विश्वासघाती काजी : Akbar Birbal Long Story in Hindi – फातिमा बीबी नाम की एक विधवा महिला ने अपने बाकी दिन गुजारने के विचार से मक्का मदीना जाने का निर्णय लिया। उसकी कोई संतान नहीं थी। हज पर जाने से पहले फातिमा बीवी ने अपने सारे गहने बेचकर सोने की मोहरे ले ली।
अपने खर्च के लिए कुछ मोहरे बाहर रखकर बाकी 800 मोहरें एक थैली में बंद कर उसके मुंह पर लाख की मोहर लगा दी। फिर वह अपने घर के ही पास में रहने वाले काजी के घर उस थैली को लेकर पहुंच गए। वह काजी अपनी ईमानदारी और रहमदिली के लिए ही मशहूर था।
फातिमा बीवी को अपने घर पर देखकर काजी बहुत खुश हुआ और उनसे पूछा, “कहिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं ?” फातिमा बीवी बोली, “काजी साहब, आप जैसा ईमानदार, शरीफ और सत्यवादी इस पूरे शहर में कोई नहीं है। मैं चाहती हूं कि मेरी यह थैली आप रख ले ताकि मैं निश्चित होकर हज करने के लिए मक्का-मदीना जा सकूं।
इस थैली में 800 स्वर्ण मोहरें हैं। अल्लाह के करम से यदि मैं सही सलामत वापस आ गई तो मैं आपसे आकर इनको ले लूंगी और यदि मैं अल्लाह को प्यारी हो गई तो इस थैली के मालिक आप होंगे, फिर आपका जो मन करें इनका कर लेना।
फातिमा बीवी के इतना कहने पर काजी बोला, “बीवी साहिबा, आपका जो मन करें मेरे यहां निश्चित होकर रख सकती हैं। आपके लौटने तक मैं आपकी अमानत जान पर खेलकर भी सुरक्षित रखूंगा। आप आराम से हज करने के लिए जाइए।” काजी ने फातिमा बीवी को दिलासा देते हुए का तो वह मन- ही-मन काफी प्रसन्न हो गई।
फातिमा बीवी भी कोई साधारण महिला नहीं थी। थैली की प्रत्येक मोहर पर उसने एक छोटा-सा निशान बना दिया था, जो बहुत ध्यान से देखने पर ही नजर आ सकता था। फातिमा बीवी को जब मक्का-मदीना गए 5 वर्ष हो गए तो काजी को यही लगने लगा कि वह अब लौट कर नहीं आने वाली। वह निश्चित रूप से ही अल्लाह को प्यारी हो गई होगी।
ऐसा सोचते ही काजी के मन में पाप जग गया। उसकी नियत खराब हो गई। उसने मन-ही-मन यह फैसला कर लिया कि वह 800 मोहर हैं अब किसी को भी नहीं देगा। फातिमा बीवी अगर आ भी गई तो उनको भी नहीं।
एक रोज फातिमा बीवी अचानक ही मक्का-मदीना से लौट आईं और वह सीधे काजी के पास अपनी थैली मांगने के लिए चली गई। काजी ने उन्हें थैली वापस दे दी।
घर पहुंच कर फातिमा बीवी ने थैली का मुंह खोला तो आश्चर्य से उनकी आंखें फटी की फटी रह गई। थैली में सोने की मोहरों की जगह उतनी ही संख्या में पैसे और रांगे के टुकड़े थे। फातिमा बीवी का चेहरा बुझ गया। वह खुली थैली को लेकर काजी के घर पहुंची और कहा, “इसमें तो सोने की मोहरे नहीं है।”
काजी तेवर बदलते हुए बोला, “एक तो नेकी करो ऊपर से बदनामी भी… देखो बीवी साहिबा, मैंने तो केवल थैली रखी थी, उसमें सोने की मोहरे हैं या रांगे की यह तो मैंने देखा भी नहीं था। तुम जैसी थैली दे गई थी, वैसी ही मैंने रख ली थी। जैसी मोहर लगी थैली तुमने दी थी, वैसी ही मोहर लगी थैली मैंने लौटाई भी है। देखिए, आप मुझे बदनाम ना करें।”
काजी की बातें सुनकर फातिमा बीवी को चक्कर से आ गए। वह गिड़गिड़ाते हुए बोली, “काजी साहब, मुझ पर रहम करो। मैं एक निःसंतान बूढी विधवा हूं। मेरे आगे-पीछे मुझे देखने वाला कोई नहीं है। मुझ बेसहारा औरत पर रहम करो। वह मोहरे ही मेरे बुढ़ापे का सहारा है। आप सारी मोहरे नहीं देना चाहते हैं तो आधी ही दे दीजिए।
मैं तो आपको शहर का सबसे अधिक ईमानदार और रहम दिल इंसान समझ कर अपनी थैली सौंप गई थी। आपने तो मुझ बेसहारा विधवा के साथ ऐसा विश्वासघात किया कि मैं कहीं की भी न रही।” काजी काफी नाराज हो गया और आगे बढ़ते हुए धमकी भरे स्वर में बोला, “देखो बीवी, तुम यहां से चुपचाप इज्जत के साथ चली जाओ, नहीं तो धक्के मारकर बाहर कर दूंगा।”
विधवा फातिमा बीवी आंसू बहाती हुई काजी के घर से बाहर आ गई। अब उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें, क्या न करें, कहां जाए और कहां ना जाए ? फिर अचानक उनकी आंखों के सामने अकबर बादशाह का दरबार नाच गया। वह बदहवास-सा सीधे बादशाह अकबर के दरबार की ओर बढ़ गईं। दरबार में डरी-सहमी वह दाखिल हुईं, और अपनी सारी आपबीती कह सुनाई।
बादशाह ने काजी को दरबार में बुलाया और उससे पूछा, “इस वृद्धा औरत की थैली के विषय में तुम्हें मालूम है ?”
काजी हाथ जोड़कर कांपते स्वर में बोला, “जहांपनाह, कोई पांच वर्ष पहले यह बुढ़िया मेरे यहां एक थैली छोड़ गई थी। जब यह वापस आई तो मैंने सहर्ष इसकी मोहर लगी थैली से वापस दे दी। हुजूर, मुझे नहीं मालूम उस थैली में सोने की मोहरें थी या रांगे की टुकड़े।” काली ने बड़ी सफाई से जहांपना के सामने झूठ बोला।
लेकिन शहंशाह अकबर को काजी की बातों पर विश्वास नहीं हुआ। बादशाह ने काजी को घर जाने को कहा और फातिमा बीवी से कहा, “तुम शाही दरबार में हो। तुम्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हें पूरा न्याय मिलेगा। तुम्हारी मोहरें कुछ दिनों में ही तुम्हें मिल जाएगी।
शहंशाह ने यह हुक्म देकर बीरबल को यह विवाद सौंप दिया। यह विवाद बीरबल के हाथ में आते ही उन्होंने फातिमा बीवी से थैली ले ली और उस थैली को अपने घर ले गए। बीरबल ने वैसे ही कुछ थैलियां मंगवाकर उनमें कुछ-न-कुछ भरकर लाख की मोहरे लगवा दी। फिर उनमें सुराख कर दिए। तत्पश्चात शहर के सभी रफुगारों को एक-एक थैली दी और उनसे थैलियों के छेदों को रफू करवाया।
बीरबल ने सभी थैलियों को बड़ी बारीकी से देखा। एक थैली पर उनकी निगाह अटक गई। इसे बारीकी से देखने पर भी छेद का पता नहीं चल रहा था। बीरबल ने कहा, “इस थैली का रफू किस रफूगर ने किया है।” एक रफूगर चलकर के पास आया और बोला, “हुजूर, क्या बात है, मैंने रफू किया है।”
बीरबल उस रफूगर को लेकर एकांत में गए और डराते-धमकाते हुए उससे पूछा, “बताओ, काजी की थैली रफू किसने की थी ? तुमने की थी न ?”
रफूगर डर गया और उसने कबुल कर लिया कि काजी की थैली उसने ही रफू की थी।
बीरबल ने उससे पूछा, “सच-सच बोलना। तुमने यह थैली कब रफू की थी।”बीरबल ने तल्ख स्वर में पूछा तो रफूगर कांपते स्वर में बोला, “हुजूर, कोई दो साल हुए होंगे, एक काजी ने मुझसे यह थैली रफू करवाई थी।” “क्या तुम्हें पता है उस थैली में क्या रखा हुआ थी ?’ बीरबल ने रफूगर को घूरते हुए पूछा तो रफूगर सच को छिपा न सका और उसके मुंह से निकल गया, “हुजूर उस में कुछ तांबे के पैसे और रांगे के टुकड़े थे।”
“काजी ने इस काम के लिए क्या तुम्हें कुछ दिया था ?” बीरबल की कड़क आवाज के आगे रफूगर बिल्कुल ही ढीला पड़ गया। वह थमती आवाज में बोला, “दो मोहरें मिली थीं, मालिक।” “क्या वे मुहरें तुम्हारे पास अभी भी हैं। देखो, सच का साथ दोगे तो मैं तुम पर कोई आंच नहीं आने दूंगा।”
बीरबल एक कहते ही रफूगर बड़ी मुश्किल से बोला, “हुजूर, झूठ नहीं बोलूंगा। एक मुहरे तो खर्च हो गई है। हां, एक मुहर मेरे पास है।”
“वह मोहर मुझे चाहिए। ज्यादा होशियारी दिखाने की कोशिश की तो शाही कहर से तुम्हें मैं भी नहीं बचा सकता।” बीरबल के इतना कहते ही रफूगर भागा-भागा मोहर लाने चला गया।
बीरबल ने फातिमा बीबी और काजी को भी बुलवा लिया। रफूगर थोड़ी देर के बाद मोहरे लेकर बीरबल के पास आया तो काजी उसको देखते ही डर गया। बीरबल ने रफूगर से मोहर लेकर फातिमा बीबी के हाथ में रख दी और कहा, “तुमने अपनी मोहरों पर निशानी लगाई थी न। दिखाओ वह निशानी कहां है। “
फातिमा बीबी ने पलक झपकते ही अपना निशान बीरबल को दिखा दिया। अब बीरबल ने रफूगर की ओर थैली करके कहा, “बोलो रफूगर, यह वही थैली है न ?”
“हां हुजूर, यह वही थैली है।” रफूगर रुक-रुककर बोला।
“हां तो….” बीरबल तल्ख आवाज में बोले, “तुमने कहां पर रफू किया था, बोलो ?” रफूगर थैली पर हाथ धरते हुए बोला, “यहां पर हुजूर। मेरा काम साफ नजर आता है।” काजी के तो पसीने छूटने लगे। उसके पास ऐसा कोई जवाब ही नहीं था कि वह अपने बचाव में कुछ कह सके।
बीरबल गरजकर बोले, “इस काजी को जंजीरों में बांधकर जेल में डाल दिया जाए।” इसके बाद काजी के घर की तलाशी ली गई और फातिमा बीबी की मोहरें उसके घर से बरामद हुईं। फातिमा बीबी ने अपना निशान सभी मोहरों पर दिखा दिया। बीरबल ने उन सारी मुहरों को उसे दे दिया। रफूगर को ईनाम देकर जाने दिया गया। बादशाह सलामत बीरबल के फैसले से बहुत खुश हुए।
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