पारसी धर्म का इतिहास : Parsi Dharma History in Hindi

Zoroastrianism history in hindi : पारसी धर्म के संस्थापक जरथुस्ट्र (ईरानी) थे, इसलिए इसे ज़रथुष्ट्री धर्म भी कहा जाता है। यह फारस का राजधर्म हुआ करता था। इस पोस्ट में पारसी धर्म (parsi dharma) के इतिहास (itihas) से संबंधित सभी महत्वपूर्ण तथ्यों को हिंदी में जानेंगे।

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पारसी धर्म का इतिहास : Parsi Dharma History in Hindi

ऐतिहासिक रूप से पारसी धर्म की शुरुआत 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुई। यह धर्म जेन्दा अवेस्ता नामक ग्रंथ की शिक्षाओं पर आधारित है। यह ग्रंथ पारसियों का धार्मिक ग्रंथ है।

जेन्दा अवेस्ता के अब कुछ ही अंश मिलते हैं। इसके सबसे पुराने भाग ऋग्वेद के तुरन्त बाद के काल के हो सकते हैं। इसकी भाषा अवेस्तन भाषा है, जो संस्कृत भाषा से बहुत मेल खाती है।

फारसी धर्म की मूल शिक्षा का सूत्र है : –

  1. सद् विचार
  2. सद्-वचन
  3. सद्-कार्य

पारसी धर्म के अनुयायी एक ईश्वर ‘अहुर‘ को मानते हैं। उनका वर्णन वैदिक देवता वरुण से काफ़ी मिलता है। अहुर कोई व्यक्ति नहीं है, बल्कि सत्व है, शक्ति है, ऊर्जा है। 

जरथुस्त्र के दर्शनानुसार विश्व में दो आद्य आत्माओं के बीच निरंतर संघर्ष जारी है।

इनमें एक है अहुर की आत्मा, ‘स्पेंता मैन्यू‘। दूसरी है दुष्ट आत्मा ‘अंघरा मैन्यू‘। इस दुष्ट आत्मा के नाश हेतु ही अहुर ने अपनी सात कृतियों यथा आकाश, जल, पृथ्वी, वनस्पति, पशु, मानव एवं अग्नि से इस भौतिक विश्व का सृजन किया।

पारसी (parsi) विश्वास के मुताबिक अहुर का दुश्मन दुष्ट अंगिरा मैन्यू (आहरीमान) है।

पैगंबर जरथुस्त्र के उपदेशों के अनुसार विश्व एक नैतिक व्यवस्था है। इस व्यवस्था को स्वयं को कायम ही नहीं रखना है, बल्कि अपना विकास तथा संवर्द्धन भी करना है। 

विकास की प्रक्रिया में बुरी ताकतें बाधा पहुँचाती हैं, परंतु मनुष्य को इससे विचलित नहीं होना है। उसे सदाचार के पथ पर कायम रहते हुए सदा विकास की दिशा में बढ़ते रहना है।

जरथोस्ती धर्म में मठवाद, ब्रह्मचर्य, व्रत-उपवास, आत्म दमन आदि की मनाही है। ऐसा माना गया है कि इनसे मनुष्य कमजोर होता है और बुराई से लड़ने की उसकी ताकत कम हो जाती है।

निराशावाद व अवसाद को तो पाप का दर्जा दिया गया है। जरथुस्ट्र चाहते हैं कि मानव इस विश्व का पूरा आनंद उठाए, खुश रहे। वह जो भी करे, बस एक बात का ख्याल अवश्य रखे और वह यह कि सदाचार के मार्ग से कभी विचलित न हो।

पारसी धर्म के अनुयाइयों को ‘अग्नि-पूजक‘ भी कहा जाता है क्योंकि ये लोग अग्नि को ईश्वरपुत्र समान और अत्यन्त पवित्र मानते है। इसी के माध्यम से अहुर की पूजा होती है। पारसी मंदिरों को आतिश बेहराम कहा जाता है।

प्राचीन फारस (आज का ईरान) जब पूर्वी यूरोप से मध्य एशिया तक फैला एक विशाल साम्राज्य था, तब पैगंबर जरथुस्ट्र ने एक ईश्वरवाद का संदेश देते हुए पारसी धर्म की नींव रखी।

सातवीं शताब्दी में अरबों ने ईरान को पराजित कर वहाँ के ज़रथुष्ट्र धर्मावलम्बियों को जबरन इस्लाम में परिवर्तित कर लिया था। ऐसी मान्यता है कि कुछ ईरानियों ने इस्लाम स्वीकार नहीं किया और वे एक नाव पर सवार होकर भारत भाग आए और उन्होंने भारत के पश्चिमी तट पर शरण ली। (source)

प्राचीन भारतीय इतिहास नोट्स :

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Himanshu Kumar
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