भारत पर तुर्क आक्रमण / महमूद गजनवी का आक्रमण (Mahmud Ghaznavi attack on India history in hindi) : अरबों के बाद तुर्कों ने भारत पर आक्रमण किया। तुर्क चीन की उत्तरी-पश्चिमी सीमाओं पर निवास करने वाली असभ्य एवं बर्बर जाति थी। जब अरब के उमय्यावंशी शासकों ने इस्लाम धर्म का प्रचार मध्य एशिया की ओर किया तो तुर्क भी इस्लाम धर्म के सम्पर्क में आये।
वे अत्यन्त खूँखार एवं लड़ाकू होते थे। उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया तथा इसका प्रचार पूरे जोर-शोर के साथ करने में जुट गये। उनका उद्देश्य एक विशाल मुस्लिम-साम्राज्य स्थापित करना था ।
भारत में तुर्कों का आक्रमण दो चरणों में सम्पन्न हुआ। प्रथम चरण का नेता महमूद गज़नी तो दूसरे का मोहम्मद गोरी था।

अलप्तगीन नामक एक तुर्क सरदार ने गज़नी में स्वतंत्र तुर्क राज्य की स्थापना की। अलप्तगीन गज़नी साम्राज्य या यामिनी वंश का संस्थापक था।
अलप्तगीन का गुलाम तथा दामाद सुबुक्तगीन ने 977 ई० में गज़नी पर अपना अधिकार कर लिया और वहाँ का शासक बना।
भारत पर पहला तुर्क आक्रमण सुबुक्तगीन ने पंजाब के विरुद्ध किया जहाँ का शासक जयपाल था।
भारत पर तुर्क आक्रमण : Mahmud Ghaznavi Attack on India
महमूद गज़नी का परिचय (Biography of Mahmud of Ghazni)
- महमूद गजनवी का जन्म अफगानिस्तान के गजनी में 02 नवम्बर 971 (लगभग) ई० में हुआ था।
- महमूद गज़नी सुबुक्तगीन का पुत्र था।
- उसकी माँ एक ज़बुलिस्तान के एक कुलीन परिवार की बेटी थी।
- सुबुक्तगीन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र एवं उत्तराधिकारी महमूद गजनवी गज़नी के गद्दी पर 997 ई० में बैठा।
- इसके पूर्व अपने पिता के काल में महमूद गज़नी खुरासान का शासक था।
- गद्दी पर बैठते समय महमूद गजनवी 27 वर्ष का था। उसकी राजधानी गज़नी थी।
- गजनवी प्रथम शासक था जिसने सुल्तान की उपाधि धारण की थी।
- उसके द्वारा जीते गए प्रदेशों में आज का पूर्वी ईरान, अफगानिस्तान और संलग्न मध्य-एशिया, पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिम भारत शामिल थे।
- बगदाद का खलीफा अल-आदिर बिल्लाह ने महमूद गज़नी के पद को मान्यता प्रदान करते हुए उसे ‘यमीन-उद्-दौला‘ (साम्राज्य का दाहिना हाथ) तथा ‘यमीन-ऊल-मिल्लाह‘ (मुस्लिमों का संरक्षक) की उपाधि प्रदान की।
- भारत (पंजाब) में इस्लामी शासन लाने की वजह से पाकिस्तान और उत्तरी भारत के इतिहास में उसका एक महत्वपूर्ण स्थान है।
- पाकिस्तान में जहाँ वो एक इस्लामी शासक की इज्जत पाता है वहीं भारत में एक लुटेरे और क़ातिल के रूप में गिना जाता है।
- पाकिस्तान ने उसके नाम पर अपने एक मिसाइल (प्रक्षेपास्त्र) का नाम रखा है।
- उत्बी के अनुसार महमूद गज़नी ने युद्धों के समय जेहाद का नारा दिया था।
- महमूद ने अपना नाम बुतशिन (मूर्ति पूजा को समाप्त करने वाला) रखा।
महमूद गज़नी का भारत पर आक्रमण करने का कारण क्या था ?
मध्य एशिया में अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिये उसे धन की आवश्यकता थी जो भारत में आसानी से प्राप्त हो सकता था। अतः इस्लाम धर्म के प्रचार तथा धन प्राप्त करने की लालसा से महमूद गजनवी ने भारत पर अनेक आक्रमण किये।
महमूद गज़नी का भारत पर 17 बार आक्रमण (17 Attacks of Mahmud Ghaznavi on India)
हेनरी इलियट के अनुसार महमूद गज़नी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया। खैबर दर्रा जिसे भारत का प्रवेशद्वार कहा जाता था, सुबुक्तगीन ने जीता था। इस दर्रे को पार कर महमूद गज़नी ने भारत पर आक्रमण किया था।
1. सीमांत दुर्गों पर आक्रमण (1000 ई०) : महमूद गजनवी ने पहला आक्रमण सीमावर्ती दुर्गों पर किया और राजा जयपाल के सीमांत दुर्गों पर अधिकार कर लिया।
2. पंजाब पर आक्रमण (1001-1002 ई०) : महमूद का दूसरा आक्रमण पंजाब के राजा जयपाल के विरुद्ध हुआ। 1001 ई० में पेशावर के निकट घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में जयपाल की पराजय हुई।
3. भेरा पर आक्रमण (1003 ई०) : महमूद गज़नी का तीसरा आक्रमण 1003 ई० में भेरा नामक स्थान पर हुआ। युद्ध में भेरा का राजा पराजित हुआ और उसने आत्महत्या कर ली।
4. मुल्तान पर आक्रमण : महमूद का चौथा आक्रमण मुल्तान पर हुआ। मुल्तान का शासक अब्दुल फतह दाऊद था। 1004-1005 ई० में महमूद गज़नी ने मुल्तान पर आक्रमण किया। महमूद को मुल्तान पर आक्रमण करने के लिए आनंदपाल के राज्य पंजाब से होकर जाना था। आनंदपाल ने अपने प्रदेश से होकर जाने की अनुमति नहीं दी। आनंदपाल युद्ध में हार गया और महमूद गज़नी ने मुल्तान भी जीत लिया। लौटने से पूर्व महमूद ने आनंदपाल के पुत्र सुखपाल (जिसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया और उपनाम नवासा शाह था) को मुल्तान का राज्यपाल नियुक्त किया।
5. सुखपाल पर आक्रमण : महमूद गज़नी के जाने के बाद सुखपाल ने इस्लाम धर्म छोड़ दिया और मुल्तान का स्वतंत्र शासक बन गया। उसे दंड देने के लिए महमूद ने मुल्तान पर पुनः आक्रमण किया। महमूद गज़नी ने दाऊद को पुनः मुल्तान का शासक नियुक्त कर दिया।
6. आनंदपाल पर आक्रमण : महमूद का छठा आक्रमण लाहौर के राजा आनन्दपाल के विरुद्ध हुआ। आनंदपाल ने मुल्तान के शासक दाऊद की सहायता की थी। महमूद का मुकाबला करने के लिए आनंदपाल ने एक विशाल सेना इकठ्ठा की। आनंदपाल ने महमूद के विरुद्ध हिन्दू राजाओं का एक संघ बनाया। इस संघ में फरिश्ता के अनुसार, अजमेर, दिल्ली, उज्जैन, ग्वालियर, कालिंजर और कन्नौज के राजा शामिल थे। झेलम नदी के किनारे उन्द नामक स्थान पर घमासान युद्ध हुआ जिसमें महमूद गजनवी की जीत हुई।
7. नगरकोट की विजय : महमूद ने काँगड़ा के दुर्ग नगरकोट पर आक्रमण किया। यहां ज्वालामुखी देवी के मंदिर से उसे बहुत सारा धन प्राप्त हुआ। महमूद गज़नी का 1008 ई० में नगरकोट के विरुद्ध हमले को मूर्तिवाद के विरुद्ध पहली महत्वपूर्ण जीत बताई जाती है।
8. मुल्तान पर आक्रमण : 1010 ई० में महमूद ने मुल्तान पर पुनः आक्रमण किया क्योंकि दाऊद ने स्वतंत्र होने का प्रयास किया था। महमूद गज़नी ने दाऊद पर पुनः विजय प्राप्त की।
9. त्रिलोचनपाल पर आक्रमण : आनंदपाल की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र त्रिलोचनपाल राजा बना। महमूद ने उस पर आक्रमण किया। त्रिलोचनपाल कश्मीर भाग गया। महमूद ने वहां भी उसका पीछा किया। महमूद गज़नी ने त्रिलोचनपाल और कश्मीर की सेनाओं को पराजित किया। परंतु महमूद ने कश्मीर के अंदरूनी भागों में प्रवेश करना ठीक नहीं समझा।
10. थानेसर पर आक्रमण : 1014 ई० में थानेश्वर के चक्रस्वामी मंदिर को लुटा और चक्रस्वामिन की कास्य निर्मित आदमकद प्रतिमा को गज़नी भेजकर रंगभूमि में रखवाया।
11. कश्मीर पर आक्रमण : 1015 ई० कश्मीर में लोहकोट (लोहारिन) दुर्ग जीतने का असफल प्रयास किया। यह गजनवी की सेना की प्रथम पराजय थी जिसका मुख्य कारण प्रतिकूल मौसम था। 1021 ई० में उसने पुनः कश्मीर पर आक्रमण किया और इस बार भी वह सफल नहीं हुआ। अतः महमूद ने कश्मीर-विजय का प्रयत्न त्याग दिया।
12. मथुरा पर आक्रमण : 1018 ई० में महमूद गज़नी ने मथुरा को लूट कर अपार संपत्ति प्राप्त की। मथुरा के पश्चात महमूद ने वृन्दावन को लूटा।
13. कन्नौज पर आक्रमण : मथुरा लूटने के बाद महमूद गजनवी कन्नौज की ओर बढ़ा। कन्नौज के राजा जयचंद ने आत्मसमर्पण कर दिया और महमूद की अधीनता स्वीकार कर ली। वहां उसने मंदिरों और नगरों को लूटा।
14. कलिंजर पर आक्रमण : 1019 ई० में महमूद ने कलिंजर दुर्ग का घेरा डाला। क्योंकि, यहां के शासक विद्याधर चंदेल (इसे मुस्लिम लेखकों ने सर्वाधिक शक्तिशाली शासक बताया है) ने कन्नौज के नए शासक त्रिलोचनपाल एवं पंजाब के शाही शासक त्रिलोचनपाल के साथ मिलकर एक संघ का निर्माण किया था। इस संघ का प्रमुख विद्याधर था। महमूद गज़नी ने ग्वालियर (कलिंजर) के दुर्ग का घेरा डाला, लेकिन निर्णायक शक्ति परीक्षण न हो सका। विद्याधर ही वह चंदेल शासक था जो महमूद से पराजित नहीं हुआ और दोनों के बीच संधि हो गयी।
15. ग्वालियर पर आक्रमण : 1022 ई० में महमूद ने ग्वालियर पर आक्रमण किया। यहां के राजा ने महमूद गज़नी की अधीनता स्वीकार कर ली। इसी समय पंजाब का गज़नी साम्राज्य में विलय कर लिया। आरियारूक पंजाब का सूबेदार नियुक्त हुआ।
16. सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण : महमूद गज़नी का सबसे चर्चित आक्रमण 1025 ई० में सोमनाथ मंदिर (सौराष्ट्र) पर हुआ। इस मंदिर की लूट में करीब 20 लाख दीनार की संपत्ति हाथ लगी। यह मंदिर गुजरात में समुद्र तट पर अपनी अपार संपत्ति के लिए प्रसिद्ध था। इस मंदिर को लूटते समय महमूद गज़नी ने लगभग 50,000 ब्राह्मणों एवं हिंदुओं का कत्ल कर दिया। महमूद ने मंदिर के शिवलिंग के टुकड़े-टुकड़े कर दिये और टुकड़ों को उसने गजनी, मक्का एवं मदीना भेजवा दिया। पंजाब के बाहर किया गया महमूद का यह अंतिम आक्रमण था। सोमनाथ की रक्षा में सहायता करने के कारण अन्हिलवाड़ा के शासक पर महमूद ने आक्रमण किया।
17. जाटों पर आक्रमण : महमूद गज़नी का अंतिम आक्रमण 1027 ई० में मुल्तान के जाटों के विरुद्ध था। क्योंकि सोमनाथ मंदिर लूट कर ले जाने के क्रम में महमूद पर जाटों ने आक्रमण किया था और कुछ संपत्ति लूट ली थी। इसी का बदला लेने के लिए वह अंतिम बार 1027 ई० में भारत आया था। उसने जाटों को पराजित किया और वापस लौट गया।
समकालीन चालुक्य शासक भीम प्रथम था। गज़नी के चले जाने के बाद सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।
महमूद गज़नी की मृत्यु 1030 ई० में हो गयी।
महमूद गज़नी के दरबार में निम्नलिखित विद्वान रहते थे :
अबू नस्त्र उत्बी – यह वह हमलावर दरबारी इतिहासकार था जिसने अपनी पुस्तक तारीखे यामिनी या ‘किताब यामिनी‘ में 1000 ई० से महमूद गज़नी के ज्यादातर हमलों का उल्लेख किया है।
ख्वाजा अहमद – यह महमूद गज़नी का वजीर था। ख्वाजा अहमद ने महमूद की अनुपस्तिथी में 18 वर्षों तक कुशलता से प्रशासनिक कार्यों का संचालन किया। बाद में महमूद ने अपने इस वजीर को एक भारतीय किले में कैद करा दिया था।
अबुल फज़ल बैहाकि – यह तारीख-ए-सुबुक्तगीन का लेखक था। इसको लेनपुल ने पूर्व का पेप्स कहा है।
फिरदौसी – इस इतिहासकार ने फारसी में पद्य में 1000 छंदों वाली शाहनामा महमूद गज़नी के आदेश पर लिखी।
अलबरूनी – यह राजज्योतिष था। इसने गज़नी में ब्राह्मण पंडितों से वाद-विवाद किया था। इसने किताब-उल-हिन्द की रचना की।
फरूखी – महमूद गज़नी के दरबारी कवि फरूखी ने महमूद द्वारा लाहौर में बनवाये गए निगारखाना (चित्र विथिका) का उल्लेख किया है। इसमें महमूद गज़नी का भी शबीह या व्यक्ति चित्र (protrait) है। वह पहला सुल्तान था जिसने अपना रूप चित्र बनवाया था।
मुस्लिम शासकों में सर्वप्रथम महमूद गजनवी ने ही भारतीय ढंग के सिक्के चलाया। इन सिक्कों को दिल्लीवाला कहा गया जिनका वजन 56 ग्रेन था।
अलबरूनी (Albaruni)
- उपनाम – अबू रेहान
- उपाधि – विद्यासागर (भारतीय ब्राह्मणों द्वारा प्रदत्त)
- अलबरूनी पहले मुसलमान थे जिन्होंने संस्कृत सीखा तथा गीता एवं पुराणों का अध्ययन किया।
- अलबरूनी ने किताब-उर-रेहला या किताब-उल-हिन्द या तहकीक-ए-हिन्द या मिन मकाला पुस्तक की रचना की। यह पुस्तक 11वीं शताब्दी का दर्पण कहलाता है।
- भारत प्रवास के बाद अलबरूनी ने इवोलका नामक पुस्तक की रचना की।
- किताबस सयदना अलबरूनी द्वारा लिखित दवाओं की किताब है जिसका फारसी अनुवाद बक्र ने किया था।
- अरबी में लिखी किताब-उल-हिन्द का अंग्रेजी अनुवाद 1888 ई० में एडवर्ड सचाऊ ने वही हिंदी में रजनीकान्त शर्मा ने किया।
- अलबरूनी मामुनी वंश के ख्वारिज्म शाह के राजनैतिक सलाहकार थे।
- महमूद गजनवी ने जब ख्वारिज्म जीता तो यहीं से युद्ध बंदी के रूप में अलबरूनी को पाया।
- महमूद ने अलबरूनी को राजज्योतिष के पद पर नियुक्त किया था।
- अलबरूनी 1018-19 ई० में महमूद गजनवी के साथ भारत आये थे।
- अलबरूनी भारत में 10 वर्ष रहे और 1030 ई० के आस-पास ‘किताब उल हिन्द‘ की रचना की।
- अलबरूनी पतंजलि के योगसूत्र का अरबी भाषा में अनुवाद किया।
- अलबरूनी ने कपिल के सांख्य एवं ज्योतिष का अध्ययन किया। अपनी पुस्तक में प्लेटो एवं अरस्तू का भी उल्लेख किया। है। अलबरूनी गीता से बहुत अधिक प्रभावित थे।
किताबुल हिन्द – अलबरूनी का भारत सर्वेक्षण
इस पुस्तक में कुल 80 अध्याय हैं जिसमें सर्वाधिक वर्णन खगोलशास्त्र का हुआ है। स्टेनले लेनपूल ने किताबुल हिन्द को टकराती तलवारों, जलते शहरों और लूटे जा रहे मंदिरों की दुनिया के बीच पूर्णरूपेण निष्पक्ष अनुसंधान का जादुई द्वीप कहा है।
सामाजिक स्थिति – भारतीय समाज में चतुर्वर्ण वर्णव्यवस्था बताते हैं। सामाजिक विभेद इस समय चरम पर था। ब्राह्मण को चार पत्नी, क्षत्रिय को तीन, वैश्य को दो एवं शूद्र को एक पत्नी रखने का अधिकार था। अलबरूनी बताते हैं कि विवाह में तलाक नहीं था। विधवा पुनर्विवाह नहीं था।
शिक्षा – अलबरूनी के अनुसार इस समय विक्रमशिला, नालंदा, उद्दपुर, कश्मीर एवं बनारस प्रमुख शिक्षा केंद्र थे। उनके अनुसार, ‘विज्ञान के हर एक शाखा के संबंध में हिंदुओं के पास अनेक ग्रंथ उपलब्ध हैं। ‘
धर्म – अलबरूनी दो प्रमुख त्योहार रामनवमी एवं शिवरात्रि बताते हैं। वे वैष्णव सम्प्रदाय को सर्वाधिक लोकप्रिय धर्म बताते हैं। वैश्य एवं शूद्र को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं था।
स्थापत्य – अलबरूनी एवं उत्बी के विवरण से ज्ञात होता है कि कन्नौज अत्यंत विस्तृत एवं भव्य था।
आर्थिक स्थिति – इस समय उन्नत थी। मंदिरों में संपत्ति का संकेन्द्रण था। यही इस समय एक प्रकार बैंक था। यही कारण है कि आक्रमणकारियों का पहला निशाना मंदिर ही होती थी।
राजनीतिक स्थिति – अलबरूनी ने राजनीतिक स्थिति का नाममात्र का उल्लेख किया है। इस समय भारत छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था तथा एक राज्य की कमजोरी दूसरे राज्य की शक्ति का साधन थी।
वस्तुतः अलबरूनी का सर्वेक्षण एक खंडित भारत के, खंडित समाज की, खण्डित तस्वीर ही प्रस्तुत करता है। यह राजनीति, समाज, धर्म यहाँ तक कि प्रसूति के आधार पर विभेद को ही उजागर करता है। ऐसे में अगर तुर्क आक्रमण के सामने भारतीय राजा एक-एक कर हारते चले गए तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं। क्योंकि, एक खंडित समाज खण्डित राजनीति ही दे सकता है।
भारत पर महमूद गजनवी का आक्रमण से संबंधित महत्त्वपूर्ण Question & Answer
- गज़नी का वह प्रथम शासक कौन था जो खलीफाओं से ‘सुल्तान’ की उपाधि धारण ग्रहण कर सुल्तान कहलानेवाला प्रथम शासक बना – महमूद गजनवी
- महमूद गजनवी के सभी आक्रमणों (1000 ई० से 1026 ई० के बीच) में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आक्रमण कौन-सा था – सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण (1025-26)
- महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण का उद्देश्य क्या था – मध्य एशिया में एक बड़े साम्राज्य की स्थापना के लिए धन प्राप्त करना
- महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण के समय भारत आये विद्वान अलबरूनी ने किस महत्त्वपूर्ण ग्रंथ की रचना की – किताब-उल-हिन्द
- भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम तुर्की कौन था – सुबुक्तगीन
- कौन अपने को ‘बुतशिकन’ (मूर्तिभंजक) कहता था – महमूद गजनवी
- महमूद गजनवी ने कौन-से उपाधि धारण किए – यामिन-उद्-दौला एवं अमीन-उल-मिल्लत
- महमूद गजनवी ने भारत में प्रथम आक्रमण किस राज्य के विरुद्ध किया – हिन्दूशाही / ब्रह्मासाही
- हिन्दूशाही राज्य की राजधानी क्या थी – उदभांडपुर / ओहिन्द / वैहिन्द
- महमूद गजनवी का भारत में अंतिम आक्रमण किसके विरुद्ध हुआ – जाट
- हिन्दुसाही राज्य का कौन-सा शासक तुर्कों से बार-बार पराजित होने के कारण ग्लानिवश आत्मदाह कर लिया – जयपाल
- महमूद गज़नी किस वंश का था – यामिनी
- महमूद गजनवी के साथ आनेवाले इतिहासकारों में कौन शामिल नहीं था – शाहनामा के लेखक फिरदौसी
- महमूद गजनवी के आक्रमण के परिणामस्वरूप कौन-सा शहर फारसी संस्कृति का केंद्र बन गया – लाहौर
- पंजाब के हिन्दुसाही राजवंश को किसने स्थापित किया – कल्लर
- अलबेरुनी किसके शासनकाल में इतिहासकार था – महमूद गजनवी
- महमूद गजनवी ने भारत पर कितनी बार आक्रमण किया था – 17 बार
- अलबरूनी द्वारा रचित पुस्तक ‘किताब-उल-हिन्द’ में किन विषयों की समीक्षा की गयी है – भारतीय गणित, भारतीय इतिहास, भूगोल, खगोल विज्ञान, दशर्न
- अलबरूनी का पूरा नाम क्या था – अबू रैहान मुहम्मद
- ’11वीं सदी के भारत का दर्पण’ किसे कहा जाता है – किताब-उल-हिन्द
- वैहिन्द का युद्ध (1008-09) में किनके बीच लड़ा गया – महमूद गजनवी और आनंदपाल
- गजनवी साम्राज्य का संस्थापक कौन था – अलप्तगीन
- अलप्तगीन का गुलाम तथा दामाद कौन था – सुबुक्तगीन
- अपने पिता के काल में गज़नी कहाँ का शासक था – खुरासान
- महमूद गजनवी का जन्म कहाँ पर हुआ था – अफगानिस्तान के गजनी में
- महमूद गजनवी ने भारत पर पहला आक्रमण किस शाही राजा के विरुद्ध किया था – जयपाल
- महमूद गज़नी के किस हमले को मूर्तिवाद के विरुद्ध पहली महत्त्वपूर्ण जीत बताई जाती है – नगरकोट के विरुद्ध हमले
- आनंदपाल के पुत्र का क्या नाम था जिसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था – सुखपाल
- महमूद गजनवी का भारत पर अंतिम आक्रमण कब और किसके विरुद्ध हुआ था – 1027 ई० में जाटों के विरुद्ध
- महमूद गज़नी की मृत्यु कब हुई – 1030 ई०
- महमूद गजनवी के दरबार में कौन-कौन से विद्वान रहते थे – अलबरूनी, फिरदौसी, उत्बी, वैहाकी तथा फरूखी
- महमूद गजनवी के साथ भारत आनेवाले इतिहासकारों में कौन-कौन शामिल थे – अलबरूनी, उत्बी, वैहाकी
- तारीख-ए-यामिनी के लेखक कौन थे – उत्बी
- तारीख-ए-सुबुक्तगीन के लेखक कौन थे – वैहाकी
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यह आलेख किसी के लिये भी अत्यंत उपयोगी एवं सूचनाओं से परिपूर्ण है।कम विस्तार में समस्त महमूदीय अतिचार एवं उस दानव ,धार्मिक शत्रुता के बिश से भरेआक्रमणकारी की अमानवीयता का विबरण दिया गया है।यह जरूर है कि तत्कालीन भारत को अलबरूनी द्वारा न समझने के,अपने संकीर्ण धार्मिक दुराग्रहों के कारण,गलत बयानी की है।किसी असभ्य ,बर्बर से हार जाने का मतलब यह बिलकुल नहीं कि समाज में बुराई है।इतिहास गबाह है ,बहुत से समाज अपने सद्गुणों के कारण हारे हैं,यह बात दुनियां जितनी जल्दी समझे गी उतना ही मानवजाति का भला होगा और वह सुंदरता के उच्चतर सोपानों की ओर बढ़े गी।हमें कातिल ,लुटेरों को प्रशंसित करना वंद करना होगा।