सफलता की एकमात्र कुंजी : मनोबल और उचित योजना

मनोबल का तात्पर्य है : मन की शक्ति। अगर आप अपने मनोबल को बनाये रखते है तो आपको एक न एक दिन सफलता जरूर मिलेगी। मनोबल से असंभव असंभव कार्य भी संभव हो सकता है।

जीवन में बहुत से संकट आते रहते है। हमें इन संकटों का दृढ़ पूर्वक मुकाबला करना चाहिए। बहुत से लोग तो इन संकटों को देखकर अपना हिम्मत हार जाते है और असफल मनः स्थिति में ही बेमौत मार जाते है।

जब तक आपको सफलता नहीं मिल जाएं तब तक बैठना नहीं। आपको अपने मन को इस तरह बनाकर रखना है कि हमारे जीवन में जो भी संकट आते है वह स्थायी रूप से नहीं रहती है। कभी भी संकट की घड़ी में अपने आप को यह एहसास नहीं होने देना है कि अब हमसे नहीं होगा।

अधिकतर लोग संकट और विपत्ति से डरकर अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते है। इसका सीधा से कारण है आपका मनोबल कमजोर है। ऐसे संकट को देखकर आपका मन हार गया।

सफलता के कुंजी मनोबल और उचित योजना

जीवन में असफलता का कारण क्या है ?
What is the reason for failure in life ?

संकट की परिस्थिति में मन में नकारात्मक विचार (negative thought) बहुत अधिक आते है। मन स्थिर नहीं रहता है। ऐसे स्थिति में अपने मनोबल को स्थिर रखें।

संकट के समय आपके मन में कितने ही सवाल प्रकाश की गति से भी तेज दौड़ते रहते होंगे। ऐसी स्थिति में अपने मन में व्यर्थ और फालतू का सवाल या विचार लाना ही नहीं है वरना आप अपने लक्ष्य से भटक जाएंगे और कभी भी सही फैसला नहीं ले पाएंगे।

सफलता की एकमात्र कुंजी : मनोबल और उचित योजना
The only key to success: the morale and the proper plan

अगर आप अपने जीवन में सफलता पाना चाहते है तो मनोबल के साथ-साथ उचित योजना बनाना  भी जरूरी है। मनोबल और योजना दोनो ही एक दूसरे के पूरक है। हर जगह सिर्फ मनोबल से काम न चलेगा पहले से सोच-समझा योजनाबद्ध तरीका भी होना चाहिए।

आप तब तक दुनिया के सफल इंसान नहीं बन सकते है जब तक मनोबल के साथ उचित योजनाबद्ध तरीका न हो।

अगर आप कोई योजना बनाते है और उसमें आपको सफलता नहीं मिलती है तो इसमें निराश होने की जरूरत नहीं है। फिर से एक नई योजना बनाएं और अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़े। ऐसा तब तक करते रहे जब तक कि आपको सफलता न मिल जाएं।

आपको असफल होकर मरना नहीं है बल्कि सफलता पाकर ही मरना है वरना ऐसी जिंदगी जीने का ही क्या फायदा जिसमें पछतावा के सिवाय और कुछ नहीं।

अगर आपको बार-बार असफलता मिल रही है तो इस बात का ध्यान देना है कि आप जो योजना बना रहे है उसमें गलती कहां पर हो रही है। अपनी गलतियों को ढूँढये और फिर से एक नई योजना बनाकर विश्वास के साथ बिना डरे अपने लक्ष्य की ओर आगे बढिए। आपको निश्चित ही सफलता मिलेगी।

जिंदगी में हमेशा एक बात याद रखना – तन की शक्ति से ज्यादा मन की शक्ति अधिक शक्तिशाली होती है।

मनोबल की शक्ति को एक कहानी के माध्यम से जानते है। यह कहानी अखंड ज्योति पत्रिका से ली गई है।

कहानी (Story) :

विराट नगर के राजा सुकीर्ति के पास एक लौह श्रृंग नामक विशालकाय हाथी था। युद्ध कला में वह बड़ा प्रवीण था। राजा जब युद्ध करने जाते तो उसी पर बैठते। सेना के आगे चलने वाला पर्वताकार लौह श्रृंग अपने क्रुद्ध मुद्रा में शत्रु पक्ष पर जो प्रचंड हुंकार के साथ आक्रमण करता तो देखते-देखते विपक्षियों के पाँव उखड़ जाते। इस प्रकार कितने ही युद्ध लौहश्रृंग के युद्धकौशल ने सहज ही जिताये थे।

समयचक्र के अनुसार लौह श्रृंग वृद्ध होने लगा। उसकी चमड़ी झूल गई और युवावस्था वाला पराक्रम चल गया। अब वह हाथीशाला की शोभामात्र बन कर रह गया था। पहले जहां उसकी सेवा में कई-कई सेवक रहते थे और पर्याप्त भोजन मिलता था। उस सब में कमी हो गई। एक बूढ़ा सेवक उसके भोजन पानी के व्यवस्था करता था। वो भी कई बार चूक कर जाता और हाथी को भूखा-प्यासा रहना पड़ता।

एक दिन लौहश्रृंग बहुत प्यासा था। हाथीशाला में प्रबंध न देखकर वह चुपके से प्यास बुझाने के लिए चल पड़ा और पुराने परिचित तालाब में पहुंचकर उसने भरपेट पानी पिया, प्यास बुझाई और गहरे जल में जाकर शान्तिपूर्वक स्नान किया।

दुर्भाग्य से उस तालाब में कीचड़ बहुत थी। वृद्ध हाथी उसमे फंस गया। निकलने का जितना प्रयास करता उलटा उतना ही फँसता जाता। निदान वह गर्दन तक घुस गया।

यह समाचार राजा को मिला तो वे बहुत दुखी हुए। अपने प्यारे हाथी को बचने के लिए उन्होंने अनेक प्रयत्न कराये पर वे सभी निष्फल हुए। उसे बाहर न निकाला जा सका। उसे इस दयनीय दुर्दशा के साथ मृत्यु मुख में जाते देखकर सभी दुखी थे।

एक चतुर वयोवृद्ध सैनिक ने राजा के सम्मुख जाकर अभिवंदन के साथ निवेदन किया कि उसे अवसर मिले तो हाथी को कीचड़ से बाहर निकाला जा सकता है। सैनिक को आज्ञा मिल गई।

उसने सभी प्रयत्न करने वालों को वापिस बुलाया और उन्हें युद्ध सैनिकों की वेशभूषा पहनाई। वही वाद्य यंत्र मंगाए जो लड़ाई के समय बजते थे। हाथी के सामने युद्ध नगाड़े बजाने लगे और सैनिक इस प्रकार कूच करने लगे मानो वे शत्रु पक्ष की ओर से लौह श्रृंग की ओर बढ़ते चले आ रहे हैं।

यह दृश्य देखा तो वृद्ध हाथी को यौवनकाल का जोश आ गया, क्रोध से वह काँपने लगा। जोर से चिंघाड़ लगाई और इन शत्रु सैनिकों पर आक्रमण करने के लिए वह पूरी शक्ति के साथ टूट पड़ा।

इस आक्रमण मुद्रा में न जाने कहाँ से उसमें इतना बल आ गया कि कंठ तक जो कीचड़ में फँसा हुआ था उसे रोंदता हुआ क्षण भर में तालाब के तट पर आ खड़ा हुआ।

इस युक्ति की सभी ने बड़ी प्रशंसा की। वृद्धावस्था में भी इतना बल होने के कारण हाथी की भी सर्वत्र सराहना हुई। युक्तिकार को बहुमूल्य पुरस्कार मिले और राजा की खिन्नता प्रसन्नता में बदल गई। हाथी भी जीवन रक्षा का अवसर मिलने से संतुष्ट था।

उपरोक्त कथा तथागत ने अपने शिष्यों को सुनाई और उन्हें संबोधित करते हुए कहा — भिक्षुओ, संसार में मनोबल ही सबसे प्रथम है। उसकी सहायता से असंभव दीखने वाले काम पूरे हो सकते हैं। दुर्बल साधन रहित और आपत्तिग्रस्त भी मनोबल के सहारे अप्रत्याशित प्राप्त कर सकता है।

आपकी हार तब तक नहीं हो सकती है जब तक कि आप अपने मनोबल का उपयोग करना बंद न कर दे – जब तक कि मन में हिम्मत न हार जाएं। भले ही जिंदगी में कई बार असफलता मिलती है परंतु वह आपकी हार नहीं हुई जब तक आप खुद से हार नहीं मान जाएं।

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Himanshu Kumar
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