भगवान को भक्त प्यारा : Akbar Birbal Short Story in hindi – शहंशाह अकबर ने एक बार बीरबल से सवाल करते हुए कहा, “बीरबल हमने सुना है कि हाथी की पुकार सुनकर श्रीकृष्ण उसकी सहायता करने के लिए नंगे पांव दौड़े चले आए थे। ना उनके साथ नौकर थे, ना कोई सिपाही था, ना कोई घोड़ागाड़ी। बीरबल, हमारी समझ में इसका कारण नहीं आता। क्या उनके पास नौकर नहीं थे या नौकरों का अभाव था ?”
बीरबल थोड़ा मुस्कुराए, फिर बोले “जहांपनाह, मैं इसका जवाब देने के लिए आपसे कुछ दिनों का समय चाहता हूं।”
कुछ दिनों के बाद बीरबल एक शाही नौकर से मिले, जो शहंशाह के पोते की देखभाल करता था। उस शाही नौकर से इजाजत लेकर बीरबल बादशाह के पोते को एक शिल्पकार के पास ले गए और उससे कहा कि इस बच्चे की सूरत से मिलता-जुलता मोम का एक पुतला तैयार कर दो।
पुतला जब तैयार हो गया तो बीरबल ने पुतले को शाही वस्त्र आभूषणों से सजा दिया, फिर उन्होंने मोम के पुतले को उसी नौकर को देते हुए कहा, “इस पुतले को रोज की तरह बादशाह के सामने ले जाना और पास के तालाब में फिसल जाने का नाटक करते हुए गिर पड़ना। लेकिन इस बात का अवश्य ध्यान रखना कि पुतला तालाब में गिरे और तुम तालाब के किनारे पर ही गिरना। अगर तुम इस नाटक को करने में सफल रहे तो तुम्हें ढेरों इनाम मिलेंगे।”
शाही नौकर ने इनाम के लालच में बीरबल ने जैसा कहा था, वैसा ही किया। वह मोम के पुतले को लेकर तालाब के पास आया और मोम का पुतला पानी में गिराकर वह स्वयं भी तालाब के किनारे पर गिर पड़ा।
बादशाह अकबर दूर से ही यह सब देख कर घबरा गए और जिस हाल में थे उसी हाल में दौड़ते हुए आए और तालाब में कूदकर पुतले को लेकर तालाब के बाहर आ गए। हाथ में मोम का पुतला देखकर अकबर समझ गए कि यह बीरबल का ही किया धरा है।
बीरबल ने झट से कहा, “जहांपना, इतने नौकर-चाकर हैं, घोड़ागाड़ी हैं, सिपाहियों की इतनी बड़ी फौज है, फिर भी आप स्वयं अकेले ही तालाब में क्यों कूद पड़े ?” शहंशाह अब कहते भी क्या, वह तो आश्चर्य से भरे मौन खड़े रह गए।
बीरबल हंसने लगे, “हुजूर, अब तो कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है। जिस तरह से आपको अपना पोता प्यारा है, उसी तरह से भगवान श्री कृष्ण को उनके भक्त प्यारे हैं। यही कारण है कि गजराज की एक पुकार पर पैदल ही दौड़े चले आए थे।”
बादशाह अकबर बीरबल के जवाब से संतुष्ट थे और उन्होंने बीरबल को ढेरों इनाम से सुशोभित किया।
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