पिछली पोस्ट में आत्मा के सातों वाहक शरीर और सातों भुवन के निर्माण के बारे में बतलाया था। इस पोस्ट में जानेगें – आत्मा लोक और आत्मा के दो खंड क्या है ? आत्मा और जीवात्मा से सबंधित शरीर क्या है ? भूलोक पर अवतार का जन्म कैसे होता है ? मुक्ति या निर्वाण किसे कहते है ? आत्मिक दृष्टि से मनुष्य की अशांति का कारण क्या है ?

आत्मा और जीवात्मा से सबंधित शरीर
आत्मा और जीवात्मा वैसे तो एक ही तत्व हैं मगर मन, विचार, भाव और इच्छाओं के आविर्भाव होने पर आत्मा ही जीवात्मा बन जाती है। प्रथम तीन शरीर विशुद्ध आत्मा से सबंधित है और शेष चार शरीर जीवात्मा से।
मन, विचार, भाव ये तीनों मिलकर अहंकार बनता है। आत्मा में, अहंकार का जन्म होते ही उनके पिछले तीनों शरीर अपने आप छूट जाते हैं मगर अपने-अपने भुवनों में उनका अस्तित्व बराबर बना रहता है। तीनों शरीरो से क्रमशः छोड़कर ‘आत्मा’ मनःशरीर में प्रवेश करती है। आत्मिक शरीर से सबंधित जो भुवन है उसे ‘आत्मा लोक‘ कहते हैं। इसी आत्मा लोक के निचले भाग में आकर विशुद्ध ‘जीवात्मा’ बनती है।
- मन और आत्मा (soul) एक ही पदार्थ के दो रूप है
- समाधि (samadhi) द्वारा एक अदृश्य सीमा रेखा के पार अनन्त में प्रवेश
आत्मा लोक और आत्मा के दो खंड – पहला प्रकृति तत्व प्रधान तथा दूसरा पुरुष प्रधान
आत्मा लोक परमशून्य के अंतर्गत हैं। इसमे दो प्रकार की आत्मायें निवास करती हैं पहली वे जो क्रम से ऊपर के भुवनों से आई है और दूसरी वे जो नीचे के भुवनों और लोकान्तरों से क्रमशः उन्नति करती हुई वहाँ पहुँचती है।
दिव्य आत्माओं को ही ऋषि कहते हैं। मगर उनमें कई भेद है और उसी भेद के कारण उनके अपने अनेकों लोक या मंडल हैं। इसी प्रकार विशुद्ध आत्माओं के भी भेद और उसके अनुसार मंडल है।
वे दिव्य आत्मायें भी विखंडित होती है जो प्राकृतिक नियम के अनुसार जीवात्मा बनकर क्रम से नीचे उतरती है और मानव शरीर द्वारा भूलोक में प्रकट होती है। जीवात्मा बनने के पहले वे दो खंडो में विभक्त होकर स्त्री पुरुष के रूप में अलग-अलग भूलोक में शरीर धारण करती हैं, मगर काल के अदृश्य प्रभाव में पड़कर दोनों खंड एक दूसरे से बिलकुल दूर हो जाते हैं। मगर दोनों खंड अज्ञात रूप से एक दूसरे की खोज में बराबर रहते हैं। आत्मिक दृष्टि से मनुष्य की अशांति का एकमात्र यही मूल कारण है।
भूलोक पर अवतार का जन्म कैसे होता है ?
यहां बात देना आवश्यक हैं कि आत्मलोक की अपनी एक सीमा रेखा है। ऊपर के लोकों से नीचे आने वाली दिव्यात्मायें पहले तो आत्मलोक में ही बने रहने की चेष्टा करती है मगर कभी-कभी किसी देवी प्रेरणा के वशीभूत होकर मानवीय दृष्टि से भौतिक अथवा लौकिक कल्याण और आध्यात्मिक व्यवधान के आत्मलोक से सीधे भूलोक में आ जाती है और मानव शरीर द्वारा अपने उद्देश्य को साकार करती है।
मगर सीमा पार करने तथा आत्मलोक से हटने के पहले दिव्य आत्मायें दो खंडों में विभक्त हो जाती हैं। पहला खंड प्रकृति तत्व प्रधान और दूसरा खंड पुरुष प्रधान होता है। दोनों खंड एक साथ अथवा काल चक्र के अनुसार थोड़े अंतर पर भूलोक में विशिष्ट स्त्री पुरुष के रूप में प्रकट होते हैं।
प्रकृति तत्व प्रधान आत्म खंड, पुरुष तत्व आत्म खंड की अपनी शक्ति होती है जिसके सहयोग से पुरुष रूप आत्म खंड भूलोक में सक्रिय होता है। इसी को हमारे धर्म में अवतार की संज्ञा दी गई है।
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मुक्ति या निर्वाण किसे कहते है और आत्मिक दृष्टि से मनुष्य की अशांति का कारण क्या है ?
इसी प्रकार विशुद्ध आत्मायें जो नीचे से क्रमशः उन्नति करती हुई आत्म लोक में पहुंची है यदि वे भी भूलोक में सत्य, कला, संगीत, शास्त्र, ज्ञान विज्ञान आदि के प्रचार और उनकी उन्नति के लिए आना चाहती है तो उनके भी दो खंड होते हैं। स्त्री प्रकृति तत्व प्रधान खंड उसकी प्रेयसी, प्रेमिका, पत्नी, मार्गदर्शिका के रूप में प्रकट होती है।
इन दोनों से अलग वे दिव्य आत्मायें भी विखंडित होती है जो प्राकृतिक नियम के अनुसार जीवात्मा बनकर क्रम से नीचे उतरती है और मानव शरीर द्वारा भूलोक में प्रकट होती है। जीवात्मा बनने के पहले वे दो खंडो में विभक्त होकर स्त्री पुरुष के रूप में अलग-अलग भूलोक में शरीर धारण करती हैं, मगर काल के अदृश्य प्रभाव में पड़कर दोनों खंड एक दूसरे से बिलकुल दूर हो जाते हैं।
मगर दोनों खंड अज्ञात रूप से एक दूसरे की खोज में बराबर रहते हैं। आत्मिक दृष्टि से मनुष्य की अशांति का एकमात्र यही मूल कारण है। जब तक दोनों खंड मिलकर पूर्णात्मा नहीं बन जाते तब तक वे काल प्रवाह में पड़े रहेंगे। कब दोनों मिलेंगे ? कब पूर्णात्मा बनेगे ? यह कोई नहीं बतला सकता। मगर जब पूर्णात्मा बनेंगे तो जीवात्मा की सीमा पारकर पुनः आत्मलोक में चले जाएंगे। इसी को मुक्ति कहते हैं या कहते हैं निर्वाण।
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उम्मीद करता हूँ यह पोस्ट आपको पसंद आया होगा। आत्मा लोक और आत्मा के दो खंड क्या है ? आत्मा और जीवात्मा से सबंधित शरीर क्या है ? भूलोक पर अवतार का जन्म कैसे होता है ? मुक्ति या निर्वाण किसे कहते है ? आत्मिक दृष्टि से मनुष्य की अशांति का कारण क्या है ? से सबंधित आपका कोई अगर प्रश्न हो तो आप मुझे कमेंट कर सकते है।
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