (hypnotism condition) में श्रीग्लेन फोर्ड 18वीं शदी की फ्रेंच बोल रहे थे इस समय जबकि वह आजकल की फ्रेंच भी नहीं जानते | इसी प्रकार उन्होंने सम्मोहनावस्था में ही बहुत ही सुन्दर पियानो बजाया था | जबकि व्यक्तिगत जीवन में पियानो बजाना उन्हें नहीं आता | इस सम्बन्ध में श्री कोर्ड ने बतलाया की 16वीं शदी में वह पियानो शिक्षक थे, जिसके संस्कार उनके अचेतन मस्तिष्क पर पड़े हुए हैं और सम्मोहनावस्था में वह प्रकट होते हैं | पूर्व जीवन में वह जब पियानो शिक्षक थे तो क्षय रोग के कारण उनकी मृत्यु हुई थी | उन्होंने उस स्थान का नाम भी बताया जहाँ उन्हें दफनाया गया था | खोज करने पर वह स्थान और बातें सत्य पायी गई |

4 : अनेक व्यक्तियों ने विभिन्न क्षेत्रों में अल्प आयु में अपनी रूचि के अनुकूल दृढ़ विश्वास के साथ अपनी क्षमताओं को विकसित किया — 16 वर्ष की आयु में जगतगुरु शंकराचार्य सभी शास्त्रों के ज्ञाता हुए | 14 वर्ष की अवस्था में रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने शेक्सपीअर के नाटक (dramatics of Sheksapiyar) मेकवेथ को बंगला भाषा में अनुदित (translate) कर दिखाया और बंगला नाटककार हरिश्चन्द्र चट्टोपाध्याय ने अपना प्रसिद्ध नाटक ‘अबुल हसन’ 14 वर्ष की अवस्था में ही लिखा | अंग्रेजी साहित्य की एक और बंगला कवियत्री तारादत्त ने भी 18 साल में महान ख्याति अर्जित की | संत ज्ञानदेव ने 14 वर्ष की अवस्था में भगवत गीता पर मराठी छंदों में ज्ञानेश्वरी टीका लिखा | भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने अपनी 7 वर्ष की आयु में गूढ़ एवं रहस्यमय दोहे (mysterious couplets) लिखे और 13 वर्ष की आयु में ही श्रीमती सरोजिनी नायडू ने 1300 पंक्तियों की एक अंग्रेजी कविता (poem) लिखकर संपूर्ण अंग्रेजी सभ्यता को एक विशाल चुनौती दी है |

5 : एक घटना जर्मनी की है | छः वर्षीय बालिका ‘लोना वेड फोर्ड’ को विश्व की पांच प्रसिद्ध भाषाओँ जर्मन, फ्रेंच, अंग्रेजी, हिंदी और जापानी की जानकारी थी | वह धारा-प्रवाह से इन भाषाओं (language) को बोल सकती थीं | इतनी काम आयु में इन भाषाओं को जानना स्वयं में एक आश्चर्य है | इसके लिए उक्त बालिका को किसी प्रकार का प्रशिक्षण नहीं मिला था, फिर भी उसे उन भाषाओं के बोलने व लिखने पर अधिकार था | ऐसा विश्वाश किया जाता है की जन्म-जात प्राप्त यह प्रतिभा पूर्वजन्मों के संस्कारों का प्रतिफल है, जो इस जन्म में साकार हो उठी है |

वैचारिक हठवादिता का जोर घटने से जो चीजें धर्मास्था या अंधविश्वास (religion faith or blind faith) का ही विषय न रहकर वैज्ञानिक शोध के क्षेत्र में आती जा रही हैं, उनमे से एक हैं — पुनर्जन्म (regeneration) | छोटी- छोटी प्रयोगशालाओं को ही तथ्य की सत्यता का मापदंड मान लेने वाले वैज्ञानिक अब इस दिशा में सकारात्मक चिंतन (positive thinking) कर रहे हैं |

अमेरिका के वर्जीनिया विश्वविद्यालय के परामनोविज्ञान (parapsychology) विभाग के अध्यक्ष डा० इयन स्टिवेंसन पिछले 30 वर्षों से इसी क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं | विगत दिनों वे भारत (India) आये थे और उन्होंने बताया की विस्तृत सर्वेक्षण से संसार के कुछ ऐसे भौगोलिक क्षेत्रों का पता चला है, जहां पूर्वजन्म की स्मृतियों वाले बच्चे अपेक्षाकृत अधिक संख्या में जन्म लेते है | ये क्षेत्र हैं — श्री लंका, उत्तर भारत, बर्मा, थायलैंड, तुर्की, इंडोनेशिया, उत्तर-पश्चिम अमेरिका | ऐसा क्यों है ? यह बता पाना कठिन है |

शरीर में उत्पत्ति शरीर की ही हो सकती है | किन्तु जीवात्मा शरीर नहीं है (but spirit or soul is not body) | शरीर से अलग वह एक चेतन अभौतिक पदार्थ (live immaterial substance) है | शरीर मात्र कर्त्तत्व, भोक्तृत्व और ज्ञानृत्व लक्षणों के प्रकाश का उपकरण है | माता या पिता के शरीर में पुत्र के जीवात्मा (spirit) की उत्पत्ति मानना किसी भी प्रकार  उचित नहीं है |क्योकि एक तो संतान अपना स्वयं का व्यक्तित्व लेकर जन्मती है | उसमे बहुत से स्वभाव माता-पिता से मिलते-जुलते हैं, परंतु संपूर्ण नहीं | अतः जीवात्मा का आरम्भ इस जीवन से नहीं होता अपितु इससे पूर्व की उसकी विद्यमानता सिद्ध हो जाती है | दूसरे एक ही माता-पिता के दो बच्चों का मानसिक, वैज्ञानिक और शारीरिक विकास भिन्न होता है | वह सब विकास के एक ही तल पर नहीं होते |

इस प्रकार प्रत्येक बच्चा अपने व्यक्तित्व को आरम्भ से ही प्रकाशित कर देता है | एक ही परिस्थिति में पलते हुए भी उनका विकास भिन्न- भिन्न लाइनों पर होता है और आगे चलकर यह भिन्नता और स्पष्ट हो जाती है |

पीपल और बरगद के छोटे-छोटे बीज अलग-अलग तो हैं , पर उनमे बहुत बड़ा भेद नहीं है | खेत की भूमि एक-सी, जल-ऋतु एक-सी होने पर भी एक पीपल का वृक्ष व एक बरगद का विशाल वृक्ष बन जाता है जिनमे बहुत अंतर है | भिन्नता उन दोनों के मूल में थी | इस भिन्नता को जन्म के पश्चात् तलाश करना भूल है |

अतः शारीरिक जीवन का आरम्भ जीवात्मा का आरम्भ नहीं है | (beginning of physical life is not beginning of spirit or soul) 

Credit : Akhand Jyoti Magazine

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Himanshu Kumar
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