जीव जंतुओं में पाए जाने वाली अद्भुत विशेषता

आज मैं बात करने वाला हूँ जीव जंतुओं में पाई जाने वाली अद्भुत विशेषता की। यह आर्टिकल अखंड ज्योति पत्रिका से ली गई है। जीव जंतुओं में एक अद्भुत विद्युतीय तथा चुम्बकीय शक्ति पाई जाती है। उनके शरीर में, मस्तिष्क में ऐसे विशिष्ठ अवयव पाए जाते हैं जिनमे शरीरगत विद्युत अपना काम करती है और वे आश्चयर्जनक जीवन पद्धति अपनाये रहते हैं। वैज्ञानिकों ने इसी अद्भुत संरचना को देख-परखकर उसकी नकल के सहारे कुछ ऐसे आविष्कार किये है जो अपनी उपयोगिता के लिए प्रख्यात है।

जीव जंतुओं में पाए जाने वाली अद्भुत विशेषता

मधुमक्खियों की नेत्र रचना देखकर विज्ञानवेत्ता पोलारायड ओरिसनटेशन इंडिकेटर नामक यंत्र बनाने में समर्थ हुए है। यह ध्रुव प्रदेश में दिशा ज्ञान का सही माध्यम है। उस क्षेत्र में साधारण कुतुबुनुमा अपनी उत्तर, दक्षिण दिशा बताने वाली विशेषता खो बैठते है तब इसी यंत्र के सहारे उस क्ष्रेत्र के यात्री अपना काम चलाते है।

समुद्री तूफान आने से बहुत पहले ही समुद्री बत्तखें (Duck) आकाश में उड़ जाती है और तूफान की परिधि के क्षेत्र से बाहर निकल जाती हैं। डॉल्फिन मछलियाँ चट्टानों में जा छिपती हैं, तारा मछली गहरी डुबकी लगा लेती है और ह्ववेल उस दिशा में भाग जाती हैं, जिसमें तूफान न पहुंचे। यह पूर्व ज्ञान इन जल-जंतुओं का जितना सही होता है उतना ऋतु विशेषज्ञों के बहुमूल्य उपकरणों को भी नहीं होता। मास्को विश्व-विद्यालय न इन्हीं जल जंतुओं के अत्यंत सूक्ष्म सूचना ग्राहक कानों की नकल पर ऐसे यंत्र बनाये है जो अंतरिक्ष में होने वाली अविज्ञात हलचलों की पूर्व सूचना संग्रह कर सकें। ऐसा अत्यंत सूक्ष्म ध्वनि प्रवाहों को सुन समझ लेने से ही संभव होता है।

जीव-अंतुओं की विशिष्ट क्षमताओं का आधार उनकी ऐसे संरचना में सन्निहित है जो मनुष्यों के हिस्से में नहीं आई है। अब विज्ञान मनुष्येतर विभिन्न प्राणियों की शारीरिक एवं मानसिक संरचना से जुड़ी हुई अद्भुत विशेषताओं को खोजने में संलग्न है। इसका एक स्वतंत्र शास्त्र ही बन गया है जिसका नाम है — ‘वायोनिक्स’। इसे स्पेशल पर्पस मैकेनिज्म-विशेषोद्देश्य व्यवस्थाएं भी कहा जाता है।

किसी अँधेरे कमरे में बहुत पतले ढेरों तार बंधे हों उसमें चमगादड़ (Bat) छोड़ दी जाए तो वह बिना तारों से टकराये रात भर उड़ती रहेंगी। ऐसा इसलिए होता है कि उसके शरीर से निकलने वाले कंपन तारों से टकरा कर जो ध्वनि उत्पन्न करते हैं उन्हें उसके संवेदनशील कान सुन लेते हैं और यह बता देते हैं कि तार कहाँ बिखरे पड़े है। बिना आंखों के ही उसे इस ध्वनि माध्यम से अपने क्षेत्र में बिखरी पड़ी वस्तुएं दीखती रहती है।

मेढ़क (Frog) केवल जिंदा कीड़े खाता है। उसके सामने मरी और जिंदी मक्खियों का ढेर लगा दिया जाय तो उनमे से वह चुन-चुनकर केवल जिंदा मक्खियां ही खायेगा। इसका कारण मृतक या जीवित मांस का अंतर नहीं वरन यह है कि उनकी विचित्र नेत्र संरचना केवल हलचल करती वस्तुएं ही देख पाती है स्थिर वस्तुएं उसे दीखती ही नहीं। मरी मक्खी को किसी तार से लटका कर हिलाया जाय तो वह उसे खाने के लिए सहज ही तैयार हो जाएगा।

उल्लू (owl) की ध्वनि संवेदना उसके शिकार का आभास ही नहीं करती ठीक दिशा दूरी और स्थिति भी बात देती है फलतः वह पत्तों के ढेर के नीचे हलचल करते चूहों पर जा टूटता है और एक ही झपट्टे में उसे ले उड़ता है।

गहरी डूबी हुई पनडुब्बियों में रेडियों संपर्क निरंतर कायम रखना कई बार कठिन होता है क्योंकि प्रेषित रेडियों तरंगों का बहुत बड़ा भाग समुद्र का जल ही सोख लेता है। इस कठिनाई को दूर करने के लिए मछली में सन्निहित उन विशेषताओं को तलाश किया जा रहा है, जिसके आधार पर वह जलराशि में होने वाली जीव जंतुओं की छोटी-छोटी हलचलों को जान लेती है और आत्मरक्षा तथा भोजन व्यवस्था के प्रयोजन पूरे करती हैं।

रैटलसाँप तापमान के अत्यंत न्यून अंतर को जान लेता है। चूहे, चिड़िया आदि के रक्त का तापमान अत्यंत नगण्य मात्रा में ही भिन्न होता है, पर यह साँप उस तापमान के अंतर को जानकर अपना प्रिय आहार चुनता है। यह कार्य वह गंध के आधार पर नहीं अपने ताप मापक शरीरी अवयवों के द्वारा पूरा करता है। वैज्ञानिकों ने इसी संरचना को ध्यान में रखते हुए इंफ्रा रेड किरणों का उपयोग करके तापमान के उतार चढ़ावों का सही मूल्यांकन कर सकने में सफलता प्राप्त की है।

पनडुब्बियों को पानी के भीतर देर तक ठहरने के लिये आक्सीजन की अधिक मात्रा अभीष्ट होती है और बनाने वाली कार्बन-डाइ-आक्साइड को बाहर फेंकने की जरूरत पड़ती है। यह दोनो कार्य पानी के भीतर ही होते रहें तभी उसका अधिक समय समुद्र में रह सकना संभव हो सकता है। मछली पानी से ही आक्सीजन खींचती है और उसी में अपने शरीर की कार्बन गैस खपा देती है। यह पनडुब्बियों के लिए भी संभव हो सके इसका रास्ता मछलियों की संरचना का गहन अध्ययन करने के उपरांत ही प्राप्त किया जा सकता है।

हवाई जहाजों (aeroplane) की बनावट में पिछले चालीस वर्षों में अनेको उपयोगी सुधार किये गए है। उसके लिए विभिन्न पक्षियों की संरचना और क्षमता का गहरा अध्ययन करने में विशेषज्ञों को संलग्न रहना पड़ा। भुनगों की शरीर रचना के आधार पर वायुयानों में दूरदर्शन के लिए प्रयुक्त होने वाला एक विशेष यंत्र ‘ग्राउंड स्पीड मीटर‘ बनाया गया है। भुनगों के आंखें नहीं होती वे अपना काम विशेष फोटो सेलों से चलाते हैं। वही प्रयोग इस यंत्र में हुआ है।

अटलांटिक सागर के आर-पर रेडियो प्रसारणों को ठीक तरह पहुंचाने का रास्ता बतलाने में जिन कम्प्यूटरों का प्रयोग होता है कई बार असफल हो जाते है क्योंकि मौसम की प्रतिकूलता रेडियों तरंगों में व्यावधान उत्पन्न करती है, अस्तु ध्वनि प्रवाह के लिए नए रास्ते ढूढने पड़ते है। इस कार्य के लिए चींटी (ant) की मस्तिष्कीय संरचना अधिक उपयुक्त समझी गई है।

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Himanshu Kumar
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