Kalchuri vansh history notes in hindi : कलचुरि प्राचीन भारत का विख्यात त्रिकुटा आभीर राजवंश था। इस वंश की शुरुवात आभीर राजा ईश्वरसेन ने की थी। कलचुरी के नाम से भारत में दो राजवंश थे – एक मध्य एवं पश्चिमी भारत (मध्य प्रदेश तथा राजस्थान) में जिसे चेदि, हैहय या उत्तरी कलचुरि कहते हैं तथा दूसरा दक्षिणी कलचुरी जिसने वर्तमान कर्नाटक के क्षेत्रों पर राज्य किया। त्रिपुरी के कलचुरि वंश (kalchuri dynasty) का संस्थापक कोक्कल था। इसकी राजधानी त्रिपुरी थी।
कलचुरि वंश के शासक : Kalchuri Vansh Emperor List
कलचुरि वंश का शासक | शासन काल |
वामराज देव | 675-700 ई० |
शंकरगण प्रथम | 750-775 ई० |
लक्ष्मण राज प्रथम | 825-850 ई० |
कोक्कल प्रथम | 850-890 ई० |
शंकर गण द्वितीय | 890-910 ई० |
बालहर्ष | 910-915 ई० |
युवराजदेव प्रथम | 915-945 ई० |
लक्ष्मण राज द्वितीय | 945-970 ई० |
शंकरगण तृतीय | 970-980 ई० |
युवराज देव द्वितीय | 980-990 ई० |
कोक्कल द्वितीय | 990-1015 ई० |
गांगेयदेव | 1015-1041 ई० |
लक्ष्मीकर्ण | 1041-1073 ई० |
यशःकर्ण | 1073-1123 ई० |
गयाकर्ण | 1163-1188 ई० |
विजय सिंह | 1188-1210 ई० |
त्रैलोक्य मल्ल | 1210-1212 ई० |
त्रिपुरी के कलचुरि-चेदि राजवंश का इतिहास : Kalchuri Vansh History in Hindi
त्रिपुरी के आसपास चन्देल साम्राज्य के दक्षिण में कलचुरियों ने अपना साम्राज्य स्थापित किया था। त्रिपुरी के कलचुरियों के वंश का प्रथम व्यक्ति कोकल्स प्रथम था। इसने अपना राजधानी त्रिपुरी को बनाई।
कोक्कल प्रथम (Kokkala I)
- कोक्कल प्रथम कलचुरि वंश का संस्थापक था।
- इसकी राजधानी त्रिपुरी थी।
- इसने राष्ट्रकूटों और चन्देलों के साथ विवाह-सम्बन्ध स्थापित किये।
- प्रतिहारों के साथ कोक्कल-प्रथम का मैत्री-सम्बन्ध था।
- अपने शासन-काल के अन्तिम समय में कोक्कल ने उत्तरी कोंकण पर आक्रमण किया और पूर्वी चालुक्यों तथा प्रतिहारों के विरुद्ध राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण-द्वितीय को सहायता प्रदान की।
शंकरगण प्रथम (Shankargana I)
- कोक्कल के 18 पुत्र थे। इनमें से उसका ज्येष्ठ पुत्र शंकरगण उसकी मृत्यु के बाद चेदि वंश का शासक बना।
- शंकरगण ने राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण द्वितीय से मिलकर चालुक्य विजयादित्य तृतीय पर आक्रमण किया किन्तु दोनों को पराजित होना पड़ा।
- प्रसिद्ध कवि राजशेखर इनके दरबार से भी संबंधित रहे।
- शंकरगण प्रथम ने अपनी पुत्री लक्ष्मी का विवाह राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण द्वितीय के पुत्र जगत्तुंग के साथ किया था।
युवराज प्रथम (Yuvaraja I)
- शंकरगण के दो पुत्र थे- बालहर्ष और युवराज प्रथम।
- इसने बंगाल के पाल तथा कलिंग के गंग शासकों को पराजित किया।
- चन्देल नरेश यशोवर्मन से युवराज प्रथम पराजित हो गया।
- राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण तृतीय ने युवराज प्रथम के राज्य पर आक्रमण किया जिससे कलचुरियों की हार हुई और उनके राज्य पर कुछ काल के लिए राष्ट्रकूटों का अधिकार हो गया।
- युवराज के शासन-काल में ही राजशेखर कन्नौज छोड़कर त्रिपुरी आया।
- त्रिपुरी में रहते हुए राजशेखर ने अपने दो गुणों काव्यमीमांसा तथा विदशालभंजिका की रचना की थी।
- युवराज शैव मतानुयायी था।
- युवराज की पत्नी नोहला चालुक्य वंशीय कन्या थी जिसने बिल्हारी के निकट शिव का एक विशाल मन्दिर बनवाया।
- भारद्वाज वंशी ब्राह्मण भाकमिश्र युवराज का प्रधानमंत्री था।
- भेड़ाघाट (जबलपुर) का प्रसिद्ध ‘चौसठ योगिनी मन्दिर’ का निर्माण भी युवराज के समय में ही हुआ था।
लक्ष्मणराज प्रथम (Lakshmana Raja I)
- युवराज प्रथम के बाद उसका पुत्र लक्ष्मणराज शासक बना।
- इसने त्रिपुरी की पुरी को पुननिर्मित करवाया।
- लक्ष्मणराज ने पूर्व में बंगाल, ओड्र और कोशल पर आक्रमण किया।
- पश्चिम में वह लाट के सामंत शासक और गुर्जर नरेश (संभवत: चालुक्य वंश का मूल राज प्रथम) को पराजित करके सोमनाथ तक पहुँचा था।
- लक्ष्मणराज ने अपनी पुत्री बोन्थादेवी का विवाह चालुक्य नरेश विक्रमादित्य चतुर्थ से किया था जिनका पुत्र तैल द्वितीय था।
लक्ष्मणराज के बाद उसका पुत्र शंकरगण तृतीय राजा बना। उसकी कोई उपलब्धि नहीं है। उसके बाद उसका छोटा भाई युवराज द्वितीय राजा बना।
सैनिक दृष्टि से युवराज द्वितीय निर्बल शासक था जिसे वेंगी के चालुक्य नरेश तैल द्वितीय तथा परमार नरेश मुंज ने पराजित कर दिया। त्रिपुरी पर मुंज ने कुछ समय तक अधिकार बनाये रखा।
कोक्कल द्वितीय (Kokkala II)
- मुंज के हटने क बाद मंत्रियों ने युवराज द्वितीय को हटाकर पुत्र कोक्कल द्वितीय को राजा बना दिया।
- कोक्कल द्वितीय ने गुर्जर देश (गुजरात) पर आक्रमण कर चौलुक्य / सोलंकी नरेश चामुण्डराज को पराजित किया।
- कोक्कल द्वितीय ने कुंतल के नरेश (चालुक्य सत्याश्रय) पर भी विजय प्राप्त की।
- उसने गौड़ पर भी आक्रमण किया था।
गांगेयदेव (Gangeyadeva)
- कोक्कल द्वितीय के बाद उसका पुत्र तथा उत्तराधिकारी गांगेयदेव हुआ।
- कलचुरि वंश का एक शक्तिशाली शासक गांगेयदेव था, जिसने ‘विक्रमादित्य‘ की उपाधि धारण की।
- भोज परमार और राजेंद्र चोल के साथ गांगेयदेव ने चालुक्य राज्य पर आक्रमण किया जिसमें वह असफल रहा।
- उसने अंग, उत्कल, काशी तथा प्रयाग को जीता तथा प्रयाग में उसने अपना एक निवास-स्थान बनाया।
- काशी का क्षेत्र संभवत: उसने पाल शासकों से छीना था।
- गांगेयदेव ने उत्तर-पश्चिम में पंजाब तथा दक्षिण में कुन्तल तक सैनिक अभियान किया।
- पूर्व की ओर उसने उड़ीसा तक अभियान कर विजय प्राप्त की थी।
- पूर्व-मध्यकाल में स्वर्ण सिक्कों के विलुप्त हो जाने के पश्चात इन्होंने सर्वप्रथम इसे प्रारंभ करवाया। ये सिक्के लक्ष्मी शैली के थे।
- इन्होंने महाराजाधिराज, परमेश्वर, महामण्डलेश्वर जैसी उच्च उपाधियों को ग्रहण किया।
- गांगेयदेव शैवमतानुयायी था तथा उसने शैवमन्दिरों एवं मठों का निर्माण करवाया था।
कर्णदेव / लक्ष्मीकर्ण (Karna Deva)
- गांगेयदेव के बाद उसका पुत्र कर्णदेव अथवा लक्ष्मीकर्ण शासक बना।
- गुजरात के नरेश भीम के साथ मिलकर उसने मालवा के परमारवंशी शासक भोज को पराजित किया।
- कलचुरि वंश का सबसे महान शासक कर्णदेव था, जिसने कलिंग पर विजय प्राप्त की और त्रिकलिंगाधिपति की उपाधि धारण की।
- पूर्व की ओर गौड़ तथा मगध के पाल शासकों को उसने पराजित किया।
- पाल नरेश विग्रहपाल तृतीय को उसने युद्ध में पराजित किया।
- कर्ण ने चन्देल नरेश देववर्मन पर आक्रमण कर उसे परास्त कर उसके राज्य के कुछ भागों पर अधिकार कर लिया।
- चन्देल नरेश कीर्तिवर्मन ने कर्णदेव को पराजित किया।
- कर्णदेव ने विग्रह पाल तृतीय के साथ अपनी पुत्री यौवनश्री का विवाह किया।
- कर्ण भी अपने पिता के समान शैवमतानुयायी था तथा बनारस में उसने कर्णमेरु नामक शैवमन्दिर बनवाया था।
- उसने त्रिपुरी के निकट कर्णावती (आधुनिक कर्णबेल) नामक नगर की स्थापना भी करवायी थी।
यश:कर्ण (Yashah Karna)
- कर्णदेव के बाद उसकी पत्नी आवल्लदेवी से उत्पन्न पुत्र यश:कर्ण राजा बना।
- यश:कर्ण ने चंपारण्य (चंपारन, उत्तरी बिहार) और आंध्र देश पर आक्रमण किया था किंतु उसके शासनकाल के अंतिम समय जयसिंह चालुक्य, लक्ष्मदेव परमार और सल्लक्षण वर्मन् चंदेल के आक्रमणों के कारण चेदि राज्य की शक्ति क्षीण हो गई।
यश:कर्ण के बाद उसका पुत्र गयाकर्ण राजा बना। वह भी एक निर्बल राजा था जो अपने वंश की प्रतिष्ठा एवं साम्राज्य को सुरक्षित नहीं रख सका। चन्देल नरेश मदनवर्मा ने उसे बुरी तरह पराजित किया।
गयाकर्ण के बाद नरसिंह, जयसिंह तथा विजयसिंह के नाम मिलते है जिन्होंने बारी-बारी से शासन किया। वे भी अपने साम्राज्य को विघटन से बचा नहीं सके।
कलचुरि वंश का अन्तिम शासक विजयसिंह को चन्देल शासक त्रैलोक्यवर्मन् ने परास्त कर त्रिपुरी को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया। इस प्रकार कलचुरि-चेदिवंश का अन्त हुआ।
Kalchuri-Chedi Vansh GK Question Answer in Hindi
- कलचुरि वंश का संस्थापक कौन था – कोक्कल
- कलचुरि वंश (kalchuri vansh) की राजधानी क्या थी – त्रिपुरी
- कलचुरि वंश का एक शक्तिशाली शासक कौन था – गांगेयदेव
- गांगेयदेव ने किसकी उपाधि धारण की – विक्रमादित्य
- कलचुरि वंश का सबसे महान शासक कौन था – कर्णदेव
- कलिंग पर विजय प्राप्त करने के बाद कर्णदेव ने किसकी उपाधि धारण की – त्रिकलिंगाधिपति
- काव्यमीमांसा तथा विदशालभंजिका की रचना किस कलचुरि दरबार के कवि ने की – राजशेखर
- युवराज प्रथम किस धर्म का अनुयायी था – शैव धर्म
- भेड़ाघाट (जबलपुर) का प्रसिद्ध ‘चौसठ योगिनी मन्दिर’ का निर्माण किस कलचुरि शासक के समय में हुआ था – युवराज प्रथम
- गांगेयदेव की पिता का नाम क्या था – कोक्कल द्वितीय
- पूर्व-मध्यकाल में स्वर्ण सिक्कों के विलुप्त हो जाने के पश्चात किस कलचुरि शासक ने सर्प्रथम इसे प्रारंभ करवाया – गांगेयदेव
- गांगेयदेव किस धर्म का अनुयायी था – शैव धर्म
- बनारस में कर्णमेरु नामक शैवमन्दिर किसने बनवाया था – कर्णदेव
- कलचुरि वंश (kalchuri vansh) का अंतिम शासक कौन था – विजय सिंह
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