प्रेमी के साथ प्रेम में जो सुख, आनंद और अहोभाव अनुभव होता है, वह क्या है

मैं ओशो के प्रवचन से बहुत ही प्रभावित हूँ। जब से मैंने इनका प्रवचन सुना तब से मैं इनका बहुत बड़ा फैन हो गया। इनका प्रवचन सुनने का मुझे लत से लग गया है। इनके एक-एक बात का प्रभाव मुझ पर बहुत ही गहराई से पड़ा। इनके एक-एक बात में सच्चाई होती है जिसको कोई झूठला नहीं सकता है।

sachcha pyar प्रेम love kya hai true love

ओशो प्रवचन (Osho Pravachan) :

प्रेमी के साथ प्रेम में जो सुख, आनंद और अहोभाव अनुभव होता है, वह क्या है ?

कल आपने कहा कि दूसरा कभी किसी को खुश नहीं कर सकता है लेकिन प्रेमी के साथ प्रेम में डूब जाने में जो सुख, आनंद और अहोभाव अनुभव होता है वह क्या है ? जल्दी मत कर लेना निर्णय। जड़ा बूढ़ों-बुजुर्गो से पूछना। यह सवाल मुक्ति ने पूछा है।

अभी प्रेम मकान के बाहर ही चक्कर लगा रही है। जड़ा बूढ़ों-बुजूर्गों से पूछना। वे कहते है :

जब तक मिले न थे जुदाई का था मलाल।
अब ये मलाल है कि तमन्ना निकल गई।
जब तक मिले न थे तब तक दूर होने की पीड़ा थी जब मिल गए तब पास होने की आकांक्षा भी निकल गई।
अब ये दुख है कि कैसे हटे कैसे भागे। जल्दी मत करना अभी।

जल्दी मत करना अभी जिसे तुम प्रेम, आनंद, अहोभाव कह रहे हो वह सब सपने सुने हुए है। अभी प्रेम पाना कहां है क्योंकि तुम अभी जैसे हो उसमें प्रेम फलित ही नहीं हो सकता। प्रेम ऐसा थोड़ा ही है कि तुम कैसे भी हो और फलित हो जाए। प्रेम जन्म के साथ थोड़े ही मिलता है। यह अर्जन है, उपलब्धि है, साधना है, सिद्धि है।

यही तो परेशानी है कि दुनिया में सारा आदमी यही सोच रहा है कि हम जन्म के साथ ही प्रेम करने का योग्यता लेकर आये है। धन कमाने की तुम थोड़ी बहुत कोशिश भी करते हो लेकिन प्रेम कमाने की तो कोई कोशिश भी नहीं करता। लेकिन हर एक माने बैठा है कि प्रेम तो है ही बस प्रेमी मिल जाए और काम शुरू।

जिसको तुम प्रेमी कहते हो उसे भी प्रेम का कोई पता नहीं है, दूर की ध्वनि भी नहीं सुनी है। ना तुम्हे पता है। जिसको तुम प्रेम समझ रहे हो वह सिर्फ मन की वासना है। जिसको तुम प्रेम समझ रहे हो दूसरे के साथ होने का आनंद वह केवल अपने साथ। तुम्हे कोई आनंद नहीं मिलता। अपने साथ परेशान हो जाते हो। अपने साथ ऊब और बोरियत पैदा होती है। दूसरे के साथ अपने को तुम थोड़ी देर भूल जाते हो, उसी को तुम दूसरे के साथ मिला आनंद कह रहे है। दूसरे के साथ तुम्हारा जो होना है वह अपने साथ ना होने का उपाय है, वह एक नशा है इससे ज्यादा कुछ नहीं। उतनी देर तुम अपने को भूल जाते हो, दूसरे भी अपने को भूल जाते है। ये आत्म-विस्मरण है आनंद नहीं। यह मूर्छा है, अहोभाव इत्यादि कुछ भी नहीं।

कल आपने कहा कि कोई दूसरा किसी को कभी खुश नहीं कर सकता है। निश्चित मैंने कहा है, वह कभी नहीं कर सकता है लेकिन किसी भी युवा को समझाना मुश्किल है क्योंकि युवक जो समझते है वह समय के पहले प्रौढ़ हो गया है। कभी कोई शंकराचार्य, कभी कोई बुद्ध समय के पहले समझ पाते है। अधिक लोग तो समय भी बीत जाता है, जवानी भी बीत जाती है, बुढापा भी बीतने लगता है, मौत द्वार पर आ जाता है तब तक भी समझ नहीं पाते। समझ का कोई संबंध तुम्हारे होश की तीव्रता से है।

अभी जिसको तुम सोचते हो प्रेमी के साथ प्रेम में डूब जाने में, अभी तुम अपने में नहीं डूबे हो तो दूसरों में कैसे डूबोगे। जो अपने में नहीं डूब सका वह दूसरों में कैसे डूबेगा। अभी तुम अपने ही भीतर जाना नहीं जानते, दूसरों के भीतर क्या खाक जाओगें।

बातचीत है अच्छे-अच्छे शब्द हैं, सभी जवान है, अच्छे-अच्छे शब्दों में अपने को झुठलाते है, भूलते है। जवानी में अगर किसी से कहो कि ये प्रेम वगैरह कुछ भी नहीं तो उन्हें ना तो सुनाई पड़ती है ये बात, अगर सुनाई भी पड़ जाए तो समझ में नहीं आती क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को एक भ्रांति है कि दूसरे को न हुआ होगा लेकिन मुझे तो होगा, हो रहा है। अभी यात्रा का पहला ही कदम पड़ा, बात पूरी हो जाने तो जरा, ठहरो जल्दी निर्णय मत करो। जिन्होंने जाना है ये जीवन का ये दौर, जिससे ये गुजरे है, उनसे पूछो

सुलगती आग, दहकता ख्याल, तपता बदन
कहाँ पर छोड़ गया कारवाँ पहाड़ों का।
वह जिसको वसंत समझा था, बहार समझी थी,
वह कहाँ छोड़ गई।
सुलगती आग, दहकता ख्याल, तपता बदन, एक रुग्ण दशा, एक बुखार।
सब दूर-दूर, सब इंद्रधनुष टूटे हुए।
सब सपनों के भवन गिर गए और एक सुलगती आग की जीवन हाथ से व्यर्थ ही गया।

लेकिन जब तुम सपनो में खोए हुए हो तो बताना ये बड़ी मुश्किल है कि ये सपना है। उसके लिए जागना बहुत जरूरी है। प्रेम अर्जित किया जाता है और जिसने प्रार्थना नहीं किया, वह कभी प्रेम नहीं कर पाया। इसलिए प्रार्थना को मैं प्रेम की पहली शर्त बनाता हूँ। जिसने कभी ध्यान नहीं किया, वह कभी प्रेम नहीं कर पाया क्योंकि जो अपने में नही गया, वह दूसरों में तो जा ही नहीं सकता और जो अपने में गया वह दूसरे में पहुंच ही गया क्योंकि अपने में जा के पता चलता है दूसरा है ही नहीं। दूसरे का ख्याल ही अज्ञान का ख्याल है।

मैंने सुना है मुल्ला नसीरुद्दीन अपने मित्र के साथ बैठा था और उसने अपने बेटे को कहा कि जा और तलघरे से शराब की बोतल ले आ। वो बेटा गया वह वापस लौट के आया। उस बेटे को थोड़ा कम दिखाई पड़ता है। उसकी आंखों में एक तरह की बीमारी है कि एक चीज दो दिखाई पड़ती है। उसने लौट के कहा कि एक बोतल ले आऊं या दोनो बोतल। नसीरुद्दीन थोड़ा परेशान हुआ क्योंकि बोतल तो एक ही है। अब अगर मेहमान के सामने ये कहे कि एक ही ले आओ तो मेहमान क्या कहेगे कि ये भी क्या कंजूसी है। अगर ये कहे कि दो ले आओ तो ये दो लाएगा कहाँ से, वहां एक ही है। अगर मेहमान के सामने ये कहे इस बेटे को एक चीज दो दिखाई पड़ती है तो नाम की बदनामी होगी और फिर इसकी शादी भी करनी है तो उसने कहा कि ऐसा कर एक को तू ले आ और एक को तू फोड़ दे। बाएं तरफ की फोड़ देना, दाएं तरफ की ले आना। क्योंकि बाएं तरफ की बेकार है। ऐसा उसने रास्ता निकला। बेटा गया उसने बाएं तरफ की फोड़ दी लेकिन बाएं तरफ था कुछ थोड़ी ही, एक ही बोतल थी वह फूट गई। बाएं तरफ और दाएं तरफ ऐसे कोई दो बोतले थोड़ी थी। एक ही बोतल थी दो दिखाई पड़ती थी वह बोतल फूट गई, शराब बह गया। वह बहुत परेशान हुआ। उसने लौटकर कहा बड़ी भूल हो गई, वह बोतल एक ही थी वह तो फूट गई।

मैं तुमसे कहता हूँ जहां तुम्हे दो दिखाई पड़ रहे है वहां एक ही है, तुम्हें दो दिखाई पड़ रहे है क्योंकि तुमने अभी एक को देखने की कला नहीं सीखी है। प्रेम है एक को देखने की कला लेकिन उस कला में उतरना हो तो पहले अपने ही भीतर की सीढ़ियों पर उतरना होगा क्योंकि वही तुम्हारे निकट है। भीतर जाओ, अपने को जानो, आत्म ज्ञान से ही तुम्हे पता चलेगा मैं और तुम झूठी बोतले थी जो दिखाई पड़ रही थी। नजर साफ न थी, अंधेरा था, बीमारी थी, एक के दो दिखाई पड़ रहे थे, भ्रम था। भीतर उतर के तुम पाओगे जिसको तुमने अब तक दूसरा जाना था वो भी तुम ही हो। दूसरे को जब तुम छूते हो तब तुम अपने ही कान को जरा हाथ घुमाकर छूते हो। वो तुम ही हो जरा चक्कर लगाकर छूते हो। जिस दिन ये दिखाई पड़ेगा उस दिन प्रेम। उसके पहले जिसे तुम प्रेम कहते हो कृपा कर उसे प्रेम मत कहो।

प्रेम क्या है ?

प्रेम शब्द बड़ा बहुमूल्य है। उसको तुम खराब मत करो। प्रेम शब्द बड़ा पवित्र है। उसे अज्ञान का हिस्सा मत बनाओ, उसे अंधकार से मत भरो। प्रेम शब्द बड़ा रौशन है वह अंधेरी में जलती एक समा है। प्रेम शब्द एक मंदिर है। जब तक तुम्हें मंदिर में जाना न आ जाए तब तक हर किसी जगह को मंदिर मत कहना क्योंकि हर किसी जगह को मंदिर कहो तो धीरे-धीरे तुम मंदिर को पहचानना ही भूल जाओगे और तुम मंदिर को भी हर कोई जगह समझ लोगे।

जिसे तुम अभी प्रेम कहते हो वह केवल कामवासना है। उसमें तुम्हारा कुछ भी नहीं है। शरीर के हॉर्मोन (hormone) काम कर रहे है तुम्हारा कुछ भी नहीं। स्त्री के शरीर से कुछ हॉर्मोन (hormone) निकाल लो तो पुरुष की इच्छा समाप्त हो जाती है। पुरुष के शरीर से कुछ हॉर्मोन निकाल लो स्त्री की आकांक्षा समाप्त हो जाती है। तुम्हारा इसमें क्या लेना देना है, केमिस्ट्री है थोड़ा रसायन शास्त्र है। अगर ज्यादा hormone डाल दिए जाए पुरुष के शरीर में तो वह दीवाना हो जाता है, पागल हो जाता है। मजनू के शरीर में थोड़े ज्यादा हॉर्मोन रहे होंगे और कुछ मामला नहीं है।

जिसको तुम प्रेम की दीवानगी कहते हो, वह रसायन शास्त्र से ठीक की जा सकती है और जिसको तुम प्रेम की सुस्ती कहते हो वह इंजेक्शन (injection) से बढ़ाई जा सकती है और तुम पागल हो सकते हो। इसे तुम प्रेम मत कहना। ये सिर्फ कामवासना है। और तुम जो प्रेम और अहोभाव और आनंद की जो बाते कर रहे हो जरा होश से करना, नहीं तो इन्हीं बातो के कारण बड़ा दुख पाओगे क्योंकि जब कोई स्वर भीतर से आता ना मालूम पड़ेगा अहोभाव का तो बड़ा frustration, बड़ा विषाद होता है। वह विषाद कामवासना के कारण नहीं होता है, वह तुम्हारी अपेक्षा थी, उसी के कारण होता है इसमें कामवासना क्या कसूर है।

हाथ में एक पैसा लिए बैठे थे और रुपया समझा था। जब हाथ खोला मुठ्ठी खोली तो पाया पैसा है। तो पैसा थोड़ी ही तुम्हे कष्ट दे रहा है। पैसा तो तब भी पैसा था, पहले भी पैसा था, अब भी पैसा है। पैसा पैसा है तुमने रुपया समझा था तो तुम पीड़ित हो, दुखी हो, रोते-चिल्लाते हो कि ये धोखा हो गया। तुमने जिसे प्रेम समझा है वह पैसा भी नहीं है, कंकड़-पत्थर है। जिस प्रेम की मैं बात कर रहा हूँ वह किसी और ही किसी दूसरे जगत का हीरा है, उसके लिए तुम्हे तैयार होना होगा। तुम जैसे हो वैसे ही वह नहीं घटेगा। तुम्हे अपने को बड़ा परिष्कार करना होगा, तुम्हें अपने को बड़ा साधना होगा। तब वह कहीं वह स्वर तुम्हारे भीतर पैदा हो सकता है लेकिन प्रत्येक व्यक्ति को जिंदगी में एक ही नशे का दौर होता है, कामवासना का दौर होता है। तब काम ही राम मालूम पड़ता है। जिस दिन यह बोध बदलता है और काम, काम दिखाई पड़ता है, उसी दिन तुम्हारी जिंदगी में पहली दफा राम की खोज शुरू होती है।

धन्य-भागी है वे जिन्होंने जान लिया कि ये प्रेम व्यर्थ है। धन्य भागी है वे जिन्होंने जान लिया कि ये अहोभाव केवल मन की आकांशा थी, कहीं है नहीं, कहीं बाहर नहीं था, सपना था, देखा। जिनके सपने टूट गए, आशाएं टूट गई धन्य भागी है वे क्योंकि उनके जीवन में एक नई खोज शुरू होती। उस खोज के मार्ग पर ही कभी प्रेम तुम्हे मिलेगा। प्रेम परमात्मा का ही दूसरा नाम है। इससे कम प्रेम की परिभाषा नहीं।

– ओशो प्रवचन

इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप्प इत्यादि पर अधिक से अधिक शेयर करे ताकि उनका भी प्रेम के प्रति नजरिया बदले और उनके जिंदगी में बदलाव आये।

इसी तरह का पोस्ट सीधे अपने ई-मेल पर पाते रहें के लिए अभी सब्सक्राइब करें।

Share your love
Himanshu Kumar
Himanshu Kumar

Hellow friends, welcome to my blog NewFeatureBlog. I am Himanshu Kumar, a part time blogger from Bihar, India. Here at NewFeatureBlog I write about Blogging, Social media, WordPress and Making Money Online etc.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *