पिछली पोस्ट में आत्मा के वाहक शरीर के निर्माण के बारे में संक्षिप्त परिचय दिया था। इस पोस्ट में आत्मा के सात वाहक शरीर Physical Body, Etheric Body, Astral Body, Mental Body, Spiritual Body, Cosmic Body, Body Less का निर्माण कैसे होता है, के बारे में विस्तारपूर्वक जानेगें।
भुवन क्या है ?
सातों शरीरों से संबंधित इस ब्रह्मांड में मुख्यतः सात महाकेन्द्र हैं। जिन्हें भुवन के संज्ञा दी गयी है। एक भुवन से संबंधित असंख्य लोक लोकांतर हैं। प्रत्येक भुवन का अपना ज्ञान स्तर है। जिस भुवन को जो ज्ञान स्तर है आत्मा (aatma) अपने वाहन के माध्यम से उसे स्वीकार करती है।
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प्रथम भुवन और प्रथम शरीर (निर्वाण शरीर) का निर्माण
आठ बिंदु का एक सूक्ष्मातिसूक्ष्म रेणु का निर्माण जैसा हुआ है उसी प्रकार आठ सूक्ष्मता सूक्ष्म रेणु से एक सूक्ष्म रेणु का जन्म होता है। इन्हीं सूक्ष्म रेणुओं से प्रथम भुवन और प्रथम निर्वाण शरीर (body less)की रचना होती है। यह प्रथम भुवन और प्रथम शरीर आत्मा का निज लोक और निज शरीर है।
इस भुवन और उससे संबंधित लोक-लोकान्तरों जो दिव्य लोक के नाम से प्रसिद्ध है, के संस्कारों को लेकर आत्मा (aatma)अपने निज शरीर के साथ नीचे उतरती है। इसी स्थान से आत्मा की विश्व यात्रा शुरू होती है।
दूसरे भुवन और दूसरे शरीर (कॉस्मिक बॉडी) का निर्माण
आठ सूक्ष्म रेणु का एक रेणु होता है। दुसरे भुवन की रचना रेणुओं से हुई है। ब्रह्म शरीर (कॉस्मिक बॉडी) का भी निर्माण रेणुओं से हुआ है। आत्मा प्रथम शरीर के साथ इस शरीर को स्वीकार करती है।
तीसरे भुवन और तीसरे शरीर (स्प्रिच्युअल बॉडी) का निर्माण
आठ रेणु का एक सूक्ष्मातिसूक्ष्म परमाणु होता है। इससे तीसरे भुवन और उससे संबंधित लोक-लोकान्तरों के अतिरिक्त आत्मिक शरीर (स्प्रिच्युअल बॉडी) का निर्माण होता है। ये तीनों भुवन आत्मा (aatma) के अपने है और तीनों शरीर उसके निज शरीर है। इसलिए तीनों शरीरों को ‘दिव्य शरीर‘ या ‘योग काया’ कहते हैं।
आत्मा का स्वरूप दिव्य और निज रूप होता है। वह विकार रहित होता है। इन तीनों भुवनों का अस्तित्व प्रकाशमय है। इनके चारों तरफ विराट शुन्यमय गहनतम अंधकार है।
चौथे भुवन और चौथे शरीर (मेन्टल बॉडी) का निर्माण
दो सूक्ष्मातिसूक्ष्म परमाणु का एक सूक्ष्म परमाणु होता है। चौथे भुवन से संबंधित लोक-लोकांतर और शरीर का निर्माण इन्हीं सूक्ष्म परमाणुओं से होता है। यही वह स्थान है जहां आत्मा का एक भाग ‘मन’ के रूप में प्रगट होता है।
आत्मा और मन दोनों मिलकर पिछले शरीरों के साथ मनस शरीर (मेन्टल बॉडी) में प्रवेश करती है। इस भुवन और शरीर में आत्मा ‘जीवात्मा‘ पद वाच्य हो जाती है।
पांचवें भुवन और पांचवें शरीर (एस्ट्रल बॉडी) का निर्माण
दो सूक्ष्म परमाणु का एक परम अणु होता है। पांचवा भुवन संबंधित लोक-लोकांतर तथा सूक्ष्म शरीर (एस्ट्रल बॉडी) की रचना होती है। इस भुवन में और शरीर में जीवात्मा केवल मन को लेकर प्रवेश करती है। उसके साथ वाले पिछले चार शरीर उससे छूट जाते हैं।
अतः उसका दिव्य भाव समाप्त हो जाता है। मन से युक्त होने पर वह जीव भावी हो जाता है। अब तक आत्मा की सृष्टि थी किन्तु इस स्थान पर आत्मा तो साक्षी हो जाती है और मन हो जाता है सृष्टिकर्ता। सूक्ष्म शरीर ‘मन’ का प्रथम शरीर समझा जाता है। जीवात्मा और मन दोनों इसी सूक्ष्म शरीर को लेकर छठें भाव शरीर (इथरिक बॉडी) में प्रवेश करते हैं।
छठें भुवन और छठें शरीर (आकाशीय शरीर) का निर्माण
छठा शरीर आकाशीय है। इसी को भाव शरीर और वासना शरीर भी कहते हैं। आकाशीय शरीर दो प्रकार का होता है। पहले प्रकार को तो वासना शरीर और दूसरे प्रकार को पितृ शरीर कहते है। तीन परमाणु का एक त्रस रेणु और नौ त्रस रेणु का सूक्ष्मातिसूक्ष्म अणु का निर्माण होता है।
छठें भुवन एवं संबंधित लोक-लोकान्तरों की रचना दो प्रकार से हुई है। पहले प्रकार की जो छठें भुवन का ऊपरी भाग है त्रस रेणुओं के समूह से हुई है और निम्न भाग की सूक्ष्मातिसूक्ष्म अणु समूह से हुई है। इसी प्रकार पहले प्रकार के यानी पितृ शरीर का निर्माण त्रस रेणु और वासना शरीर का निर्माण सूक्ष्मातिसूक्ष्म अणुओं के समूह से होता है। यहीं से दृश्य जगत की भी सीमा शुरू होती है।
सातवें भुवन और सातवें शरीर (भौतिक शरीर) का निर्माण
दो सूक्ष्मातिसूक्ष्म अणु का एक सूक्ष्म अणु और आठ सूक्ष्म अणु का एक अणु होता है। सूक्ष्म अणु और अणु के सम्मिश्रण से सातवें भुवन का निर्माण समझना चाहिए। इसका एक भाग सूक्ष्म अणु निर्मित होने के कारण अव्यक्त है और दूसरा भाग अणुमय होने के फलस्वरूप व्यक्त है।
दोनों भाग दूध पानी के समान मिले हुए हैं। पहला भाग चतुर्थ आयाम (fourth dimension) के अंतर्गत आता है और दूसरा भाग आता है तृतीय आयाम (3rd dimension) के अंतर्गत। सूक्ष्म अणुओं से वासना शरीर यानी प्रेत शरीर और अणुओं से स्थूल भौतिक शरीर (physical body) का निर्माण होता है।
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