बुजुर्गों से मिला ज्ञान : Akbar Birbal New Story in Hindi – बादशाह अकबर के मन में हमेशा कोई ना कोई सवाल उठता ही रहता था। एक दिन बादशाह सलामत ने बीरबल से कहा, “बीरबल, दरबार में एक ऐसे आदमी को ढूंढ कर ले आओ, जो बहुत ही बुद्धिमान हो।”
बीरबल कुछ देर शांत रहे, फिर बोले, “जहांपनाह, मैं जल्दी ही ऐसा आदमी ढूंढकर दरबार में ले आऊंगा। लेकिन इसके लिए समय और धन की आवश्यकता पड़ेगी।”
बादशाह अकबर बोले, “बीरबल, सोने की 300 मोहरें और एक हफ्ते का समय हम तुम्हें देते हैं।”

धन और एक हफ्ते का अवकाश लेकर बीरबल अपने घर चले गए। सारा धन उन्होंने दीन-दुखियों में बांट दिया। सप्ताह के अंतिम दिन बीरबल ने एक चरवाहे को पकड़ा और उसे स्नान करवाकर अच्छे कपड़े पहनाए तथा सोने की सौ मोहरें उसे देकर दरबार में ले आए। रास्ते में ही चरवाहे को बता दिया कि उसे बादशाह सलामत के सामने कैसा व्यवहार करना है।
बादशाह अकबर के दरबार में पधारते ही बीरबल ने कहा, “जहांपनाह, मैं बुद्धिमानों का बुद्धिमान व्यक्ति ढूंढ कर लाया हूं।”
सांसद ने चरवाहे को देखते हुए पूछा, “तुम्हारे माता-पिता तुम्हें क्या कहकर बुलाते हैं ? तुम कहां के रहने वाले हो। तुम कौन-सी खास बात जानते हो ?” एक साथ इतने सवाल बादशाह अकबर ने कर दिए। लेकिन चरवाहे ने किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया, क्योंकि बीरबल ने उसे पहले से ही चुप रहने के लिए कहा था।
बादशाह ने शिकायत भरे लहजे में बीरबल से कहा, “बीरबल, यह कहीं गूंगा और बहरा तो नहीं है ? इसने तो हमारे किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया। भला यह बुद्धिमानों का बुद्धिमान कैसे हो सकता है ?
बीरबल ने शीश नवा कर कहा, “हुजूर, यह इसकी बुद्धिमानी है। इसने अपने बड़े-बूढ़ों से सीख रहा है कि राजा और स्वयं से अधिक समझदार व्यक्ति के सामने चुप रहने में ही भलाई है। यह उनसे मिले ज्ञान का अनुसरण कर रहा है।
बादशाह अकबर बीरबल के इस तर्क के आगे अब क्या बोलते। वे मुस्कुराकर ही रह गए और चरवाहे को इनाम देकर सम्मान के साथ दरबार से विदा किया।
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