गैलीलियो (Galileo) ने पेंडुलम की खोज कैसे की

आज इस पोस्ट में में आपको बताऊंगा कि गैलीलियो ने पेंडुलम की खोज कैसे की ? (how did galileo discovered the pendulum ?)

कुदरत या प्रकृति में रात के बाद दिन, दिन के बाद फिर रात होती है। जाड़े के बाद पतझड़, पतझड़ के बाद वसंत, वसंत के बाद गर्मी, गर्मी के बाद बरसात, बरसात के बाद हेमंत, हेमंत के बाद फिर जाड़ा आता है। गर्मी में दिन बड़े, रातें छोटी ; जाड़े में राते बड़ी, दिन छोटे और साल में दो बार दिन और रात बराबर होते हैं। साल-दर-साल यही सिलसिला चलता है।

साफ जाहिर है कि प्रकृति या कुदरत के काम करने का एक खास तरीका है, खास नियम है। ये भी सच है कि हम चाहे तो कुदरत या प्रकृति के काम करने के तरीकों पर ध्यान देकर, देखकर इसके नियमों को जान सकते हैं और उन नियमों के अनुरूप अपने को ढालकर अपने जीवन को सुखी बना सकते हैं। विज्ञान ने हमारे लिए अब तक जो भी सुख सुविधा जुटाई है, वह सब इसी तरीके से संभव है।

galileo ne pendulum ki khoj kaise ki

मगर प्रकृति यह कुदरत को देखना और उसके आधार पर नतीजे निकालना विज्ञान का बहुत ही शुरुआती रूप है। कई बार आंखों देखी चीज या घटना भी धोखा होती है। आज से करीब चार सौ साल पहले 12 साल के एक बालक ने इस बात को बड़ी जोर से महसूस किया था। इटली में जन्मा एक बालक एक बार पूर्णमासी की रात को चांद को देखते हुए एक पहाड़ी पर चढ़ रहा था। उसे लगा कि चांद भी उसके साथ साथ चल रहा है।

बालक गैलीलियो (Galileo) को बड़ा मजा आया। कुछ देर बाद वह चांद देखते हुए उतरने भी लगा। अब उसे ऐसा लगा कि चांद उसके साथ-साथ उतर भी रहा है। यह देखकर बालक गैलीलियो (Galileo) को लगा कि कुछ गड़बड़ है। उसे लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं की चांद स्थिर है और यह मेरी नजरों का धोखा है। मगर गैलीलियो बिना सबूत के कुछ नहीं स्वीकार करता था। उसने अपने दोस्त को बुला लिया। उसे पहाड़ी पर चढ़ने को कहा और खुद उतरने लगा। उसके दोस्त ने कहा, “चाँद तो मेरे साथ-साथ चढ़ रहा था।” जबकि गैलीलियो को लग रहा था कि चांद उसके साथ उतर रहा था। गैलीलियो ने यह नतीजा निकाला कि चांद स्थिर है और इसका चढ़ना उतरना हमारी नजरों का धोखा है।

कुछ दिनों बाद गैलीलियो(Galileo) को उसके पिता ने डॉक्टरी पढने के लिए विद्यालय भेज दिया। मगर वह तो वैज्ञानिक बनना चाहता था। उसने अपने- आप विषय बदल लिया। पिता ने डांटा तो उसने भोलेपन से कहा – “आप ही तो कहते हैं कि सच कहने और सच निभाने में कभी भी भगवान से भी नहीं डरना चाहिए। मुझे वैज्ञानिक बनने का मन है तो मैं विज्ञान क्यों न पढूं ? क्या आप भगवान से भी बड़े हैं ?”

इस पर पिता नाराज होने के बजाय खुश हुए और कहा, “मैं तुमसे यही सुनना चाहता था और इस भावना को हमेशा बनाए रखना। तभी तुम सच्चे वैज्ञानिक बन पाओगे।” गैलीलियो ने पिता की बात को सदा याद रखा।

उन दिनों धर्म का बड़ा जोर था। इटली एक ईसाई देश था। हर बच्चे को विद्यालय में भी प्रवचन सुनना पड़ता था। वैसे ही एक उबाऊ प्रवचन के बीच उदास गैलीलियो की नजर झूलते हुए लालटेन पर पड़ी। वह उसी को टकटकी लगाकर देखने लगा। कुछ देर तक देखने के बाद उसे यह लगा कि लालटेन ज्यादा दूर तक झूले या कम दूर तक, एक किनारे से दूसरे किनारे तक आने-जाने में उसे बराबर ही समय लगता है।

उन दिनों घड़ी तो होती नहीं थी। अचानक उसे याद आया कि पिछले दिनों बुखार में उसकी नब्ज तेज चलने लगी थी। उसने सोचा कि कुदरत या प्रकृति से बड़ा कारीगर कौन है ! अब तो वह ठीक हो चुका है। अब उसकी नब्ज समय पर चल रही होगी।  उसका इस्तेमाल घड़ी के रूप में हो सकता है। उसने पाया कि उसका नतीजा सही था। अपनी खोज पर इतना खुश हुआ कि दौड़कर अपने एक दोस्त के घर जाकर उसने एक डोर ली, कई धातुओं लोहे, शीशे की गोलियां ली, पेंडुलम (pendulum) बनाएं और अनेक प्रयोग किए। उसने पाया कि गोला चाहे किसी धातु का हो, पेंडुलम के घूमने के समय पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। हां, लंबाई बढ़ाने से उसके झूलने का समय बढ़ता है और घटाने से घटता है।

बिना घड़ी के गैलीलियो (Galileo) ने पेंडुलम के नियम खोजे थे। आज दुनियाभर में जितनी घड़ियां हैं, वे सब इन्हीं नियमों के आधार पर बनी है।

अपने इन तजुर्बों के आधार पर गैलीलियो यह कहने लगे कि विज्ञान का मतलब प्रयोग या तजुर्बा है और जो भी चीज या घटना प्रयोग या तजुर्बे के दौरान माप-तौल, नाप-जोख या गिनती के दायरे के बाहर हो या विज्ञान नहीं है। गैलीलियो ने पहली बार विज्ञान में गणित का हिसाब का प्रयोग इतना ज्यादा किया कि लोग उसे गैलीलियो हिसाबी कहने लगे।

उम्मीद करता हूँ कि गैलीलियो ने पेंडुलम की खोज कैसे की ? (Galileo ne pendulum ki khoj kaise ki ?) पोस्ट आपको पसंद आया होगा।

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Himanshu Kumar
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