एक कागज ऊंची चारपाई : Akbar Birbal Ki Kahani (Akbar Birbal story in hindi) – बीरबल महीनों से बीमार थे। दरबार में वह नहीं आ रहे थे। शहंशाह अकबर से जब बीरबल को देखे बिना नहीं रह गया तो वह दो सैनिकों के साथ उनके घर पर पहुंच गए। अकबर को अपने घर पर देखकर बीरबल का बीमार चेहरा खिल गया।
अकबर ने उनसे उनके स्वास्थ्य के बारे में जैसे ही पूछा बीरबल उठकर शौचालय की ओर दौड़ पड़े। बीरबल के जाते ही अकबर के मन में विचार आया कि क्यों न बीरबल के बुद्धि बल की परीक्षा ली जाए। देखें बीमारी की हालत में बीरबल का दिमाग उतना ही चलता है या कुछ बदलाव आ गया है।

यह विचार आते ही शहंशाह ने अपने सैनिकों से कहा – ‘बीरबल की चारपाई के चारों पायों के नीचे कागज के चार टुकड़े रख दो।’
सैनिकों ने अगले पल ही शहंशाह के हुक्म का पालन किया और कुछ दूरी पर जाकर चुपचाप खड़े हो गए। इतने में बीरबल शौचालय से आ गए और चारपाई पर लेट गए। लेकिन वह अगले पर ही सिर उठाकर चारपाई के चारों तरफ देखने लगे।
बादशाह अकबर ने उनको अपनी बातों में उलझा कर रखने की बहुत कोशिश की। लेकिन बीरबल का ध्यान इधर-उधर भटक ही जाता। बादशाह ने बीरबल के मन की चंचलता को देखकर पूछ ही लिया, “क्या बात है बीरबल, तुम्हारा ध्यान हमारी बातों में नहीं लग रहा है ?”
बीरबल बोले, “हुजूर, मुझे जाने क्यों ऐसा जान पड़ता है जैसे कमरे में कुछ बदलाव किया गया है।”
“यह केवल तुम्हारा भ्रम है, बीरबल। कमरे में कहीं कोई बदलाव नहीं हुआ है। जैसा पहले था वैसा ही अभी भी है।” बादशाह यह कहकर शांत हो गए।
“नहीं जहांपनाह ! या तो मेरे घर की दीवारें कागजभर जमीन के नीचे चली गई है या मेरी चारपाई एक कागज की मोटाई जितनी ऊंची हो गई है।” बीरबल की बातें सुनकर शहंशाह अकबर बोले, “बीरबल, तुम बीमार हो और ऐसे में दिमाग में कुछ ना कुछ ऊल जलूल विचार आ ही जाते हैं।”
शहंशाह ने बीरबल को भ्रमित करना चाहा लेकिन चतुर बीरबल सब समझ गए और बोले, “हुजूर, यह मेरे मन का भ्रम नहीं है। मैं बीमार हूं लेकिन मेरी बुद्धि बीमार नहीं है।”
शहंशाह बीरबल को दिमागी रूप से स्वस्थ देखकर बहुत ही खुश हुए और बोले, “बीरबल हम तुम्हारी बीमारी को लेकर बहुत चिंतित थे। लेकिन तुम्हें और तुम्हारी बुद्धि को देखकर अब मेरी चिंता दूर हो गई”
फिर बादशाह ने हंसते-हंसते या बता दिया कि हां, तुम्हारी चारपाई एक कागज ऊंची हो गई है, क्योंकि तुम्हारी बुद्धि को जांचने के लिए हमने पायों के नीचे कागज के टुकड़े रखवा दिए हैं। यह कहकर शहंशाह ने उनके जल्दी स्वस्थ होने की ईश्वर से प्रार्थना की फिर अपने महल को लौट गए।
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