मानव शरीर में बिजली की उत्पत्ति और इसके अद्भुत चमत्कार

मनुष्य शरीर एक प्रकार का चलता फिरता बिजली घर है उसी के आधार पर शरीर के कारखाने में लगे हुए अगिनत कलपुर्जे काम करते हैं और मस्तिष्क में जुड़े हुए एक से एक बढ़कर विलक्षण कंप्यूटरों का सूत्र संचालन होता है. विशालकाय यंत्रों का क्रियाकलाप शक्तिशाली इंजनों या मोटरों पर निर्भर करता है.

मानवी काय का विस्तार भले ही न हो पर उसकी संरचना एवं क्रिया पद्धति असाधारण रूप से जटिल तथा संवेदनशील है. इसे निरंतर संचालित रखने के लिए स्वभावतः उच्चकोटि की शक्ति का प्रयोग होता है. इसकी पर्याप्त मात्रा जन्मजात रूप से हमें उपलब्ध है और उसी के उपयोग से जीवन की आवश्यक गतिविधियों का स्वसंचालित पद्धति से गतिशील रहना संभव होता है.

manav sharir me bijli electric ki utpatti aur iske adhbhut chamatkar

मानवीय विद्युत का परिचय यदा-कदा उस रूप में भी उभर आता है जिसमें झटका देने वाली यांत्रिक बिजली रहती है. कई उदाहरण ऐसे देखे गए हैं जो यह बताते हैं कि इस शरीर में असाधारण विद्युत प्रभाव का संचार हो रहा है. यों यह विद्युत शक्ति हर किसी में होती है पर वह अपनी मर्यादा में रहती है और अभीष्ट प्रयोजन में इस प्रकार रहती है की अनावश्यक स्तर पर उभर पड़ने के कारण उसका अपव्यय ना होने लगे. छूने से किसी शरीर में बिजली जैसे झटके प्रतीत ना होते हैं तो भी यह नहीं समझना चाहिए कि उस शक्ति का किसी प्रकार अभाव है. हर किसी में पाई जाने वाली मानवीय विद्युत जिसे अध्यात्म की भाषा में प्राण कहते हैं, कभी-कभी किसी के प्रतिबंध कलेवर भेद कर बाहर निकल आती है तब उसका स्पर्श भी भौतिक बिजली जैसा ही बन जाता है.

मानव शरीर के बिजली का प्रभाव

आयरलैंड की एक युवती जे. स्मिथ के शरीर में इतनी बिजली थी कि उसे छूते ही झटका लगता था. डॉ. एस. क्राफ्ट के तत्व धान में इस पर काफी खोज की गई, उसमें कोई छल नहीं था. हर दृष्टि से यह परख लिया गया कि वह शरीरगत बिजली ही है पर इस अतिरिक्त उपलब्धि का आधार क्या है इसका कारण नहीं समझा जा सका.

बर्लिन (जर्मनी) के निकट एक छोटे से गांव मिसौरी सीडैलिया में एक लड़की 14 वर्ष की हुई तो उसके शरीर में अचानक विद्युत प्रभाव का संचार आरंभ हो गया इस लड़की का नाम था — जेनी मार्गन. उसके शरीर की स्थिति एक शक्तिशाली  बैटरी जैसी हो गई.

एक दिन वह हैंड पंप चला कर पानी निकालने लगी तो उसके स्पर्श के स्थान पर आग की चिंगारिया छूटने लगी. लड़की डर गई और घर वालों को सारा विवरण सुनाया. पहले तो समझा गया कि पंप में ही कहीं से करंट आ गया होगा पर जब जांच की गई तो पता चला कि लड़की का शरीर ही बिजली से भरा हुआ है. वह जिसे छूती उसी को झटका लगता. वह एक प्रकार से अस्पर्श बन गई. चिकित्सकों और वैज्ञानिकों ने इस जंजाल से उसे छुड़ाने के लिए अपने अपने ढंग से कारण तलाश करने और उपचार ढूंढने में शक्ति भर प्रयत्न किया पर कुछ सफलता ना मिली. कई वर्ष यह स्थिति रहने के बाद वह प्रभाव स्वयं ही घटना शुरू हुआ और तरुणी होने तक वह व्यथा अपने आप टल गई. तब कहीं उसकी जान में जान आई और सामान्य जीवन बिता सकने योग्य बनी.

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मानव शरीर में चुम्बकीय शक्ति का प्रभाव

सुप्रसिद्ध ‘टाइम्स’ पत्रिका के कुछ समय पूर्व ओंटारियो (कनाडा) की एक कैरोलिन क्लेयर नामक महिला का विस्तृत वृतांत छपा था. जिसमें बताया गया था कि उपरोक्त महिला डेढ़ वर्ष तक बीमार पड़ी रही, पर जब स्थिति सुधरी तो उसमें एक नया परिवर्तन यह हुआ कि उसके शरीर में बिजली की धारा बहने लगी यदि वह किसी धातु की बनी हुई वस्तु को छूती तो उसी से चिपक जाती. घरवाले उसे बड़ी कठिनाई से  छुड़ाते. चुंबक जैसा यह प्रभाव कैसे उत्पन्न हुआ उसका ना तो कुछ कारण जाना जा सका और ना उपाय उपचार किया जा सका.

मेरीलैंड (अमेरिका) के कालिज आव फार्मेसी की 16 वर्षीय छात्रा — लुई हैवर्गर वैज्ञानिकों के लिएअनबूझ पहेली बनी रही. उस लड़की की उंगलियों के अग्रभाग में चुंबकीय गुण था. आधी इंच मोटी और 1 फुट लंबी लोहे की छड़ वह उंगलियों के पोरवों से छूकर अधर उठा लेती थी. और वह छड़ हवा में बिना किसी सहारे के लटकती रहती थी. धातुओं की वस्तुएं उसके हाथ से चिपक कर रह जाती थी पर किसी मनुष्य को जब वह छूती तो कोई झटका प्रतीत नहीं होता था.

प्राणिज विद्युत शक्ति के उत्पादन के लिए मानवी शरीर में समुचित साधन और आधार विद्यमान है. डायनमो आरमेचर मैग्नेट, क्वायल जैसे सभी उपकरण उसमें अपने ढंग से विद्यमान हैं. अंग-प्रत्यंगों में वे रासायनिक पदार्थ भरे पड़े हैं जिनसे बिजली उत्पन्न होती है. रक्तभिसरण की प्रक्रिया इस मोटर को घुमाती है और उस आधार पर यह विद्युत उत्पादन अनवरत रूप से जारी रहता है.

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कोशिकाओं की आंतरिक संरचना में एक महत्वपूर्ण आधार है — माइटोकांड्रिया (mitochondria). इसे दूसरे शब्दों में कोशिका का पावर हाउस — विद्युत भंडार कह सकते है. भोजन, रक्त, मांस, अस्थि आदि से आगे बढ़ते बढ़ते अंततः इसी संस्थान में जा कर उर्जा का रूप लेता है. यह उर्जा ही कोशिका को सक्रिय रखती है और उनकी सामूहिक सक्रिया जीव- संचालक के रूप में दृष्टिगोचर होती है. इस ऊर्जा को लघुत्तम प्राणांश कह सकते हैं. काय कलेवर में इसका एकत्रीकरण महाप्राण कहलाता है और उसी की ब्रह्मांड व्यापी चेतना विश्वप्राण या विराटप्राण के नाम से जानी जाती है. प्राणांश की लघुत्तम ऊर्जा इकाई कोशिका के अंतर्गत ठीक उसी रूप में विद्यमान है जिसमें कि विराट प्रगतिशील है. बिंदु सिंधु जैसा अंतर इन दोनों के बीच रहते हुए भी वस्तुतः वे दोनों अन्योन्याश्रित हैं. कोशिका के अंतर्गत प्राणांश के घटक परस्पर संयुक्त न हो तो महाप्राण का अस्तित्व न बने. इस प्रकार यदि विराट प्राण की सत्ता ना हो तो भोजन पाचन आदि का आधार न बने और वह लघु प्राण जैसी विद्युत धारा का संचार भी संभव ना हो.

प्राणीज विद्युत ना केवल मनुष्य में ही होती है वरन अन्य प्राणियों में भी पाई जाती है और कभी-कभी किन्हीं किन्हीं इतना उभरी हुई होती है कि उन्हें छूकर झटकों का अनुभव किया जा सकता है.

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जंतुओं में चुम्बकीय शक्ति

कुछ जाति की मछलियां चलते-फिरते पावर हाउस कही जाती है. इनके शरीर में इतनी बिजली होती है कि संपर्क में आने वाले दूसरे जीवो को झटका देकर पछाड़ती है. जिस रास्ते से गुजरती है वहां का पानी भी चुंबकीय बन जाता है और उस क्षेत्र के जंतु उसका प्रभाव अनुभव करते हैं. हिनपास, जिंमोटिस, इलेक्ट्रो-फोरस, मेलप्टोसूरस, स्टार गेजर, जाति की मछलियां इस किस्म की हैं. दक्षिणी अमेरिका के जलाशयों में पाए जाने वाली इलेक्ट्रो फोरस मछली में तो इतनी बिजली होती है कि पास में पानी पीने के लिए जल में प्रवेश करने वाले मजबूत घोड़ा भी  धराशायी हो जाए.

मत्स्य अनुसंधान में कम वोल्ट बिजली वाली तो कई है पर अधिक वोल्ट शक्ति वाली मछलियों में चार जातियां प्रमुख हैं. इनमें से रेजे में 4 वोल्ट, टारयडो में 40 वोल्ट, इलेक्ट्रिकल में 350 से 550 वोल्ट तक और कैट जाति की मछलियां में 350 से 450 वाल्ट तक की बिजली होती है. इनमे एक विशेष प्रकार की पेशियां तथा जंतु पट्टियां होती है, जिनके घर्षण से डायनेमो की तरह बिजली बनती हैं. जब वह चाहती है तब इन अंगों को इस तरह चलाती है कि अभीष्ट मात्रा में बिजली उत्पन्न हो सके और वे मनचाहे प्रयोजन के लिए उसका प्रयोग कर सकें. साधारणतया विशेषता सुप्त पड़ी रहती है.

सर्प के नेत्रों की विद्युत प्रख्यात है. सिंह, बाघ आदि हिंसक जंतुओं की आंखों में भी ऐसे ही बिजली उगलती है कि उसके प्रभाव के सामने आने वाले छोटे जीव अपनी सामान्य चेतना खो बैठते हैं. किंकर्तव्य विमूढ़ होकर खड़े रहते हैं अथवा मौत के मुंह में दौड़ते हुए स्वयं ही घुस जाते हैं.

अफ्रीका के जंगलों में पाए जाने वाले बड़ी जाति के अजगर जलपान के लिए छोटे-छोटे मेंढक, चूहे, गिलहरी, छिपकली जैसे जीव घर बैठे ही प्राप्त कर लेते हैं. बड़ी शिकार पकड़ने के लिए तो वह क्षुधातुर होने पर ही निकलते हैं. इन अजगरों की आंखों में विचित्र प्रकार का चुंबकत्व होता है. जिस  पर उनकी नजर पड़ती है वह उसी जगह ठिठक कर रह जाता है. उड़ने और दौड़ने की शक्ति खो बैठता है. इतना ही नहीं वह स्वयं खिसकता हुआ अजगर के फटे मुंह की तरफ बढ़ता आता है और स्वयमेव उसमें प्रवेश कर जाता है. प्रोफेसर एफ. स्नाइडर ने एक बार पाले हुए अजगर के पिंजरे में कुछ चूहे छोड़ें. चूहे पहले तो डर कर भागे और पिंजरे के एक कोने में जा छिपे किंतु जब अजगर ने उन्हें घूर कर देखा तो वह धीरे-धीरे अपने आप बढ़ते चले आये और सर्प के मुंह में घुस गए.

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मानवीय विद्युत का सदुपयोग

इस मानवी विद्युत का ही प्रभाव है जो एक दूसरे को आकर्षित या प्रभावित करता है. उभरती आयु में यह बिजली का आकर्षण की भूमिका बनती है पर यदि उसका सदुपयोग किया जाए तो बहुमुखी प्रतिभा, ओजस्विता, प्रभावशीलता के रूप में विकसित होकर कितने ही महत्वपूर्ण कार्य कर सकती है. ऊर्ध्व रेता, संयमी ब्रह्मचारी लोग अपने ओजस को मस्तिष्क में केंद्रित करके उसे ब्रह्मवर्चस के रूप में परिणत करते हैं. विद्वान दार्शनिक, वैज्ञानिक, नेता, वक्ता, योद्धा, योगी, तपस्वी जैसी विशेषताओं से संपन्न व्यक्तियों के संबंध में यही कहा जा सकता है कि उन्होंने अपने ओजस का —  प्राणतत्व का अभिवर्धन, नियंत्रण एवं सदुपयोग किया है. यों यह शक्ति किन्हीं-किन्हीं में अनायास भी उभर पड़ती देखी गई है और उसके द्वारा उन्हें कुछ अद्भुत काम करते भी पाया गया है.

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जर्मनी का अधिनायक हिटलर जब रुग्ण होता तो उसे सुयोग डॉक्टरों की अपेक्षा एक ‘नीम हकीम’ क्रिस्टन का सहारा लेना पड़ता. उसकी उंगलियों में जादू था. दवा दारू वह कम करता था, हाथ का स्पर्श करके दर्द को भगाने की उसको जादुई क्षमता प्राप्त थी. सन 1898 में वह इस्टोनिया में जन्मा प्रथम  विश्व युद्ध के बाद वह फिनलैंड नागरिक माना पीछे उसने मालिश करके रोगोपचार करने की कला सीखी. अपने कार्य में उसका कौशल इतना बाधा कि उसे जादुई चिकित्सक कहा जाने लगा. हिटलर ही नहीं उसके जिगरी दोस्त हिमलर तक को उसने समय समय पर अपनी चिकित्सा से चमत्कृत किया और भयंकर रुग्णता के पंजे से छुड़ाया. क्रिस्टन ने अपने परिचय और प्रभाव का उपयोग करके हिटलर की मृत्यु पास में जकड़े हुए लगभग एक लाख  यहूदियों का छुटकारा कराया.

योग साधना का एक उद्देश्य इस चेतना विद्युत शक्ति का अभिवर्धन करना भी है. इसे मनोबल, प्राणबल और आत्मबल भी कहते हैं. संकल्प शक्ति और इच्छा शक्ति के रूप में इसी के चमत्कार देखे जाते हैं.

आत्म शक्ति संपन्न व्यक्ति अपने जन संपर्क गतिविधियों को निर्धारित एवं नियंत्रित करते हैं. विशेषतया काम सेवन संबंधित संपर्क से बचाव इसी आधार पर किया जाता है अत्यंत महत्वपूर्ण शक्ति को उपयोगी दिशा में ही नियोजित करने के लिए सुरक्षित रखा जा सके और उसका क्षुद्र मनोरंजन के लिए अपव्यय ना होने पाए.

अध्यात्म शास्त्र में प्राण विद्या का एक स्वतंत्र प्रकरण एवं विधान है इसके आधार पर साधनारत होकर मनुष्य इस प्राण विद्युत की इतनी अधिक मात्रा अपने में संग्रह कर सकता है कि उस आधार पर अपना ही नहीं अन्य अनेकों का भी उपकार उद्धार कर सके.

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Himanshu Kumar
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