डरु मैं किस लिए गुस्से से, प्यार में क्या था : ओशो प्रवचन

ओशो प्रवचन (Osho Pravachan)

डरु मैं किस लिए गुस्से से, प्यार (pyar) में क्या था

daru mai kisliye gusse se pyar me kya tha

ओशो कहते है :

थोड़ा तुम सोचो भी कौन तुम्हें सुख दे पाता है ? कौन तुम्हे दुख दे पाता है ? सब तुम्हारे मन का ही हिसाब है। घड़ी भर पहले जो बात सुख देती थी, घड़ी भर बाद दुख देनी लगती है। अभी जो बात दुख दे रही है, घड़ी भर बाद सुख दे सकती है। तुम्हारी व्याख्या तुम कैसे उस बात को पकड़ते हो, क्या उस बात को रंग देते हो, क्या रूप देते हो और अगर यह तुम्हे दिखाई पड़ जाए कि कोई दूसरा सुख नहीं दे सकता तो दुख कैसे देगा। किसने कभी तुम्हे सुख दिया है याद है कुछ। किसने कभी तुम्हें आनंद दिया है याद है कुछ। और जब किसी ने कभी जब सुख नहीं दिया तो दुख कोई क्या देगा। मैं कल गीत पढ़ता था बात मूल्यवान लगी –

डरु मैं किस लिये गुस्से से, प्यार में क्या था ?
मैं अब खीजा जो रोऊ, बहार में क्या था ?
डरु मैं किस लिए गुस्से से, प्यार (pyar) में क्या था ?
जब दूसरे के प्यार से कुछ ना मिला
तब उसके गुस्से से क्या परेशान होना है।
जब प्यार ही कुछ ना दे सका तो गुस्सा क्या छीन लेगा।
मैं अब खीजा जो रोऊ, बहार में क्या था ?
और अब पतझड़ आ गई, सब विरान हुआ जाता है।
इसको रोऊ लेकिन बहार में क्या था ?
जब बहार थी तब भी कुछ पास न था।
जब बहार में भी कोई सुख ना मिला,
अब पतझड़ में दुख का क्या प्रयोजन ?

लेकिन आदमी बड़ा अजीब है, जिनसे तुम्हें सुख नहीं मिला, उनसे भी तुम दुख ले लेते हो। जिनके जीते-जी तुम्हें शांति नहीं मिली, उसके मरने पर तुम रोते हो।

मैं एक युगल को जानता हूँ। जब तक पति जिंदा रहा, पति और पत्नी निरंतर क्लेह करते रहे। कभी-कभी वे मेरे पास आते थे लेकिन सुलझाव कोई आसान न था। सब सुलझाव सुलझ जाए लेकिन पति-पत्नी के बड़ी मुश्किल से सुलझते है क्योंकि सुलझाना ही नहीं चाहते। शायद वही उनकी जिंदगी है, वही व्यस्थता है, वही कुल भराव है वो भी चला जाए तो बड़ा खाली हो जाता है। कई बार तलाक देने की भी बात होती है लेकिन उस पर भी राजी नहीं हो पाते थे फिर पति शराब पीने लगा और शराब पीते-पीते मरा। जवान ही था अभी कोई 36 साल उम्र थी ज्यादा नहीं था। जब मार गया तो पत्नी मेरे पास आई। मैंने उनसे कहा कि अब तू रोना बंद कर क्योंकि जिस आदमी के कारण तू कभी हंसी नहीं उसके लिए रोना क्या और मैं जानता हूँ कि हजार बार तेरे मन में यह सवाल उठता रहा होगा कि ये आदमी मार ही जाए तो अच्छा। बोल झूठ कहता हूँ या सच। वह थोड़ी चौकी। उसने कहा आपको कैसे पता चला। पता चलने की क्या बात है कितनी बार तूने नहीं सोचा है कि यह आदमी मर ही जाए तो झंझट मिटे। अब मर गया। आकांक्षा पूरी हो गई। अब क्यों रोती हो। जिससे तुम्हें सुख नहीं मिला उससे तुम्हे दुख होने का क्या प्रयोजन।

लेकिन यही बड़े मजे की बात है। सुख लेने में तो तुम बड़े कंजूस, दुख लेने में तुम बड़े कुशल। सुख तो तुम बा मुश्किल स्वीकार करते हो, दुख तुम द्वार सजाकर खड़े हो सदा। तुम दुखी होना चाहते हो दुखवादी हो अन्यथा कोई कारण नहीं है। जो दुख होने का जीवन को जो जानते है वह पहचान लेते है कि ना तो दूसरे से सुख मिलता है न तो दुख मिलता है। ना तो किसी के जीवन से तुम्हे जीवन मिलता है। न किसी के मौत से तुम्हे मौत मिलता है।

डरु मैं किस लिए गुस्से से प्यार (pyar) में क्या था। मैं अब खीजा जो रोऊ, बहार में क्या था। और जब इन दोनो बातें तुम्हें साफ दिखाई पड़ जाती है तब जैसे उद्घाटन हो जाती है। भीतर एक बिजली कौंध जाती है। ये मैं ही हूँ, अपनी ही शक्ल देखता हूँ दूसरे तो केवल दर्पण है। अपनी ही प्रतिबिंब, अपनी ही प्रतिध्वनि, अपनी ही परछाई पकड़ता हूँ। दूसरे तो केवल दर्पण है, घाटियाँ है जिनमे अपने ही आवाज गूंजकर लौट आती है।

– ओशो प्रवचन

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Himanshu Kumar
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