इस पोस्ट में आधुनिक नक्षत्र विज्ञान के पिता गैलिलियो की संक्षिप्त जीवनी (Galileo Biography) के बारे में बताऊंगा।
आधुनिक खगोलशास्त्र (astronomy) के जनक गैलीलियो (Galileo) ने 1609 में पहली बार दूरबीन (telescope) के सहारे खगोलीय अवलोकन किया था। 2018 में इस अवलोकन के 409 साल पूरे हो गए। उनकी स्मृति में संयुक्त राष्ट्र द्वारा 25 डालर का सिक्का भी जारी किया गया। सिक्का पर गैलीलियो के साथ-साथ उस दूरबीन की तस्वीर बनी है जिसे गैलीलियो ने बनाया था। दूसरी ओर उनके द्वारा निर्मित चंद्रमा के तल का चित्र अंकित है।
गैलीलियो गैलिलेई भौतिक विज्ञानी (physicist), गणितज्ञ (mathematician), नक्षत्र विज्ञानी (constellation scientist) तथा दार्शनिक (philosopher) थे। इटली के रहने वाले थे। उन्होंने वैज्ञानिक क्रांति में अहम भूमिका अदा की। उन्होंने दूरबीन के स्वरुप में सुधार किया। इससे खगोलीय अवलोकन को तार्किक आधार प्राप्त हुआ। गैलीलियों को ‘आधुनिक वेधशालाई नक्षत्र विज्ञान‘, आधुनिक भौतिक विज्ञान तथा आधुनिक विज्ञान का पिता कहा जाता है। महान वैज्ञानिक स्टीफेन हाकिन्स (Stephen Hawkings) समझ है कि ‘गैलीलियो ने विज्ञान को आधुनिक रूप देने में किसी भी अन्य व्यक्ति की तुलना में ज्यादा योगदान दिया।’
गति विज्ञान (dynamics) से जुड़ा गैलीलियो का अविष्कार आज भी स्कूलों और कॉलेजों में प्रारंभिक भौतिकी का महत्वपूर्ण पाठ है। शुक्र ग्रह (Venus) की अवस्थितियों का दूरबीन से अवलोकन, वृहस्पति (Jupiter) के चार बड़े उपग्रहों (satellites) की खोज (जिनका नाम उनके सम्मान में गैलीलियो चंद्रमा रखा गया है) तथा सूरज के धब्बों के अवलोकन और विश्लेषण के सहारे गैलीलियो ने विज्ञान को उन अंधविश्वासों से मुक्त कराया जिसका शिकार बहुत काल तक था। गैलीलियो ने प्रायोगिक विज्ञान (experimental science) के क्षेत्र में भी काम किया। कुतुबनुमा की डिजाइन में उनके द्वारा किए गए सुधार के कारण विज्ञान को आगे चलकर अभूतपूर्व गति मिली।
प्राकृतिक परिघटनाओं को देखने-समझने का गैलेलियो का तरीका अभूतपूर्व था। गैलीलियो संभवता पहले व्यक्ति थे जिन्होंने साफ-साफ कहा कि प्रकृति (nature) गणितीय ढंग से काम करती है। अपनी पुस्तक द असायर (परख) में उन्होंने लिखा है कि (प्रकृति रूपी) महान ग्रंथ या विश्व की रचना गणित की भाषा में की गई है। त्रिकोण (trigonometry), वृत (circle) और अन्य रेखागणितीय (geometrical) चित्र ही इसके दिखने वाले रुप हैं। परिघटनाओं की गणितीय व्याख्या की उनकी पद्धती ने एक ऐसी परंपरा का विकास किया, जिसे परवर्ती दार्शनिकों ने आगे बढ़ाया। इसे दर्शन का अध्ययन करते वक्त उन्होंने सीखा था।
गैलीलियो ने कोपरनिकस (copernicus) कि इस समाज का समर्थन किया कि पृथ्वी सूरज के चारों ओर चक्कर लगाती है। पुरोहितों और दार्शनिकों का एक बड़ा हिस्सा इस समझ का भारी विरोधी था। उसकी समझ थी कि सूरज पृथ्वी के चारों ओर चक्कर काटता है। उन्होंने सूर्य केंद्रित सिद्धांत का समर्थन किया। इस पर उन्हें दार्शनिकों और पुरोहितों के बड़े हिस्से के विरोध का सामना करना पड़ा। रोम के धर्माधिकरण में पुरोहितों ने उनकी निंदा की। उन्हें नजरबंद कर लिया गया।
गैलीलियो का जन्म 15 फरवरी 1564 में इटली के पीसा नामक स्थान में हुआ था। इसका पूरा नाम गैलीलियो डी वेंसेन्जो बोनाउटी डे गुलिलेई था। उनके माता-पिता का नाम क्रमशः गुलिया अमानाती और विन्सेंजो गुलिलेई था। इनके पिता विन्सेंजो संगीत शिक्षक थे।
गैलीलियो की आरंभिक शिक्षा फ्लोरेंस से 35 किलोमीटर दूर वैलोम्ब्रोसा के कैमलडोलेस मोंटेसरी में हुई। पिता के आग्रह पर उसका नामांकन पीसा विश्वविद्यालय में मेडिकल शिक्षा के लिए हुआ। लेकिन उन्होंने यह पढ़ाई पूरी नहीं की।
1589 में उसकी नियुक्ति पीसा में गणित के शिक्षक के रूप में हुए। 1591 में पिता के निधन के बाद छोटे भाई माइकेलयेंगेलो (प्रसिद्ध संगीतज्ञ) के देखरेख की जिम्मेवारी उनके कंधों पर आ आ गई। गैलीलियो उनकी पत्नी मरीना गंबा के तीन बच्चे थे – बेटा विन्सेंजो और बेटियां वर्जीनिया और लीविया। 1592 में उन्होंने पदुआ विश्व विद्यालय में गणित और नक्षत्र विज्ञान (astronomy) का शिक्षण आरंभ किया। वहां वे 1610 तक कार्यरत रहे। पदुआ विश्व विद्यालय में शिक्षण कार्य करते हुए गैलीलियो ने सैद्धांतिक (theoretical) और प्रायोगिक (experimental), दोनों विज्ञानों में अनेक आविष्कार किये।
1610 में गैलीलियो ने ‘वृहस्पति के उपग्रहों के अनुभव‘ का प्रकाशन किया। इसमें सूर्य केंद्रित विश्व के कोपरनिकस के सिद्धांत का समर्थन किया गया था। अगले साल गैलीलियो ने अपने दूरबीन (telescope) के साथ रोम की यात्रा की, जहां दार्शनिकों और गणितज्ञों के बीच का प्रदर्शन किया। 1612 में सूर्य केंद्रित विश्व के सिद्धांत का भारी विरोध हुआ। 1614 में फादर तोमसो कैकसिनी (1574-1648) ने संत मारिया नोवेला के मंदिर से अपने प्रवचन में भूभ्रमण की गैलीलियो की समझ की निंदा की तथा इसे खतरनाक और धर्म विरोधी करार दिया। गैलीलियो अभियोग से अपने बचाव को लिए रोम गए। लेकिन 1616 में कार्डिनल रॉबर्ट बोलारमिन ने उन्हें कोपरनिकस की समझ पर आधारित आधारित नक्षत्र विज्ञान को पढ़ने और उसका पक्ष लेने के विरुद्ध चेतावनी दी।
गैलीलियो 1619 में जेसुयिस्ट कॉलेजिओ रोमानो में गणित के प्रोफेसर फादर ओरेजियो गोग्रासी के के साथ विवाद में उलझ गए। विवाद बहस की प्रकृति को लेकर शुरू हुआ। तभी 1623 में गैलरियों ने परख (द असायर) प्रकाशित किया। विवाद में यह उनका अंतिम योगदान था। इसमें स्वयं विज्ञान की प्रकृति को ले कर गंभीर तर्क प्रस्तुत किए गए थे। परख गैलीलियो के विचारों की विशाल पूंजी का संकलन था। इसे गैलीलियो का वैज्ञानिक घोषणा पत्र भी कहा जा सकता है।
हुआ यह था कि 1619 के आरंभ में फादर ग्रासी ने एक पर्चा प्रकाशित किया। पर्चे का शीर्षक था – 1618 की तीन टिप्पणियों पर एक नक्षत्र वैज्ञानिक विवाद। इसमें पिछले वर्ष नवंबर की टिप्पणी के स्वरूप पर चर्चा की गई थी। ग्रासी ने इसका समापन करते हुए कहा था कि एक आग्नेय पिंड (igneous body) निश्चित दूरी पर पृथ्वी के चारों ओर वृत्ताकार घूम रहा है, और यह आकाश में चंद्रमा से भी बहुत धीमी गति से घूम रहा है। यह निश्चित रूप से चंद्रमा की तुलना में बहुत दूर होगा।
ग्रासी के निष्कर्ष की आलोचना गैलीलियो के एक फ्लोरेंटवासी वकील शिष्य मैरिनो गुडुसी के नाम से प्रकाशित आलेख में की गई, जिसका शीर्षक था – टिप्पणियों पर विमर्श। कहा जाता है कि यह आलेख स्वयं गैलीलियो का लिखा हुआ था। गैलीलियो और गुडुसी ने आलेख में तर्क के स्वरूप पर कोई सिद्धांत तो नहीं प्रस्तुत किया था, मगर उन्होंने इसको लेकर कुछ संभावनाएं अवश्य जाहिर की थी।
परख में गैलीलियो ने खगोलीय संतुलन के बारे में ऐसे तर्क प्रस्तुत किए जिससे ग्रासी की समझ पूरी तरह ध्वस्त हो जाती थी। विमर्श साहित्य के अद्भुत नमूना के रूप में परख की व्यापक प्रशंसा की गई। इसका व्यापक स्तर पर स्वागत भी हुआ। यह पुस्तक नए पोप को समर्पित की गई थी। जाहिर है इस तरह गैलीलियो ने उन्हें खुश करने का प्रयास किया था।
लेकिन परिणाम उल्टा निकला। गैलीलियो और ग्रासी के विवाद ने अनेक वैसे जेसुइस्टों को स्थाई रूप से अलग-थलग कर दिया, जो गैलीलियो के प्रति सद्भाव रखते थे। गैलीलियो और उनके दोस्तों को सजा दी गई।
1630 में वह रोम लौट कर आए तथा दो मुख्य पद्धतियों के बीच विवाद शीर्षक पुस्तक को छापने के लिए आवेदन दिया। यह 1632 में प्रकाशित हुआ। इसी वर्ष अक्टूबर में उन्हें रोम के पवित्र कार्यालय में हाजिर होने का आदेश उन्हें दिया गया। सुनवाई के बाद पोप द्वारा उन्हें नजरबंद करने तथा उनकी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया गया।
1634 के बाद वह अरसेत्री स्थित अपने घर पर नजरबंद रहे। 1638 में वह पूरी तरह दृष्टिहीन हो गए। साथ ही हार्निया के भयानक दर्द और अनिद्रा रोग (insomnia) के गंभीर मरीज भी हो गए। बाद में इलाज के लिए फ्लोरेंस जाने की इजाजत उन्हें दी गई। अपने प्रशंसकों से वह 1642 तक मिलते- जुलते रहे। इसके बाद गंभीर बुखार और हृदय की तेज धड़कन से उनका निधन हो गया।
गैलीलियो ने जान देकर भी सत्य का पक्ष लिया। उन्होंने कैथोलिक चर्च (Catholic Church) के प्रति वफादार बने रहने का प्रयास तो किया, लेकिन प्रयोगात्मक परिणामों के अनुसरण तथा उसकी ईमानदार व्याख्या के प्रति प्रतिबद्धता का परित्याग नहीं किया। स्वभावतः इसका परिणाम विज्ञान के मामले में दार्शनिक और धार्मिक, दोनों सत्ता की अंधभक्ति को नामंजूर किया जाना था। गैलीलियो के इस प्रयास ने विज्ञान को दर्शन और धर्म, दोनों से पृथक, स्वतंत्र रूप में स्थापित किया। यह मनुष्य के चिंतन के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। इसी परिप्रेक्ष में महान वैज्ञानिक अल्वर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein) ने उन्हें आधुनिक विज्ञान (modern science) का पिता कहा है।
गैलीलियो द्वारा रचित पुस्तकें (books composed by galileo)
- द लिटिल बैलेंस (1586)
- ऑन मून (1590)
- मेकेनिक्स (1600)
- द स्टेरी मैसेंजर (1610)
- लेटर्स ऑन सन स्पॉट्स (1613)
- लेटर टू दी ग्रैंड डूसेस क्रिस्तिना (1615) में लिखित तथा (1636) में प्रकाशित
डिस्कोर्स ऑन द टाइड्स (1616) - डिस्कोर्स ऑन द कमेंट्स (1619)
- द असायर (1623)
- डाईलॉग कंसर्निग द चीफ वर्ल्ड सिस्टम (1632)
- डिसकोर्सेस ऐंड मैथेमेटिकल डिमोस्ट्रेसन्स
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अच्छा लेख, धन्यवाद आप अद्भुत जीवनी साझा करते हैं।