प्राकृतिक मृत्यु (death) का आभास मनुष्य को पहले ही लग जाता है। आभास लगते ही उसके मानस पर जीवन की वे तमाम घटनाये सजीव होने लगती है जिनका जीवन में भारी मूल्य रहा।

सारे पाप-पुण्य, अच्छाई-बुराई स्मृति में आने लगती है। एक प्रकार की बेचैनी, घबराहट सी होने लगती है। सारा शरीर फटने लगता है। खून की गति मंद पड़ने लगती है। श्वास की गति उखड़ने लगती है। शनैः शनैः बाह्य चेतना लुप्त होने लगती है जो बाद में एक गहरी मूर्च्छा के रूप में बदल जाती है।
इसी मूर्च्छा की स्थिति में खुली हुई किसी भी इन्द्रिय के मार्ग से आत्मा (soul) एक नीरव झटके के साथ शरीर छोड़कर बाहर निकल जाती है।
अप्राकृतिक मृत्यु (unnatural death) अत्यंत कष्टदायिनी है। धीरे-धीरे बाह्य चेतना पूर्ण रूप से लुप्त हो जाने पर भी मूर्च्छा की स्थिति शीघ्र पैदा नहीं हो पाती। चेतन शून्यता और मूर्च्छा दो भिन्न-भिन्न स्थिति है। पहली स्थिति के बाद और दूसरी स्थिति के पहले मनुष्य को सामयिक उपचार कर मृत्यु से बचाया भी जा सकता है।
दोनो स्थितियों के बीच दो घंटे से बारह घंटे का अंतराल समझना चाहिए। इस अंतराल के दौरान मनुष्य को अपना जीवन सपना जैसा अनुभव होता है।
प्रायः जो लोग मर कर पुनर्जीवित हो उठते है वे इसी अंतराल से निकलकर बाहर आते हैं। ऐसे लोग मृत्यु के बाद का वर्णन उसी प्रकार करते हैं जैसे जागने पर लोग स्वप्न का वर्णन करते हैं।
साधारण लोग इसी अंतराल में पड़े हुए मनुष्य को मृत समझकर अंतिम संस्कार कर डालते है यह भारी भूल है। दूसरी स्थिति को मृत्यु की मूर्च्छा कहते हैं। दोनों मुर्च्छाओ में काफी अंतर है जिससे साधारण लोग परिचित है।
मृत्यु की मूर्च्छा पैदा होने पर चेहरा विकृत हो जाता है। यही मुख्य पहचान है। जब तक चेहरा विकृत न होकर साधारण, शांत और निर्विकार रहता है तब तक पहली ही स्थिति समझनी चाहिए।
- क्या पुनर्जन्म इसी शरीर का संभव है या नहीं
- क्या प्रेत आत्मा आत्महत्या करती है : Kya Pret aatma Suicide karti hai
इस पोस्ट को फेसबुक, व्हाट्सएप्प इत्यादि जैसे सोशल साइट्स पर शेयर करे। इसी तरह का पोस्ट पढ़ते रहने के लिए सब्सक्राइब करें।