तुगलक वंश का इतिहास : Tuglak Vansh History in Hindi : तुगलक किसी वंश या नस्ल का नाम न होकर व्यक्तिगत नाम था। तुगलक वंश दिल्ली सल्तनत का एक राजवंश था जिसने 1320 ई. से लेकर 1414 ई. तक दिल्ली की सत्ता पर राज किया। ग़यासुद्दीन ने एक नये वंश अर्थात तुग़लक़ वंश की स्थापना की।
इस वंश में तीन योग्य शासक हुए। ग़यासुद्दीन, उसका पुत्र मुहम्मद बिन तुग़लक़ और उसका उत्तराधिकारी फ़िरोज शाह तुग़लक़ एवं दिल्ली सल्तनत में सर्वाधिक नहर का निर्माण फिरोज तुगलक के द्वारा किया गया था।
तुगलक वंश के संस्थापक – | गयासुद्दीन तुगलक |
अंतिम शासक – | नासिरुद्दीन महमूद |
जाति – | तुर्क |
शासन काल | 1320 ई.-1413 ई. |
तुगलक वंश का इतिहास : Tuglak Vansh History in Hindi
तुगलक वंश के शासक (1320 ई.-1413 ई.)
- गयासुद्दीन तुगलक (1320-24 ई.)
- मुहम्मद बिन तुगलक (1324-51 ई.)
- फिरोज शाह तुगलक (1351-88 ई.)
- मोहम्मद खान (1388 ई.)
- गयासुद्दीन तुगलक शाह द्वितीय (1388 ई.)
- अबू बाकर (1389-90 ई.)
- नसीरुद्दीन मोहम्मद (1390-95 ई.)
- हूंमायूं (1394-95 ई.)
- नसीरुद्दीन महमूद (1395-1412 ई.)
गाजी गयासुद्दीन तुगलक : Ghiyas-ud-din Tughluq or Ghazi Malik (1320 – 1325 A.D.)
- 5 सितम्बर, 1320 ई. को खुशरों खां को पराजित करके गाजी मलिक या तुगलक गाजी गयासुद्दीन तुगलक के नाम से 8 सितम्बर, 1320 ई. को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।
- इसे तुग़लक़ वंश का संस्थापक भी माना जाता है। गयासुद्दीन तुगलक ने कुल 29 बार मंगोल आक्रमण को विफल किया।
- सुल्तान बनने से पहले वह कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी के शासन काल में उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त का शक्तिशाली गर्वनर नियुक्त हुआ था।
- वह दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था, जिसने अपने नाम के साथ ‘ग़ाज़ी’ (काफिरों का वध करने वाला) शब्द जोड़ा था।
- गयासुद्दीन का पिता करौना तुर्क ग़ुलाम था ।
गयासुद्दीन तुगलक के समय हुए आक्रमण –
इसके समय 1323 ई. में पुत्र जूना खाँ (मुहम्मद बिन तुगलक) ने वारंगल पर आक्रमण किया लेकिन असफल रहा। इस समय वारंगल का शासक प्रताप रुद्रदेव था।
1324 ई. में जूना खाँ ने वारंगल पर पुनः आक्रमण किया और वारंगल को जीतकर इसका नाम तेलंगाना / सुल्तानपुर रखा।
1324 ई. में गयासुद्दीन ने बंगाल का अभियान किया तथा नासिरुद्दीन को पराजित कर बंगाल के दक्षिण एवं पूर्वी भाग को सल्तनत में मिलाया तथा उत्तरी भाग पर नासिरुद्दीन को अपने अधीन शासक घोषित किया।
जौना खां ने अपना दूसरा अभियान 1324 ई. में जाजनगर (उड़ीसा) पर किया, वहां का शासक भानुदेव द्वितीय था। इस युद्ध में जाजनगर का शासक पराजित हुआ और जौना खां को प्रचुर मात्रा में धन प्राप्त हुआ।
आर्थिक सुधार –
- सुल्तान ने आर्थिक सुधार के अन्तर्गत अपनी आर्थिक नीति का आधार संयम, सख्ती एवं नरमी के मध्य संतुलन (रस्म-ए-मियान) को बनाया।
- उसने लगान के रूप में उपज का 1/10 या 1/11 हिस्सा ही लेने का आदेश जारी कराया।
- गयासुद्दीन ने अलाउद्दीन के समय में लिए अमीरों की भूमि को पुनः लौटा दिया।
- इसने सिंचाई के लिए कुएँ एवं नहरों का निर्माण करवाया।
- संभवतः नहरों का निर्माण करने वाला गयासुद्दीन प्रथम शासक था।
गयासुद्दीन तुगलक के द्वारा निर्माण कार्य –
- गयासुद्दीन ने दिल्ली के समीप स्थित पहाड़ियों पर तुगलकाबाद नाम का एक नया नगर स्थापित किया।
- रोमन शैली में निर्मित इस नगर में एक दुर्ग का निर्माण भी हुआ। इस दुर्ग को छप्पनकोट के नाम से भी जाना जाता है।
- इसने दिल्ली में मजलिस-ए-हुक्मरान की स्थापना की।
सार्वजनिक कार्य –
- जनता की सुविधा के लिए अपने शासन काल में ग़यासुद्दीन ने क़िलों, पुलों और नहरों का निर्माण कराया।
- सल्तनत काल में डाक व्यवस्था को सुदृढ़ करने का श्रेय ग़यासुद्दीन तुग़लक़ को ही जाता है।
- ‘बरनी’ ने डाक-व्यवस्था का विस्तृत वर्णन किया है।
- शारीरिक यातना द्वारा राजकीय ऋण वसूली को उसने प्रतिबंधित किया।
गयासुद्दीन की मृत्यु –
1325 ई. में बंगाल अभियान से वापस लौटते समय गयासुद्दीन की आगवानी के लिये दिल्ली के समीप अफगानपुर में उसके पुत्र जौना खां द्वारा स्वागत के लिये लकड़ी का भवन निर्मित किया गया था।
जब मंडप के नीचे सुल्तान के स्वागत का जश्न मनाया जा रहा था तभी अचानक हाथियों के आ जाने से वह मंडप गिर गया और मलबे के नीचे सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक, राजकुमार महमूद खान व अन्य व्यक्ति दबकर मर गए।
सुल्तान की इस तरह मृत्यु से एक मिथक प्रचलित है कि जौना खां ने सत्ता अधिकार के लिए स्वयं इस षड्यंत्र को रचा था।
एक अन्य मिथक के अनुसार, प्रसिद्ध सूफी संत निजामुद्दीन औलिया से सुल्तान के संबंध अच्छे नहीं थे। बंगाल विजय से वापस लौटते समय संभवतः सुल्तान ने निजामुद्दीन औलिया के पास संदेश भिजवाया था कि वे सुल्तान के आने के पूर्व सल्तनत छोड़कर कहीं और चले जाएं।
इस पर औलिया ने कहा था-‘‘दिल्ली अभी दूर है’’ (हुनूज दिल्ली दूरस्थ) और वास्तव में सुल्तान का दिल्ली प्रवेश के पूर्व ही देहांत हो गया।
नोट – गयासुद्दीन तुगलक ने लगभग सम्पूर्ण दक्षिण भारत को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया था।
मुहम्मद बिन तुगलक : Muhammad-bin-Tughlaq (1325-1361A.D.)
- गयासुद्दीन के बाद जूना खाँ मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।
- इसका मूल नाम ‘उलूग ख़ाँ‘ था।
- मध्यकालीन सभी सुल्तानों में मुहम्मद तुग़लक़ सर्वाधिक शिक्षित, विद्वान एवं योग्य व्यक्ति था।
- मुहम्मद बिन तुगलक को अपनी सनक भरी योजनाओं, क्रूर-कृत्यों एवं दूसरे के सुख-दुख के प्रति उपेक्षा का भाव रखने के कारण इसे ‘स्वप्नशील‘, ‘पागल‘ एवं ‘रक्त-पिपासु‘ कहा गया।
- दिल्ली सल्तनत में सबसे अधिक लंबे समय तक शासन तुगलक वंश ने किया, तथा सल्तनत के सुल्तानों में सर्वाधिक विस्तृत साम्राज्य मुहम्मद बिन तुगलक का था।
- मुहम्मद बिन तुगलक शेख अलाउद्दीन का शिष्य था।
- वह सल्तनत का पहला शासक था, जो अजमेर में शेख मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह और बहराइच में सालार मसूद गाजी की मकबरे में गया।
मुहम्मद तुग़लक़ के सिंहासन पर बैठते समय दिल्ली सल्तनत कुल 23 प्रांतों में बँटा थी, जिनमें मुख्य थे – दिल्ली, देवगिरि, लाहौर, मुल्तान, सरमुती, गुजरात, अवध, कन्नौज, लखनौती, बिहार, मालवा, जाजनगर (उड़ीसा), द्वारसमुद्र आदि।
कश्मीर एवं बलूचिस्तान भी दिल्ली सल्तनत में शामिल थे। दिल्ली सल्तनत की सीमा का सर्वाधिक विस्तार इसी के शासनकाल में हुआ था।
परन्तु इसकी क्रूर नीति के कारण राज्य में विद्रोह आरम्भ हो गया। जिसके फलस्वरूप दक्षिण में नए स्वतंत्र राज्य की स्थापना हुई और ये क्षेत्र दिल्ली सल्तनत से अलग हो गए। बंगाल भी स्वतंत्र हो गया।
मुहम्मद तुगलक दिल्ली पर बैठने वाले सुल्तानों में सबसे अधिक पढ़ा-लिखा था। वह एक अच्छा लेखक एवं कवि था। खुद धर्म एवं दर्शन का विद्वान था। वह अरबी भाषा एवं फ़ारसी भाषा का विद्धान तथा खगोलशास्त्र, दर्शन, गणित, चिकित्सा, विज्ञान, तर्कशास्त्र आदि में पारंगत था।
अलाउद्दीन ख़िलजी की भाँति अपने शासन काल के प्रारम्भ में उसने, न तो ख़लीफ़ा से अपने पद की स्वीकृति ली और न उलेमा वर्ग का सहयोग लिया, यद्यपि बाद में ऐसा करना पड़ा। उसने न्याय विभाग पर उलेमा वर्ग का एकाधिपत्य समाप्त किया।
नस्ल और वर्ग-विभेद को समाप्त करके योग्यता के आधार पर अधिकारियों को नियुक्त करने की नीति अपनायी।
वस्तुत: यह उस शासक का दुर्भाग्य था कि, उसकी योजनाएं सफलतापूर्वक क्रियान्वित नहीं हुई।
मुहम्मद तुगलक के प्रयोग एवं सुधार
राजस्व सुधार
उसने अपने शासनकाल में सभी राज्यों में एक समान राजस्व-व्यवस्था लागू करने की कोशिश की। राज्य की आय में वृद्धि के लिए उसने दोआब में कर लगाया।
सुल्तान ने भूमि कर के साथ-साथ नए करों को भी लागू किया तथा कठोरतापूर्वक वसूल करने का प्रयत्न किया।
मुहम्मद तुगलक ने मकानों तथा चारागाहों पर भी कर लगाए, जिससे जनता क्रुद्ध हो गई और सुल्तान को उनका कोपभाजन बनना पड़ा।
दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि – (1326-1327 ई.)
अपनी प्रथम योजना के द्वारा मुहम्मद तुग़लक़ ने दोआब के ऊपजाऊ प्रदेश में कर की वृद्धि कर दी (संभवतः 50 प्रतिशत), परन्तु उसी वर्ष दोआब में भयंकर अकाल पड़ गया, जिससे पैदावार प्रभावित हुई।
तुग़लक़ के अधिकारियों द्वारा ज़बरन कर वसूलने से उस क्षेत्र में विद्रोह हो गया, जिससे तुग़लक़ की यह योजना असफल रही।
कृषि विभाग का निर्माण
- मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने शासनकाल में एक पृथक-पृथक विभाग का निर्माण करवाया था।
- पृथक कृषि विभाग को ‘दीवान-ए-कोही’ का नाम दिया गया।
- राज्य की ओर से सीधी आर्थिक सहायता देकर कृषि योग्य भूमि का विस्तार इस विभाग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य था।
- इस योजना में सरकार ने दो वर्षों के भीतर लगभग 70 लाख रूपए का व्यय किया।
सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार, किसानों की उदासीनता, भूमि का अच्छा न होना इत्यादि कारणों से कृषि उन्नति सम्बन्धी अपनी योजना को तीन वर्ष पश्चात् समाप्त कर दिया।
मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने किसानों को बहुत कम ब्याज पर ऋण (सोनथर) उपलब्ध कराया।
राजधानी परिवर्तन (1326-27 ई.)
- मुहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी दिल्ली से देवगिरि में स्थानांतरित की और इसका नाम दौलताबाद रखा।
- दिल्ली उत्तर पश्चिमी सीमा के अधिक निकट थी और उस पर मंगोल आक्रमणों का भय हमेशा बना रहता था।
- दक्षिण भारत में हमेशा विद्रोह होते रहते थे, इसलिए वहां शासन की सुदृढ़ता के लिए स्थायी रूप से रहना आवश्यक था।
- देवगिरि दिल्ली, गुजरात, लखनौती, सातगांव, सोनारगांव, तैलंगाना, माबर, द्वारसमुद्र और काम्पिल्य से बराबर की दूरी पर था और इस तरह से सल्तनत साम्राज्य के केंद्र में था, इसलिए उसे राजधानी बनाया जाना सुरक्षा की दृष्टि से उपयुक्त कदम था।
- दिल्ली से दौलताबाद के बीच 700 मील (1500 किमी.) लंबी सड़क बनवाया। दिल्ली से दौलताबाद की यात्रा में कुल 40 दिन लगते थे। समस्या यह हुई कि प्रवास गर्मी के मौसम में किया गया।
- सुल्तान के आदेश पर दिल्ली के नागरिक दौलताबाद के लिए रवाना हुए, पर वहां पहुंचने पर मकान, वस्तुओं के अभाव तथा मानसिक वेदना के कारण लोगों को असहाय कष्ट हुआ।
कुछ समय पश्चात मुहम्मद बिन तुगलक ने दौलताबाद छोड़ दिया क्योंकि वह जान गया कि जिस तरह वह दिल्ली से दक्षिण को नियंत्रित नहीं कर सकता, वैसे ही दौलताबाद से उत्तर-भारत को नियंत्रित नहीं किया जा सकता था।
राजधानी परिवर्तन की मुहम्मद बिन तुगलक की योजना पूर्ण रूप से असफल रही।
सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन (1329-30 ई.)
- मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली सल्तनत का पहला सुल्तान था जिसने 1330 ई. में सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन किया।
- बरनी के अनुसार सम्भवतः सुल्तान ने राजकोष की रिक्तता के कारण एवं अपनी साम्राज्य विस्तार की नीति को सफल बनाने हेतु सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन करवाया।
- सांकेतिक मुद्रा के अन्तर्गत सुल्तान ने संभवतः पीतल (फ़रिश्ता के अनुसार) और तांबा (बरनी के अनुसार) धातुओं के सिक्के चलाये, जिसका मूल्य चांदी के रुपये टका के बराबर होता था।
- सिक्का ढालने पर राज्य का नियंत्रण नहीं रहने से अनेक जाली टकसाल बन गये। लगान जाली सिक्के से दिया जाने लगा, जिससे अर्थव्यवसथा ठप्प हो गई।
सांकेतिक मुद्रा चलाने की प्रेरणा चीन तथा ईरान से मिली। वहाँ के शासकों ने इन योजनाओं को सफलतापूर्वक चलाया, जबकि मुहम्मद तुग़लक़ का प्रयोग विफल रहा। सुल्तान को अपनी इस योजना की असफलता पर भयानक आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा।
इससे पहले चीन में कुबलाई खाँ ने 1260 ई. में कागज की मुद्रा चान (चाओ) चलाकर सांकेतिक मुद्रा का सफल प्रयोग कर चुका था।
खुरासन अभियान
सुल्तान का व्यापक जीत का एक सपना था। उसने खुर्सी और इराक को विजय के चुना और इस करना एक विशाल सेना को सक्रिय कर दिया था। उसको इस अभियान से निराशा हाथ लगी थी।
कराचिल अभियान
यह अभियान चीनी हमलों का मुकाबला करने के लिए चलाया गया था। इन परियोजनाओं ने मदुरै और वारंगल की स्वतंत्रता और विजयनगर और बहमनी की नींव रखने के लिए देश के कई हिस्सों में विद्रोहों को जन्म दिया था।
अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु
- अफ्रीकी (मोरक्को) यात्री इब्न बतूता लगभग 1333 ई. में भारत आया। सुल्तान ने इसे दिल्ली का काजी नियुक्त किया। 1342 ई. में सुल्तान ने इसे अपने राजदूत के रूप में चीन भेजा।
- इब्नबतूता की पुस्तक रेहला में मुहम्मद तुगलक के समय की घटनाओं का वर्णन है। इसने अपनी पुस्तक में विदेशी व्यापारियों के आवागमन, डाक चौकियों की स्थापना यानी डाक व्यवस्था एवं गुप्तचर व्यवस्था के बारे में लिखा है।
- मुहम्मद तुगलक ने जिन प्रभा सूर नामक जैन-साधु के साथ विचार-विमर्श किया था।
- मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में दक्षिण में हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों ने 1336 ई. में स्वतंत्र राज्य विजयनगर की स्थापना की।
- महाराष्ट्र में अलाउद्दीन बहमन शाह ने 1347 ई. में स्वतंत्र बहमनी राज्य की स्थापना की।
मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु – मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु 20 मार्च, 1351 ई. को सिंध जाते समय थट्टा के निकट गोडाल में हो गयी।
महम्मद बिन तुगलक की मृत्यु पर इतिहासकार बरनी लिखता है, “अंततः लोगों को उससे मुक्ति मिली और उसे लोगों से” ।
फिरोज तुगलक : Firoz Tughlaq (1351-1 388 A.D.)
- फ़िरोजशाह तुग़लक़ का जन्म 1309 ई. को हुआ।उसका शासन 1351 ई. से 1388 ई. तक रहा।
- उसने अपने शासनकाल में ही चांदी के सिक्के चलाये।
- वह मुहम्मद तुग़लक़ का चचेरा भाई एवं सिपहसलार ‘रजब’ का पुत्र था।
- उसकी माँ नैला, दीपालपुर के भाटी राजपूत शासक (राणा मल) की पुत्री थी।
- मुहम्मद तुग़लक़ की मुत्यु के बाद 23 मार्च 1351 ई. को फ़िरोज़ तुग़लक़ का राज्याभिषक थट्टा के निकट हुआ। पुनः फ़िरोज़ का राज्याभिषेक दिल्ली में अगस्त, 1351 ई. में हुआ।
- खलीफा द्वारा इसे कासिम अमीर उल मोममीन की उपाधि दी गई।
राजस्व व्यवस्था
- राजस्व व्यवस्था के अन्तर्गत फ़िरोज़ ने अपने शासन काल में 24 कष्टदायक करों को समाप्त कर दिया और केवल 4 कर ‘ख़राज’ (लगान), ‘खुम्स’ (युद्ध में लूट का माल), ‘जज़िया’, एवं ‘ज़कात‘ (इस्लाम धर्म के अनुसार अढ़ाई प्रतिशत का दान, जो उन लोगों को देना पड़ता है, जो मालदार हों और उन लोगों को दिया जाता है, जो अपाहिज या असहाय और साधनहीन हों) को वसूल करने का आदेश दिया।
- उलेमाओं के आदेश पर सुल्तान ने एक नया सिंचाई (हक ए शर्ब) कर भी लगाया, जो उपज का 1/10 भाग वसूला जाता था।
- सम्भवतः फ़िरोज़ तुग़लक़ के शासन काल में लगान उपज का 1/5 से 1/3 भाग होता था।
- सुल्तान ने सिंचाई की सुविधा के लिए 5 बड़ी नहरें यमुना नदी से हिसार तक 150 मील लम्बी, सतलुज नदी से घग्घर नदी तक 96 मील लम्बी, सिरमौर की पहाड़ी से लेकर हांसी तक, घग्घर से फ़िरोज़ाबाद तक एवं यमुना से फ़िरोज़ाबाद तक का निर्माण करवाया।
- उसने फलो के लगभग 1200 बाग़ लगवाये।
- आन्तरिक व्यापार को बढ़ाने के लिए अनेक करों को समाप्त कर दिया।
नगरों की स्थापना
- नगर एवं सार्वजनिक निर्माण कार्यों के अन्तर्गत सुल्तान ने लगभग 300 नये नगरों की स्थापना की। इनमें से हिसार (हरियाणा), फ़िरोज़ाबाद (उत्तरप्रदेश), फ़तेहाबाद (हरियाणा का एक जिला), जौनपुर (उत्तरप्रदेश का एक शहर), फ़िरोज़पुर (पंजाब) आदि प्रमुख थे।
- इन नगरों में यमुना नदी के किनारे बसाया गया फ़िरोज़ाबाद सुल्तान को सर्वाधिक प्रिय था।
- जौनपुर नगर की नींव फ़िरोज़ ने अपने चचेरे भाई ‘फ़खरुद्दीन जौना‘ (मुहम्मद बिन तुग़लक़) की स्मृति में डाली थी।
- उसके शासन काल में ख़िज्राबाद (टोपरा गाँव) एवं मेरठ से अशोक के दो स्तम्भलेखों को लाकर दिल्ली में स्थापित किया गया।
- सुल्तान फरोज तुगलक ने एक रोज़गार का दफ्तर एवं मुस्लिम अनाथ महिलाओं, विधवाओं एवं लड़कियों की सहायता के लिए एक नये ‘दीवान-ए-ख़ैरात‘ नामक विभाग की स्थापना की।
- ‘दारुल-शफ़ा‘ (शफ़ा=जीवन का अंतिम किनारा, जीवन का अंतिम भाग) नामक एक राजकीय अस्पताल का निर्माण करवाया, जिसमें ग़रीबों का मुफ़्त इलाज होता था।
फिरोज की नीति एवं अभियान
- फ़िरोज़ के शासनकाल में दासों की संख्या लगभग 1,80,000 पहुँच गई थी। इनकी देखभाल हेतु सुल्तान ने ‘दीवान-ए-बंदग़ान‘ की स्थापना की।
- दासों को नकद वेतन या भूखण्ड दिए गये।
- सैन्य व्यवस्था के अन्तर्गत फ़िरोज़ ने सैनिकों पुनः जागीर के रूप में वेतन देना प्रारम्भ कर दिया। उसने सैन्य पदों को वंशानुगत बना दिया, इसमें सैनिकों की योग्यता की जाँच पर असर पड़ा।
- खुम्स का 4/5 भाग फिर से सैनिकों को देने के आदेश दिए गये।
- सम्भवतः दिल्ली सल्तनत का वह प्रथम सुल्तान था, जिसने इस्लामी नियमों का कड़ाई से पालन करके उलेमा वर्ग को प्रशासनिक कार्यों में महत्त्व दिया।
- न्याय व्यवस्था पर पुनः धर्मगुरुओं का प्रभाव स्थापित हो गया।
- मुसलमान अपराधियों को मृत्यु दण्ड देना बन्द कर दिया गया।
- फ़िरोज़ कट्टर सुन्नी मुसलमान था।
- उसने हिन्दू जनता को ‘जिम्मी’ (इस्लाम धर्म स्वीकार न करने वाले) कहा और हिन्दू ब्राह्मणों पर जज़िया कर लगाया।
संरक्षण एवं रचनाएं
- शिक्षा प्रसार के क्षेत्र में सुल्तान फ़िरोज़ ने अनेक मक़बरों एवं मदरसों (लगभग 13) की स्थापना करवायी।
- इसने अपनी आत्मकथा फतूहात-ए-फिरोजशाही की रचना की।
- उसने ‘जियाउद्दीन बरनी’ एवं ‘शम्स-ए-सिराज अफीफ’ को अपना संरक्षण प्रदान किया।
- इसने ज्वालामुखी मंदिर की पुस्तकालय से लूटे गए 1300 ग्रंथों में से कुछ को फारसी में विद्वान अपाउद्दीन द्वारा ‘दलायते-फिरोजशाही’ नाम से अनुवाद करवाया। ।
- ‘दलायते-फ़िरोज़शाही’ आयुर्वेद से संबंधित था।
- उसने जल घड़ी का अविष्कार किया।
- फिरोज काल में निर्मित खान-ऐ-जहाँ तेलंगानी के मकबरा की तुलना जेरुसलम में निर्मित उमर के मस्जिद से की जाती है।
- सुल्तान फ़िरोज़ तुगलक ने दिल्ली में कोटला फिरोज शाह दुर्ग का निर्माण करवाया।
- अपने भाई जौना ख़ाँ (मुहम्मद तुग़लक़) की स्मृति में जौनपुर नामक शहर बसाया।
नासिरुद्दीन महमूद तुगलक : Nasir-ud-din Mohammed Tughlaq
- तुगलक वंश का अंतिम शासक नासिरुद्दीन महमूद तुगलक था।
- इसका शासन दिल्ली से पालम तक ही रह गया था।
- तैमूरलंग ने सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद तुगलक के समय 1398 में दिल्ली पर आक्रमण किया।
- नासिरुद्दीन के समय में ही मलिककुशर्शक (पूर्वाधिपति) की उपाधि धारण कर एक हिजड़ा मलिक सरवर ने जौनपुर में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
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