प्रेत शरीर प्रकृति प्रदत्त शरीर नहीं है। स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर के बीच का है प्रेत शरीर (pret sharir)। स्थूल शरीर के बाद सबसे महत्वपूर्ण शरीर सूक्ष्मतम शरीर है। उसके बिना आत्मा न पुनर्जन्म को उपलब्ध हो सकती है और न तो परलोकगमन ही कर सकती है।
जैसे गर्भ में शिशु के शरीर का निर्माण नौ मास में पूरा होता है, उसी प्रकार आत्मा के लिए उस दस दिनों में सूक्ष्म शरीर की रचना होती है। दसगात्र श्राद्ध इसलिए किया जाता है। गात्र का अर्थ है अंग। एक-एक दिन एक-एक अंग का निर्माण होता है और जब वह पूर्ण हो जाता है तो आत्मा सूक्ष्म शरीर में प्रवेश करती है और उस सूक्ष्म शरीर के द्वारा उसका सूक्ष्मलोक में जन्म होता है।

सूक्ष्मलोक में और सूक्ष्म शरीर में आत्मा कब तक रहती है इसकी कोई निश्चित अवधि नहीं है। यह स्थूल शरीर की उपलब्धि पर निर्भर है। संस्कार और कर्म के अनुसार पुनर्जन्म होता है। जब तक पुनर्जन्म का अवसर नहीं मिलता, तबतक आत्मा सूक्ष्म शरीर में ही रहती है उस सूक्ष्म शरीर को लेकर ही अवसर मिलने पर वह गर्भ में भी प्रवेश करती है।
सूक्ष्म शरीर का निर्माण मुख्यतः दो कारणों से नहीं होता –
- पहला यह कि अकाल मृत्यु होने पर
- दूसरा दासगात्र श्राद्ध न होने अथवा विधि-विधान से न होने पर।
लेकिन स्थूल शरीर के छूट जाने पर आत्मा (soul) के लिए शरीर का आश्रय तो चाहिए ही। इस विषम स्थिति में आत्मा अपने संस्कार अपनी वासना, कामना, भावना आदि के आधार पर स्वयं अपने लिये जिस शरीर की रचना कर लेती है उसी को प्रेतशरीर (pret sharir), वासना शरीर और भाव शरीर कहते हैं।
प्रेतयोनि को उपलब्ध आत्मा को प्रेतात्मा कहते हैं। प्रेतात्माएं अपने संस्कार और अपनी वासना व भावना के अनुरूप अपने रहने के लिए स्वयं सृष्टि कर लेती हैं वातावरण की जिसे वासनात्मक सृष्टि कहते हैं।
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