विश्व के सभी धर्मों में किसी न किसी रूप में उस परम सत्ता को स्वीकार किया है। यह परम सत्ता सर्वव्यापक और निराकार है जिसे हम परमात्मा की संज्ञा देते है। आत्मा (soul) इसी परम तत्व या परम सत्ता का अंश है।
आत्मा भी निराकार है, किन्तु प्रकृति से प्रभावित होकर इसमें विकार उत्पन्न होता है जिसके फलस्वरूप मन, बुद्धि और अहंकार की उत्पत्ति होती है। इन तीनों के समन्वय रूप को जीवात्मा कहते हैं।
मन, बुद्धि और अहंकार तीनों आत्मा के मुख्य अंग हैं। ‘मन’ आत्मा के बिल्कुल निकट है और क्रियाशील है। जिस प्रकार पानी और बर्फ एक ही पदार्थ है किन्तु पानी चंचल है और बर्फ जड़ अथवा निष्क्रिय है, उसी प्रकार मन और आत्मा भी एक ही पदार्थ के दो रूप हैं पहला क्रियाशील है और दूसरा है निष्क्रिय।
आत्मा (soul) को समझने के लिए ‘मन’ (mind) को जानना जरूरी है। इसके बारे अगली पोस्ट में जानेगे।
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इस समीक्षा से स्पष्ट है कि एक ही वस्तु के परमात्मा, आत्मा (soul) और जीवात्मा ये तीन रूप हैं, किन्तु प्रकृति के कारण इनमें भिन्नता पायी जाती है।
क्रम से अहंकार का रूप बुद्धि में और बुद्धि का मन में और फिर मन का भी रूप आत्मा में लीन होने पर मनुष्य विशुद्ध आत्मा बनता है और परमात्मा के करीब अपने को अनुभव करता है। शरीर छूटने के बाद हम जीवात्मा को ही मृतात्मा कहने लग जाते है।
मृतात्मा के साथ संपर्क स्थापित करने की मानवीय इच्छा उतनी ही प्राचीन ही जितना प्राचीन मनुष्य है।
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