Chalukya vansha / dynasty history notes in hindi : चालुक्य दक्षिण और मध्य भारत में राज करने वाले शासक थे जिनका प्रभुत्व छठी से बारहवीं शताब्दी तक रहा। अपने महत्तम विस्तार के समय यह वर्तमान समय के संपूर्ण कनार्टक, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिणी मध्य प्रदेश, तटीय दक्षिणी गुजरात तथा पश्चिमी आंध्र प्रदेश में फैला हुआ था। इस पोस्ट में कल्याणी के चालुक्य वंश (kalyani ke chalukya vansh), वातापी / बादामी के चालुक्य वंश (vatapi / badami ke chalukya vansha) एवं बेंगी के चालुक्य वंश (vengi ke chalukya dynasty) के बारे में जानेंगे।
चालुक्य वंश का इतिहास : Chalukya Vansha History in Hindi
चालुक्य राजाओं की मुख्यतः तीन शाखाएँ थी :
- कल्याणी के चालुक्य (पश्चिमी शाखा)
- वातापी / बादामी के चालुक्य (मूल शाखा)
- वेंगी के चालुक्य (पूर्वी शाखा)
कल्याणी के चालुक्य वंश (Chalukya Dynasty of Kalyani)
चालुक्य वंश (कल्याणी) के शासक
शासक का नाम | शासन काल |
तैलप द्वितीय | 973-997 ई० |
सत्याश्रय | 997-1006 ई० |
विक्रमादित्य पंचम | 1006-1015 ई० |
जयसिंह द्वितीय | 1015-1043 ई० |
सोमेश्वर प्रथम | 1068-1076 ई० |
सोमेश्वर द्वितीय | 1068-1076 ई० |
विक्रमादित्य षष्ठ | 1076-1126 ई० |
सोमेश्वर तृतीय | 1126-1138 ई० |
जगेदक मल्ल द्वितीय | 1138-1155 ई० |
तैलप तृतीय | 1155-1163 ई० |
जगेदक मल्ल तृतीय | 1163-1183 ई० |
सोमेश्वर चतुर्थ | 1184-1200 ई० |
तैलप द्वितीय (Tailapa II)
- कल्याणी के चालुक्य वंश की स्थापना तैलप द्वितीय ने की थी।
- तैलप द्वितीय ने अपनी राजधानी मान्यखेट को बनाई।
- तैलप II ने ‘अश्वमाल‘ की उपाधि धारण की।
- मेरुतुंग नाम के कवि इनके दरबार में रहते थे।
सत्याश्रय (Satyashraya)
- अपने पिता तैलप द्वितीय की मृत्यु के बाद सत्याश्रय शासक बना।
- इसी समय में महमूद गजनवी ने उत्तर भारत पर आक्रमण किया था।
जयसिंह द्वितीय (Jaysimha II)
- जयसिंह द्वितीय अपने भाई विक्रमादित्य पंचम की मृत्यु के बाद शासक बना।
- जयसिंह द्वितीय और चोल शासक राजेन्द्र प्रथम के बीच युद्ध हुआ जिसमें जयसिंह हार गया।
सोमेश्वर प्रथम (Someshvara I)
- अपने पिता जयसिंह द्वितीय की मृत्यु के बाद सोमेश्वर प्रथम राजगद्दी पर बैठा।
- सोमेश्वर प्रथम ने मान्यखेट से राजधानी हटाकर कल्याणी (कर्नाटक) को बनाया।
विक्रमादित्य षष्ठ (Vikramaditya VI)
- कल्याणी के चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी शासक विक्रमादित्य षष्ठ था।
- यह अपने भाई सोमेश्वर द्वितीय को युद्ध में पराजित करने के बाद शासक बना।
- विल्हण एवं विज्ञानेश्वर विक्रमादित्य षष्ठ के दरबार में रहते थे।
- मिताक्षरा (हिन्दू विधि ग्रंथ, याज्ञवल्क्य स्मृति पर व्याख्या) नामक ग्रंथ की रचना महान विधिवेत्ता विज्ञानेश्वर ने की थी।
- विक्रमांकदेवचरित की रचना विल्हण ने की थी। इसमें विक्रमादित्य षष्ठ के जीवन पर प्रकाश डाला गया है।
- इसने 1076 ई० में चालुक्य विक्रम संवत चलाया था।
- विक्रमादित्य षष्ठ कल्याणी के चालुक्य वंश का अंतिम शक्तिशाली शासक था।
विक्रमादित्य षष्ठ की मृत्यु के बाद कल्याणी के चालुक्यों की अवनति शुरू हो गई।
वातापी / बादामी के चालुक्य वंश (Vatapi / Badami Ke Chalukya Vansha)
वातापी के चालुक्य वंश की स्थापना पुलकेशिन प्रथम ने की थी। महकूट अभिलेख के अनुसार इससे पूर्व दो और शासकों – जयसिंह एवं रणराग के नाम भी आते है। लेकिन ये स्वतंत्र शासक नहीं थे बल्कि कदम्ब शासकों के अधीन सामंत थे। चालुक्यों की मूल शाखा का उदय स्थल वातापी /बादामी (बीजापुर, कर्नाटक) में हुआ था।
चालुक्य वंश (वातापी / बादामी) के शासक
शासक का नाम | शासन काल |
पुलकेशिन प्रथम | 543-566 ई० |
कीर्तिवर्मन प्रथम | 566-597 ई० |
मंगलेश | 597-610 ई० |
पुलकेशिन द्वितीय | 610-642 ई० |
विक्रमादित्य प्रथम | 655-680 ई० |
विनयादित्य | 680-696 ई० |
विजयादित्य | 696-733 ई० |
विक्रमादित्य द्वितीय | 733-746 ई० |
कीर्तिवर्मन द्वितीय | 746-757 ई० |
पुलकेशिन प्रथम (Pulkeshina I)
- वातापी / बादामी के चालुक्य वंश की स्थापना पुलकेशिन प्रथम ने की थी।
- इसकी राजधानी वातापी (बीजापुर के निकट) थी।
- इसने स्तायश्रय, रणविक्रम, श्रीपृथ्वीबल्लभ जैसी कई उपाधियाँ धारण की थी।
- कीर्तिवर्मन प्रथम और मंगलेश इनके पुत्र थे।
- पुलकेशिन प्रथम ने अश्वमेंघ एवं वाजपेय यज्ञ करवाये थे।
कीर्तिवर्मन प्रथम (Kiritivarmana I)
- कीर्तिवर्मन अपने पिता पुलकेशिन प्रथम के मृत्यु के बाद शासक बना।
- इसने पुरू-रणपराक्रम एवं सत्याश्रय की उपाधी धारण की।
- महाकूट स्तम्भलेख में इसके द्वारा किए गए बहुसुवर्ण-अग्निष्टोम यज्ञ का उल्लेख मिलता है।
- इनके द्वारा बादामी में गुहा मंदिरों का निर्माण शुरू करवाया गया था।
- वातापी का निर्माणकर्त्ता कीर्तिवर्मन को माना जाता है।
मंगलेश (Mangalesha)
- मंगलेश अपने भाई कीर्तिवर्मन प्रथम की मृत्यु के बाद राजगद्दी पर बैठा।
- यह वैष्णव धर्म का अनुयायी था।
- इसने परमभागवत की उपाधि धारण की थी।
- मंगलेश ने बादामी के गुहा मंदिरों का निर्माण पूरा करवाया था।
पुलकेशिन द्वितीय (Pulkeshina II)
- पुलकेशिन द्वितीय अपने चाचा मंगलेश की हत्या कर चालुक्य वंश का अगला शासक बना।
- यह इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था।
- महाकूट स्तम्भ लेख से प्रमाणित होता है कि पुलकेशिन द्वितीय बहु सुवर्ण एवं अग्निष्टोम यज्ञ सम्पन्न करवाया था।
- जिनेन्द्र का मेगुती मंदिर पुलकेशिन II ने बनवाया था।
- पुलकेशिन II ने हर्षवर्धन को हराकर परमेश्वर की उपाधि धारण की थी।
- इसने दक्षिणापथेश्वर की उपाधि भी धारण की थी।
- इसके राजकवि रविकीर्ति द्वारा रचित ऐहोल अभिलेख से इसके बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
- पल्लववंशी शासक नरसिंह वर्मन प्रथम ने पुलकेशिन द्वितीय को लगभग 642 ई० में परास्त किया और उसकी राजधानी बादामी पर अधिकार कर लिया। संभवतः इसी युद्ध में पुलकेशिन II मारा गया। इसी विजय के बाद नरसिंहवर्मन ने ‘वातापिकोड‘ की उपाधि धारण की।
- अजंता के एक गुहाचित्र में फारसी दूत-मंडल को स्वागत करते हुए पुलकेशिन II को दिखाया गया है।
- चीनी यात्री ह्वेनसांग 641 ई० में पुलकेशिन द्वितीय के दरबार में आया था।
विनयादित्य (Vinayaditya)
- अपने पिता विक्रमादित्य प्रथम की मृत्यु के बाद 680 ई० में यह शासक बना।
- मालवा को जीतने के बाद विनयादित्य ने सकलोत्तरपथनाथ की उपाधि की धारण की।
विक्रमादित्य द्वितीय (Vikramaditya II)
- विक्रमादित्य द्वितीय के शासनकाल में ही दक्कन में अरबों ने आक्रमण किया। इस आक्रमण का मुकाबला विक्रमादित्य के भतीजा पुलकेशी ने किया।
- इस अभियान की सफलता पर विक्रमादित्य II ने पुलकेशी को अवनिजनाश्रय की उपाधि प्रदान की।
- विक्रमादित्य II की प्रथम पत्नी लोकमहादेवी ने पट्टदकल में विरूपक्षमहादेव मंदिर तथा उसकी दूसरी पत्नी त्रैलोक्य देवी ने त्रैलोकेश्वर मंदिर का निर्माण करवायी।
कीर्तिवर्मन द्वितीय (Kirtivarmana II)
- वातापी / बादामी के चालुक्य वंश का अंतिम राजा कीर्तिवर्मन द्वितीय था।
- इसे इसके सामंत दंतिदुर्ग ने परास्त कर एक नए वंश (राष्ट्रकूट वंश) की स्थापना की।
ऐहोल को मंदिरों का शहर कहा जाता है।
बेंगी के चालुक्य वंश (Vengi ke Chalukya Vansha)
- बेंगी के चालुक्य वंश के संस्थापक पुलकेशिन द्वितीय का भाई विष्णुवर्धन था।
- इसकी राजधानी बेंगी (आंध्र प्रदेश) में थीं।
- इस वंश के प्रमुख शासक थे : जयसिंह प्रथम, इन्द्रवर्धन, विष्णुवर्धन द्वितीय, जयसिंह द्वितीय एवं विष्णुवर्धन तृतीय।
- इस वंश के सबसे प्रतापी राजा विजयादित्य तृतीय था, जिसका सेनापति पंडरंग था।
कल्याणी, वातापी एवं बेंगी के चालुक्य वंश से प्रश्न उत्तर (Chalukya Vansha GK Question Answer in Hindi)
- ऐहोल प्रशस्ति का रचयिता रविकीर्ति किस चालुक्य शासक का दरबारी कवि था – पुलकेशिन II
- बादामी में दुर्ग का निर्माण करवाने तथा बादामी को राजधानी बनाने का श्रेय किस चालुक्य शासक को है – पुलकेशिन प्रथम
- किस चालुक्य शासक (chalukya emperor) ने थानेश्वर व कन्नौज के महान शासक हर्षवर्धन को नर्मदा के तट पर परास्त किया और उसे दक्षिण की तरफ बढ़ने से रोका – पुलकेशिन II
- चालुक्य-पल्लव संघर्ष के दौरान किसने पुलकेशिन II की हत्या कर वातापी पर कब्जा कर लिया तथा ‘वातापिकोंडा’ (वातापी का विजेता) की उपाधि धारण की – नरसिंहवर्मन प्रथम
- किस चालुक्य शासक ने चेर, चोल व पांड्य को हराया, जिस कारण उसे ‘तीनों समुद्रों (बंगाल की खाड़ी, हिन्द महासागर व अरब सागर) का स्वामी’ भी कहा गया – विक्रमादित्य प्रथम
- चालुक्य वंश का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक कौन था – पुलकेशिन द्वितीय
- विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण किसने किया था – चालुक्य
- रविकीर्ति द्वारा निर्मित जिनेन्द्र मंदिर / मेगुती मंदिर, ऐहोल का संबंध है – जैन धर्म से
- ऐहोल का लाढ़ खाँ मंदिर किस देवता को समर्पित है – सूर्य
- पापनाथ का मंदिर, पत्तडकल्ल का निर्माण किस वंश के शासक ने किया – वातापी के चालुक्य
- वेंगी के चालुक्य राज्य का चोल साम्राज्य में विलय किसने किया – राजेन्द्र तृतीय (कुलोत्तुंग चोल प्रथम)
- ‘विक्रमांकचरित’ का रचयिता विल्हण एवं मिताक्षरा के रचनाकार विज्ञानेश्वर के संरक्षक शासक कौन थे – विक्रमादित्य षष्ठ
- ‘मिताक्षरा’ की विषयवस्तु है – हिन्दू पारिवारिक विधि संहिता
- कल्याणी के चालुक्य वंश (chalukya dynasty of kalyani) के शासक तैलप द्वितीय ने राजधानी किसको बनाई – मान्यखेट
- सोमेश्वर प्रथम ने मान्यखेट से राजधानी हटाकर किसको बनाया – कल्याणी (कर्नाटक)
- जिनेन्द्र का मेगुति मंदिर किसने बनवाया – पुलकेशिन द्वितीय
- पुलकेशिन द्वितीय ने हर्षवर्धन को हराकर किसकी उपाधि धारण की थी – परमेश्वर
- वातापी (vatapi) का निर्माणकर्त्ता किस चालुक्य शासक को माना जाता है – कीर्तिवर्मन
- मालवा को जितने के बाद विनयादित्य ने किसकी उपाधि धारण की – सकलोत्तरपथनाथ
- विक्रमादित्य II की प्रथम पत्नी लोकमहादेवी ने पट्टदकल में किस मंदिर का निर्माण करवाया – विरूपक्षमहादेव मंदिर
- विक्रमादित्य द्वितीय की दूसरी पत्नी त्रैलोक्य देवी ने किस मंदिर का निर्माण करवायी – त्रैलोकेश्वर मंदिर
- वातापी के चालुक्य वंश (chalukya dynasty of vatapi) का अंतिम राजा कौन था – कीर्तिवर्मन द्वितीय
- मंदिरों का शहर किसे कहा जाता है – ऐहोल
- वेंगी की चालुक्य वंश का संस्थापक कौन था – विष्णुवर्धन
- वेंगी के चालुक्य वंश का सबसे प्रतापी राजा कौन था – विजयादित्य तृतीय
- विजयादित्य तृतीय का सेनापति कौन था – पंडरंग
चालुक्य राज्य / राजवंश एवं उसकी राजधानी
राज्य / राजवंश | राजधानी |
प्राचीनतम चालुक्य / चालुक्य की मूल शाखा | वातापी / बादामी, कर्नाटक |
पूर्वी चालुक्य | वेंगी, आंध्र प्रदेश |
पश्चिमी चालुक्य | कल्याणी, कर्नाटक |
चालुक्य राज्य एवं उसके संस्थापक
राज्य | संस्थापक |
वातापी के चालुक्य / मूल चालुक्य | पुलकेशिन प्रथम |
वेंगी के चालुक्य / पूर्वी चालुक्य | कुब्ज विष्णुवर्धन |
कल्याणी के चालुक्य / पश्चिमी चालुक्य | तैलप द्वितीय |
प्राचीन भारतीय इतिहास नोट्स :
- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत : Source of Ancient Indian History in Hindi
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